Tuesday, January 3, 2023

ब्राह्मण ब्राह्मणत्व नही त्यागना चाहिए

इस घोर भौतिकता वादी कलियुग में भी ब्राह्मणों को अपने परंपरा गत संस्कार बचा कर रखने चाहिए।
पहला है सत्यता।
जो त्रिकाल अबाधित हो वही सत होता है वही सत्य होता है। ब्राह्मण का अधिष्ठान ही वो सत्य है।
दूसरा है निश्छलता
एक ब्राह्मण पर कोई भी व्यक्ति एक बच्चा भी विश्वास कर लेता है क्योंकि वो निश्छल है।
भगवान ने कहां
मोहे छल कपट छिद्र नही भावा

तीसरा है निर्लोभी

कोई लोभ नही किसी प्रकार का। न इस लोक का न ही परलोक का।
चौथा है सदाचारी।

ये आज के समय सबसे कठिन कर्म।
सदाचार होना ही आज के समय में अवगुण और एकांकी बना सकता है।
पर उससे क्या?
सत्य के मार्ग पर तो अकेला ही चला जाता हैं।

इसमें गुण जोड़ते जाए।
ये सब वेद आधारित जीवन जीने से आते है।
कोई भी व्यक्ति जन्म से ही इसका अभ्यास करे तो ही आते है
बहुत कठिन है किसी का भी अचानक से शास्त्र परायण में प्रवृत्त होना।

बहुत तगड़ी मार लगी हो तो अलग बात है
वरना असंभव।
देव कृपा हो तो सब संभव है
तो पैदा होते ही बालक बालिका को इस मार्ग में प्रवृत्त करना आरंभ कर दीजिए
पैदा क्या गर्भ में आया जीव तब से ही।
इसे ही गर्भाधान संस्कार कहते है जब पवित्र मन से स्त्री पुरुष संतान प्राप्ति निमित वैदिक वातावरण में पूजा आदि करके सनातन कृत्य में प्रवृत्त होते है
उससे उत्पन्न संतान ही वर्ण आश्रम धारण कर ने योग्य बनती है।
इसके पश्चात इस जीव का वर्ण पहचान करना अनिवार्य है।
जो एकदम से होना कठिन भी है बहुत तो एक बारीक तो अपने अपने कुल के संस्कार अनुसार उसको ज्ञाती में डालना चाहिए उसके बाद थोड़ा बड़ा होने पर सतर्क निगाह से उसके वर्ण स्वाभाविक रुचि को जान के उसके मार्ग पर ही उसको प्रवृत्त करना ही गृहस्थ धर्म है।
लेकिन अपने ही संतान को इतना ध्यान से ओबजर्व करे ही कौन?
समय ही कहा हमारे पास?
ब्राह्मणों को एसा कभी नही करना।चाहे सारी दुनिया करें।
ब्राह्मण वो जिसका पिता माता ब्राह्मण है उसका पिता माता।
कोई नया वेद सिख के आना चाहे तो स्वागत है उसका भी।
पर आएगा वो मेरिट से ही आरक्षण से नही।
ब्राह्मण का धर्म है वो सबको वेद सिखाए।
आरक्षण न दें किसी को।
पर दूसरो को वेद सिखाने से पहले खुद भी तो जीना है न इस पर?
जो कलियुग में क्या संभव है?
लगता तो नही।

Tuesday, November 15, 2022

सीता की अग्नि परीक्षा

बस यही बात हैं।
राजा राम ने जो राज्य बनाया आज लाखो साल बीत जाने पर भी उनकी स्मृति हमारे मन पटल पर इतनी स्पष्ट है कि हमको राम राज्य ही चाहिए दूसरा कोई राज्य नहीं।
अधिकांश राजा अपने को राम जी से ही जोड़ते रहे हैं हजारों साल से जोड़ते रहे हैं।
जब वो राज काज का संकल्प लेते है तो उनके सामने भगवान श्री राम का ही चित्र होता है।
राम जी होते तो क्या करते है?
अगर इस क्षण इस जगह राम जी होते तो वो क्या करते ?
बस धर्म भी ये ही है।
प्रत्येक हिन्दू ने उसमें भी जिस भी हिंदू का राज काज से संबद्ध है अपने प्रत्येक राजकीय कार्य में भी ये ही विचार करना है आज मेरे स्थान पर राम जी रहते तो वो क्या करते?
इसमें किंचित भी किंतु परंतु नही कर सकते।
राम जी पदाति एकांकी खड़े है?
सामने संपूर्ण शस्त्र भंडार से युक्त उन्नत रथ पर कवच कुंडल सहित दशानंद हैं।
पर मेरे राम तो मात्र कोपिन पर धनुष और तुनीर लिए स्मित हास्य करते रावण को निहार रहे हैं।
रावण के प्रत्येक बाण को सरलता से काट देते है
रक्त के रिस रिस के नीचे गिरने से उनके कमल समान पैर रक्तिम आभा लिए अत्यंत दिव्य जान पड़ते है।
युद्ध का इस भीषण वातावरण हैं पर लगता नही राम जी वही खड़े है या नही?
कोई नही जान सकता।
न कोई उत्तेजना है न कोई चिंता
बस अपने क्षत्रिय धर्म का मानव धर्म का निर्वाह कर रहे हैं
क्या खेल है प्रभु?
कौन जान सकता है?
उनका रोष भी रोष है या नही ,सब माया है
भगवान वाल्मीकि ने
गोस्वामी तुलसीदास ने जैसे उसे अपने चक्षु से देखा हो।
जो राज्य स्थापित कर गए वो इतने वर्ष बाद भी हम चाहते है
जिसमे कोई अकाल मृत्यु को भी प्राप्त नहीं होता है अन्य दुख की बात ही छोड़ो।
अपनी पत्नी सीता माता को आप उलाहना दे रहे हैं सामान्य मनुष्य भांति सबके बीच में।
आहा 
क्या दिव्यता है।सब जानते हुवे भी आप कितने भोले बनते हो प्रभु।
तो मां भी कहां पीछे रहने वाली है वो भी भगवती है इसके बिना तो निष्क्रिय ब्रह्म हो आप।शक्ति ही शिव को बनाने वाली है न
तो उन्होंने भी वापस कह दिया
त्वया तु नृपशार्दूल रोषमेवानुवर्तता ⁠। लघुनेव मनुष्येण स्त्रीत्वमेव पुरस्कृतम् ⁠।⁠।⁠१४⁠।⁠। ‘नृपश्रेष्ठ! आपने ओछे मनुष्यकी भाँति केवल रोषका ही अनुसरण करके मेरे शील-स्वभावका विचार छोड़कर केवल निम्नकोटिकी स्त्रियोंके स्वभावको ही अपने सामने रखा है ⁠।⁠।⁠१४⁠।⁠। अपदेशेन जनकान्नोत्पत्तिर्वसुधातलात् ⁠। मम वृत्तं च वृत्तज्ञ बहु ते न पुरस्कृतम् ⁠।⁠।⁠१५⁠।⁠। ‘सदाचारके मर्मको जाननेवाले देवता! राजा जनककी यज्ञभूमिसे आविर्भूत होनेके कारण ही मुझे जानकी कहकर पुकारा जाता है। वास्तवमें मेरी उत्पत्ति जनकसे नहीं हुई है। मैं भूतलसे प्रकट हुई हूँ। (साधारण मानव-जातिसे विलक्षण हूँ—दिव्य हूँ। उसी तरह मेरा आचार-विचार भी अलौकिक एवं दिव्य है; मुझमें चारित्रिक बल विद्यमान है, परंतु) आपने मेरी इन विशेषताओंको अधिक महत्त्व नहीं दिया—इन सबको अपने सामने नहीं रखा ⁠।⁠।⁠१५⁠।⁠। न प्रमाणीकृतः पाणिर्बाल्ये मम निपीडितः ⁠। मम भक्तिश्च शीलं च सर्वं ते पृष्ठतः कृतम् ⁠।⁠।⁠१६⁠।⁠। ‘बाल्यावस्थामें आपने मेरा पाणिग्रहण किया है, इसकी ओर भी ध्यान नहीं दिया। आपके प्रति मेरे हृदयमें जो भक्ति है और मुझमें जो शील है, वह सब आपने पीछे ढकेल दिया—एक साथ ही भुला दिया’ ⁠।⁠।⁠१६⁠।⁠।

लो सुन लो जगन्नाथ।
अपनी लीला पर वापस भी तो सुनना पड़ेगा न
पर आपने ही सब खेल रचाया है कौन जान सकता है क्यों रचाया?बस अनुमान कर सकते हैं हम।
ब्रह्मा जी को भी आना पड़ रहा है
ये क्या कर रहे हो प्रभु?
साधारण मनुष्यो की भांति?
आप जानते नही आप कौन हो?
कर्ता सर्वस्य लोकस्य श्रेष्ठो ज्ञानविदां विभुः ⁠। उपेक्षसे कथं सीतां पतन्तीं हव्यवाहने ⁠। कथं देवगणश्रेष्ठमात्मानं नावबुद्‌ध्यसे ⁠।⁠।⁠६⁠।⁠। ‘श्रीराम! आप सम्पूर्ण विश्वके उत्पादक, ज्ञानियोंमें श्रेष्ठ और सर्वव्यापक हैं। फिर इस समय आगमें गिरी हुई सीताकी उपेक्षा कैसे कर रहे हैं? आप समस्त देवताओंमें श्रेष्ठ विष्णु ही हैं। इस बातको कैसे नहीं समझ रहे हैं ⁠।⁠।⁠६⁠।⁠।
ऋतधामा वसुः पूर्वं वसूनां च प्रजापतिः ⁠। त्रयाणामपि लोकानामादिकर्ता स्वयंप्रभुः ⁠।⁠।⁠७⁠।⁠। ‘पूर्वकालमें वसुओंके प्रजापति जो ऋतधामा नामक वसु थे, वे आप ही हैं। आप तीनों लोकोंके आदिकर्ता स्वयं प्रभु हैं ⁠।⁠।⁠७⁠।⁠। रुद्राणामष्टमो रुद्रः साध्यानामपि पञ्चमः ⁠। अश्विनौ चापि कर्णौ ते सूर्याचन्द्रमसौ दृशौ ⁠।⁠।⁠८⁠।⁠। ‘रुद्रोंमें आठवें रुद्र और साध्योंमें पाँचवें साध्य भी आप ही हैं। दो अश्विनीकुमार आपके कान हैं और सूर्य तथा चन्द्रमा नेत्र हैं ⁠।⁠।⁠८⁠।⁠।
अन्ते चादौ च मध्ये च दृश्यसे च परंतप ⁠।उपेक्षसे च वैदेहीं मानुषः प्राकृतो यथा ⁠।⁠।⁠९⁠।⁠। ‘शत्रुओंको संताप देनेवाले देव! सृष्टिके आदि, अन्त और मध्यमें भी आप ही दिखायी देते हैं। फिर एक साधारण मनुष्यकी भाँति आप सीताकी उपेक्षा क्यों कर रहे हैं?’ ⁠।⁠।⁠९⁠।⁠।

विधाता की इस उलाहना के बाद भी आप मंद मंद मुस्कुराते हुवे पिता समान इस जगत को खेल दिखाते हुवे बोले
आत्मानं मानुषं मन्ये रामं दशरथात्मजम् ⁠।
 सोऽहं यश्च यतश्चाहं भगवांस्तद् ब्रवीतु मे ⁠।⁠।⁠११⁠।⁠।
‘देवगण! मैं तो अपनेको मनुष्य दशरथपुत्र राम ही समझता हूँ। भगवन्! मैं जो हूँ और जहाँसे आया हूँ, वह सब आप ही मुझे बताइये’ ⁠।⁠।⁠११⁠।⁠।

लो कर लो बात।
मैं कौन हूं ये भी अब आपको ब्रह्मा जी बताएंगे?
पर विचार करो ठीक ही तो कहा है
वेदांत में ब्रह्म कौन है मैं कौन है ये गुरु ही तो बताते है इसके बाद ही न हम स्वाध्याय करते है मनन करते है तब ही जान पाते है
अक्षरं ब्रह्म सत्यं च मध्ये चान्ते च राघव ⁠। लोकानां त्वं परो धर्मो विष्वक्सेनश्चतुर्भुजः ⁠।⁠।⁠१४⁠।⁠। ‘रघुनन्दन! आप अविनाशी परब्रह्म हैं। सृष्टिके आदि, मध्य और अन्तमें सत्यरूपसे विद्यमान हैं। आप ही लोकोंके परम धर्म हैं। आप ही विष्वक्सेन तथा चार भुजाधारी श्रीहरि हैं ⁠।⁠।⁠१४⁠।⁠।

ये त्वां देवं ध्रुवं भक्ताः पुराणं पुरुषोत्तमम् ⁠। प्राप्नुवन्ति तथा कामानिह लोके परत्र च ⁠।⁠।⁠३१⁠।⁠। ‘आप पुराणपुरुषोत्तम हैं। दिव्यरूपधारी परमात्मा हैं। जो लोग आपमें भक्ति रखेंगे, वे इस लोक और परलोकमें अपने सभी मनोरथ प्राप्त कर लेंगे’ ⁠।⁠।⁠३१⁠।⁠।

ब्रह्मा जी ने जब राम जी को उनका स्वरूप समझा दिया तब अचानक से सात्विक अग्नि भड़क उठी।जिस चिता में माता विराजमान थी उसमे से अग्नि देव प्रकट हुवे माता को गोद। में लिए हुवे वो बाहर आए
विधूयाथ चितां तां तु वैदेहीं हव्यवाहनः ⁠।
उत्तस्थौ मूर्तिमानाशु गृहीत्वा जनकात्मजाम् ⁠।⁠।⁠२⁠।⁠। उस चिताको हिलाकर इधर-उधर बिखराते हुए दिव्य रूपधारी हव्यवाहन अग्निदेव वैदेही सीताको साथ लिये तुरंत ही उठकर खड़े हो गये ⁠।⁠।⁠२⁠।⁠।

और मां का वो दिव्य रूप?
तरुणादित्यसंकाशां तप्तकाञ्चनभूषणाम् ⁠। रक्ताम्बरधरां बालां नीलकुञ्चितमूर्धजाम् ⁠।⁠।⁠३⁠।⁠। अक्लिष्टमाल्याभरणां तथारूपामनिन्दिताम् ⁠। ददौ रामाय वैदेहीमङ्के कृत्वा विभावसुः ⁠।⁠।⁠४⁠।⁠। सीताजी प्रातःकालके सूर्यकी भाँति अरुण-पीत कान्तिसे प्रकाशित हो रही थीं। तपाये हुए सोनेके आभूषण उनकी शोभा बढ़ा रहे थे। उनके श्रीअङ्गोंपर लाल रंगकी रेशमीसाड़ी लहरा रही थी। सिरपर काले-काले घुँघराले केश सुशोभित होते थे। उनकी अवस्था नयी थी और उनके द्वारा धारण किये गये फूलोंके हार कुम्हलायेतक नहीं थे। अनिन्द्य सुन्दरी सती-साध्वी सीताका अग्निमें प्रवेश करते समय जैसा रूप और वेष था, वैसे ही रूप-सौन्दर्यसे प्रकाशित होती हुई उन वैदेहीको गोदमें लेकर अग्निदेवने श्रीरामको समर्पित कर दिया ⁠।⁠।⁠३-४।।

सुनो ध्यान से मूर्खों!!
वैराग्य की अग्नि काम को जला के दग्ध कर देती है
अग्निहोत्र में ब्रह्मा की उपस्थिति में जब यजमान समिधा अर्पित करता है तब उसकी चेतना का स्तर ऊपर उठना आरंभ होता है वैदिक मंत्र में उनका ध्यान ईश्वर में लगना आरंभ होता है उसके स्वरूप का बोध होने लगता है उस समय शक्ति का दिव्य दर्शन होता है।
प्रभु स्वयं अपने अनावृत कर रहे है यहां।
बता रहे है कि मैं कौन हूं?

जब तक वेदांत प्रक्रिया से आप जान नही पाते है स्वयं को तब तक साधारण मनुष्य की भांति राग द्वेष में फंसे हो
पर जो हो 
यज्ञ की वो दिव्या अग्नि
आपके हृदय में जलना आरंभ होती है तो उसमे से भगवती सीता प्रकट होती है
उसमे कोई दोष नही है
विषय वासना के इस संसार में फंसी होने के बाद भी वो निरंतर पूर्ण ब्रह्म अक्षर पुरुषोत्तम
परमात्मा श्री राम में विचार में ही मग्न है
संसार में एकांकी परवश जो थी जो इस जगत के रावण ने हरण किया है पर भक्ति को निष्ठा तो भगवान के चरण में ही है यज्ञ की अग्नि इसका प्रमाण भी स्वयं दे रही है 
देखो शास्त्र वचन
रावणेनापनीतैषा वीर्योत्सिक्तेन रक्षसा ⁠। त्वया विरहिता दीना विवशा निर्जने सती ⁠।⁠।⁠७⁠।⁠। ‘अपने बल-पराक्रमका घमंड रखनेवाले राक्षस रावणने जब इसका अपहरण किया था, उस समय यह बेचारी सती सूने आश्रममें अकेली थी—आप इसके पास नहीं थे; अतः यह विवश थी (इसका कोई वश नहीं चला) ⁠।⁠।⁠७⁠।⁠।
रुद्धा चान्तःपुरे गुप्ता त्वच्चित्ता त्वत्परायणा ⁠। रक्षिता राक्षसीभिश्च घोराभिर्घोरबुद्धिभिः ⁠।⁠।⁠८⁠।⁠। ‘रावणने इसे लाकर अन्तःपुरमें कैद कर लिया। इसपर पहरा बिठा दिया। भयानक विचारोंवाली भीषण राक्षसियाँ इसकी रखवाली करने लगीं। तब भी इसका चित्त आपमें ही लगा रहा। यह आपहीको अपना परम आश्रय मानती रही ⁠।⁠।⁠८⁠।⁠।
विशुद्धभावां निष्पापां प्रतिगृह्णीष्व मैथिलीम् ⁠। न किंचिदभिधातव्या अहमाज्ञापयामि ते ⁠।⁠।⁠१०⁠।⁠। ‘अतः इसका भाव सर्वथा शुद्ध है। यह मिथिलेशनन्दिनी सर्वथा निष्पाप है। आप इसे सादर स्वीकार करें। मैं आपको आज्ञा देता हूँ, आप इससे कभी कोई कठोर बात न कहें’ ⁠।⁠।⁠१०⁠।⁠।

देखा कुछ?
अग्नि आज्ञा दे रही है भगवान को
कि ये नाटक बंद कर दो प्रभु अब।
भक्ति वैराग्य ज्ञान साधना तप को अग्नि में तप कर कुंदन बन चुकी है आपमें ही अनुरक्त है इस लोक परलोक के कोई भौतिक या अभौतिक सुख को नही चाहती है केवल आपको चाहती है।
तो भगवान भी खेल के मजे लेते लेते हुवे कह रहे हैं
अवश्यं चापि लोकेषु सीता पावनमर्हति ⁠। दीर्घकालोषिता हीयं रावणान्तःपुरे शुभा ⁠।⁠।⁠१३⁠।⁠। ‘भगवन्! लोगोंमें सीताजीकी पवित्रताका विश्वास दिलानेके लिये इनकी यह शुद्धिविषयक परीक्षा आवश्यक थी; क्योंकि शुभलक्षणा सीताको विवश होकर दीर्घकालतक रावणके अन्तःपुरमें रहना पड़ा है ⁠।⁠।⁠१३⁠।⁠। बालिशो बत कामात्मा रामो दशरथात्मजः ⁠। इति वक्ष्यति मां लोको जानकीमविशोध्य हि ⁠।⁠।⁠१४⁠।⁠। ‘यदि मैं जनकनन्दिनीकी शुद्धिके विषयमें परीक्षा न करता तो लोग यही कहते कि दशरथपुत्र राम बड़ा ही मूर्ख और कामी है ⁠।⁠।⁠१४⁠।⁠।

अनन्यहृदयां सीतां मच्चित्तपरिरक्षिणीम् ⁠। अहमप्यवगच्छामि मैथिलीं जनकात्मजाम् ⁠।⁠।⁠१५⁠।⁠। ‘यह बात मैं भी जानता हूँ कि मिथिलेशनन्दिनी जनककुमारी सीताका हृदय सदा मुझमें ही लगा रहता है। मुझसे कभीअलग नहीं होता। ये सदा मेरा ही मन रखतीं—मेरी इच्छाके अनुसार चलती हैं ⁠।⁠।⁠१५⁠।⁠। इमामपि विशालाक्षीं रक्षितां स्वेन तेजसा ⁠। रावणो नातिवर्तेत वेलामिव महोदधिः ⁠।⁠।⁠१६⁠।⁠। ‘मुझे यह भी विश्वास है कि जैसे महासागर अपनी तटभूमिको नहीं लाँघ सकता, उसी प्रकार रावण अपने ही तेजसे सुरक्षित इन विशाललोचना सीतापर अत्याचार नहीं कर सकता था ⁠।⁠।⁠१६⁠।⁠। प्रत्ययार्थं तु लोकानां त्रयाणां सत्यसंश्रयः ⁠। उपेक्षे चापि वैदेहीं प्रविशन्तीं हुताशनम् ⁠।⁠।⁠१७⁠।⁠। ‘तथापि तीनों लोकोंके प्राणियोंके मनमें विश्वास दिलानेके लिये एकमात्र सत्यका सहारा लेकर मैंने अग्निमें प्रवेश करती हुईविदेहकुमारी सीताको रोकनेकी चेष्टा नहीं की ⁠।⁠।⁠१७⁠।⁠। न हि शक्तः सुदुष्टात्मा मनसापि हि मैथिलीम् ⁠। प्रधर्षयितुमप्राप्यां दीप्तामग्निशिखामिव ⁠।⁠।⁠१८⁠।⁠। ‘मिथिलेशकुमारी सीता प्रज्वलित अग्निशिखाके समान दुर्धर्ष तथा दूसरेके लिये अलभ्य है। दुष्टात्मा रावण मनके द्वारा भी इनपर अत्याचार करनेमें समर्थ नहीं हो सकता था ⁠।⁠।⁠ नेयमर्हति वैक्लव्यं रावणान्तःपुरे सती ⁠। अनन्या हि मया सीता भास्करस्य प्रभा यथा ⁠।⁠।⁠१९⁠।⁠। ‘ये सती-साध्वी देवी रावणके अन्तःपुरमें रहकर भी व्याकुलता या घबराहटमें नहीं पड़ सकती थीं; क्योंकि ये मुझसे उसी तरह अभिन्न हैं, जैसे सूर्यदेवसे उनकी प्रभा ⁠।⁠।⁠ विशुद्धा त्रिषु लोकेषु मैथिली जनकात्मजा ⁠। न विहातुं मया शक्या कीर्तिरात्मवता यथा ⁠।⁠।⁠२०⁠।⁠। ‘मिथिलेशकुमारी जानकी तीनों लोकोंमें परम पवित्र हैं। जैसे मनस्वी पुरुष कीर्तिका त्याग नहीं कर सकता, उसी तरह मैं भी इन्हें नहीं छोड़ सकता ⁠।⁠।⁠२०⁠।⁠।
इत्येवमुक्त्वा विजयी महाबलः प्रशस्यमानः स्वकृतेन कर्मणा ⁠। समेत्य रामः प्रियया महायशाः सुखं सुखार्होऽनुबभूव राघवः ⁠।⁠।⁠२२⁠।⁠। ऐसा कहकर अपने किये हुए पराक्रमसे प्रशंसित होनेवाले महाबली, महायशस्वी, विजयी वीर रघुकुलनन्दन श्रीराम अपनी प्रिया सीतासे मिले और मिलकर बड़े सुखका अनुभव करने लगे; क्योंकि वे सुख भोगनेके ही योग्य हैं ⁠।⁠।⁠२२⁠।⁠।

क्या खेल किया आपने।
पर जो
दुष्ट है
कामी है
पापी है
विषयों में डूबे है
अनाचारी कदाचारी है
मद्यप है वो आपको कैसे जान सकते है प्रभो?
आप तो वैराग्य की अग्नि में परीक्षा देके भक्ति स्वरूपणी सीता मां के समान निष्कलंक निष्छल पवित्र राम जी के हृदय में ही निवास करने योग्य हो।

निरमल मन जन सो मोहिं पावा। मोहिं कपट छल छिद्र न भावा।

श्री रामचरितमानस की यह चौपाई यह संकेत कर रहा है, कि ईश्वर या उनकी भक्ति प्राप्त करने के लिए मन की निर्मलता परमावश्यक है। ईश्वर को छल- कपट आदि दोष नहीं भाता क्योंकि जो सर्वज्ञ है उससे छिपाव अर्थात अभी तो आप ईश्वर को ईश्वर समझ ही नहीं रहे। 

खैर।
जय जय श्री राम🙏🙏🙏

Wednesday, January 13, 2021

उत्तरायण की सबकौ राम राम

जैसे गुड़ सभी तिलों को जोड़कर लड्डू बनाता है उसी प्रकार प्रेम भाव सभी व्यक्तिओ को जोड़ कर मीठा लड्डू बनाता है मकर संक्रांति का पर्व पूरे भारत मे विभिन्न नामो से मनाया जाता है ये केवल संस्कृति का पर्व नहीं है बड़ी एक बहुत बड़ी खगोलीय घटना है मध्य रात्रि में अगर हम आकाश में देखें तो आकाश तारो से भरा रहता है हजारो सालो पहले हमारे पूर्वजों ने उन तारो को देख कर चंद्रमा की कलाओं को जान कर सूर्य को उदय होते अस्त होते देख कर उसके साथ प्रकृति में हुवे परिवर्तन को जान कर इस पर्व की रचना की थी।तारो के उस समूह को बिंदु वार मिलने से कृत्रिम आकृति बनती है जो कभी मेष कभी तुला कभी मकर कभी मिथून के आकार की होती है ऐसी सभी आकृतियों की पहचान करके उनको राशि नाम दिया गया जो 12 है उसी प्रकार तारो के एक दूसरे समूह के आधार पर अलग नाम दिया उनको नक्षत्र कहते है उत्तर आकाश याने हमको अभी दिखाई देता है जो,दक्षिण आकाश याने नीच का ।
तो पृथ्वी से देखने से सूर्य चलता प्रतीत होता है चंद्रमा चलता प्रतीत होता है इन सबका बहुत ही सटीक गणित करके ये निष्कर्ष निकाला था कि आज ही के दिन सूर्य मकर राशि मे आता प्रतीत होता है जो सूर्य की गति को उत्तरायण की तरफ होने लगती है।
प्रकृति में भी परिवर्तन आने लगते है इस खगोलीय घटना को जोड़ा
1 अध्यात्म से याने आज के दिन जप करने से वो सिद्ध हो सकता है
2 ज्योतिष से
3 संस्कृति से
4 समाज से
याने ये पर्व सामाजिक समरसता का है इस दिन प्रत्येक हिन्दू ने सुपात्र को दान अवश्य करना चाहिए आपके आस पास रहने वाले अभावों से ग्रस्त मानवों की सेवा करने का प्रयास इस दिन जरुर करें।और हाँ तिल की।मिठाई खाना न भूलें।
मकर सक्रांति की सभी को राम राम।
🙏🏻🙏🏻

Monday, January 11, 2021

विवेकानन्द:एक सन्यासी योद्धा

माँ भुनेश्वरी ने शिव का बहुत ध्यान करके शिव को ही पुत्र रूप पाया। जिस दिन भगवान भास्कर दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर गमन कर रहे थे, प्रकृति बहुत ही सुंदर और मनमोहक हो रही थी उस दिन उस स्वयं शिव का जन्म मां भुनेश्वरी के गर्भ से हुआ। जिसने इस आधुनिक भारत को अपने वचनों और कर्मों से इतना प्रभावित किया है कि जिसको कोई दूसरा विवेकानंद आकर ही बता सकता है और समझ सकता है ।
भारत सदियों से विदेशी आक्रांताओं से संघर्ष करता करता हीनता गुलामी और कुंठा की नींद में सो गया था जो कुछ भी भारतीय है उसके प्रति हीन भावना रखना हमारे देश के उस समय के बुद्धिजीवियों और बड़े-बड़े मनस्वी लोगों का मुख्य चरित्र बन गया। या फिर रूढी कुरीति छुआछूत जातीय भेद आदि काल्पनिक बातों को ही धर्म मान कर उसमें ही आत्म मुग्ध  रहने वाला दीन हीन भारत बन गया।
 ऐसे समय में तीव्र रजोगुण की आवश्यकता थी पर वह सत गुण जो वास्तव मे तामसिक था उसकी  आड़ में तम गुण  का महिमामंडन हो रहा था। अज्ञानता अंधकार  और कायरता को धर्म मानने की जो परिपाटी भारत में चल पड़ी और जिस कुसंस्कार के कारण करोड़ों करोड़ों लोग  गरीबी शोषण में पिसते जा रहे थे और बुद्धिमान और समर्थ कहे जाने वाले भारतीयों को उनके दुख दर्द और उनकी भौतिक आवश्यकताओं की कोई परवाह ना थी ऐसे समय में स्वामी जी ने हम को झकझोर दिया उन्होंने कहा कि तुम्हारा हिंदुत्व पर गर्व करना तब ही सार्थक होगा जब तुम प्रत्येक हिंदू को अपना भाई मानो उसके सुख दुख में भागीदार बनो।
तभी और केवल तब ही तुम हिन्दू कहलाने के अधिकारी हो, जब इस नाम को धारण करने वाला प्रत्येक व्यक्ति- वह चाहे जिस देश का हो, वह चाहे तुम्हारी भाषा बोलता हो अथवा कोई अन्य-प्रथम मिलन में ही तुम्हारा सगे से सगा तथा प्रिय से प्रिय बन जाय ! तभी और केबल तब ही तुम हिन्दू कहलाने के अधिकारी हो, जब इसको धारण करने वाले किसी भी व्यक्ति का दुःख-दर्द तुम्हारे हृदय को इस प्रकार व्याकुल कर दे मानो तुम्हारा अपना पुत्र संकट में हो ।तभी और केवल तब ही तुम हिन्दू कहलाने के अधिकारी हो, जब इस नाम को धारण करने वाला प्रत्येक व्यक्ति- वह चाहे जिस देश का हो, वह चाहे तुम्हारी भाषा बोलता हो अथवा कोई अन्य-प्रथम मिलन में ही तुम्हारा सगे से सगा तथा प्रिय से प्रिय बन जाय ! तभी और केबल तब ही तुम हिन्दू कहलाने के अधिकारी हो, जब इसको धारण करने वाले किसी भी व्यक्ति का दुःख-दर्द तुम्हारे हृदय को इस प्रकार व्याकुल कर दे मानो तुम्हारा अपना पुत्र संकट में हो । तभी और केवल तब ही तुम हिन्दू कहलाने के अधिकारी हो सकोगे, जब तुम उनके लिए सब कुछ सहने को तत्पर रहोगे । उन महान्‌ गुरु गोविन्द सिंह के समान, जिन्होंने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए अपना रक्त बहाया, रणक्षेत्र में अपने लाडले बेटों का बलिदान होते देखा, पर जिनके लिए, उन्होंने अपना तथा अपने सगे सम्बन्धियों का रक्त चढ़ाया, उनके ही द्वारा परित्यक्त होकर वह घायल सिंह कार्यक्षेत्र से चुपचाप हट गया और दक्षिण जाकर चिरनिद्रा में खो गया । किन्तु जिन्होंने कृत्घ्नतापूर्वक उनका साथ छोड़ दिया था, उनके लिए अभिशाप का एक शब्द भी उस वीर के मुंह न फूटा । यह है आदर्श उस महान्‌ गुरु का !स्मरण रहे।यदि तुम अपने देश का कल्याण करना चाहते हो तो तुम में प्रत्येक को गुरु गोविन्द बनना होगा । भले ही तुम्हें अपनें देशवासियों में सहस्रों दोष दिखाई दें पर ध्यान रखना कि उनमें हिन्दू रक्त है । वे तुम्हें हानि पहुंचाने के लिए सब कुछ करते हों तब भी वे प्रथम देवता हैं जिनका तुम्हें पूजन करना है । यदि उनमें से प्रत्येक तुम्हें गाली दें, तब भी तुम्हें उनके लिए स्नेह की भाषा बोलनी है और यदि वे तुम्हें धक्का देकर बाहर कर दें, तब भी तुम कहीं दूर जाकर उस शक्तिशाली सिंह-गोविन्द सिंह के समान मृत्यु की गोद में चुपचाप सो जाना । ऐसे ही व्यक्ति हिन्दू कहलाने का वास्तविक अधिकारी है, यही आदर्श हमारे सामने रहना चाहिए । आओ, हम अपने समस्त विवादों एवं आपसी कलह को समाप्त कर स्नेह की इस भव्य-धारा को सर्वत्र प्रवाहित कर दें ।
स्वामी विवेकानंद जी ने धर्म और अध्यात्म की व्याख्या युगा नो कॉल करते हुए सभी भारतीयों को और उससे भी बढ़कर सभी मांगों को यह संदेश दिया कि सभी प्राणियों में परमात्मा शिव का वास होने से उन सब की सेवा को नारायण सेवा समझकर ही करनी चाहिए स्वामी जी गुलामी में फंसे हुए इस भारत देश को पुनः वैभव संपन्न और अध्यात्म संपन्न बनाना चाहते थे उनका यह मानना था कि यह भारत अपने धर्म के मार्ग से चुप हो जाने के कारण ही गुलाम हुआ है बड़े-बड़े धार्मिक लोग सामान्य जन की परवाह न करते हुए आज मन किस हाथ से करना है ऐसे व्यर्थ की बातों में फंसे रहकर समय व्यर्थ करते गए आपसी कलह आपसी फूट और सबसे बड़ी ईशा भाव से ग्रस्त भारतीय लोग गुलाम हो गए लेकिन अभी भी भारत में धर्म जीवित है और स्वामी जी ने उस धर्म की चिंगारी को ही यज्ञ अग्नि मनाने का कार्य किया आचार्य शंकर की दिव्य मेधा और भगवान बुद्ध की करुणा का स्वामी जी में अद्भुत संगम हुआ था उन्होंने पश्चिम को कहा कि भारत को तुम्हारे मिशनरीज धर्म की आवश्यकता नहीं है भारत को आज किस बात की आवश्यकता है तुमसे वह भौतिक ज्ञान सीखने की है मैं भारत से अमेरिका तुमको आध्यात्मिक ज्ञान सिखाने आया हूं और बदले में मैं चाहता हूं कि तुम करोड़ों भारतीयों को भौतिक जीवन में उन्नत करने में सहायता करो तुम मिशनरीज लोगों ने भारतीयों को जितनी और सभ्यता और अज्ञानता में गालियां दी है वह हिंद महासागर में पड़े कीचड़ से भी ज्यादा है यह भारत सीताराम का देश है यहां भारत सावित्री का देश है यह भारत युद्ध भूमि में अर्जुन को गीता ज्ञान कराने वाले भगवान श्री कृष्ण का देश है


Tuesday, December 29, 2020

फ्रांस के सेक्युलर गणतंत्र पर आघात :एक ग्लोबल समस्यावर्तमान

वर्तमान विश्व के अंदर सभी दुनिया के देशों के लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सबसे ज्यादा यूरोप के देशों के लोकतंत्र की व्यवस्था का है | आधुनिक लोकतंत्र यूरोपियन लोकतंत्र की नकल है कहना भी  कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी पूरी दुनिया पर राज करने वाले इन यूरोपियन ने हर देश को लूट कर बहुत संपत्ति अर्जित की थी |अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे बड़े महाद्वीपों पर तो अधिकांश आबादी को समाप्त कर यूरोपियन लोग बसे और दूसरे देशों से भी वहां कभी दास के रूप में कभी प्रोफेशनल के रूप में लोग बुलाए गए |धीरे-धीरे समय के साथ वहां मानव सभ्यता का विकास हुआ एवं इन्होने सभी नस्लों के ,सभी जातियों के ,सभी मजहबों  के ,सभी प्रकार की संस्कृतियों के लोगों को एक नागरिक के रूप में अधिकार मिलना वहां प्रारंभ हुआ |  इस प्रकार से प्राय अधिकांश लोकतांत्रिक देशों के अंदर एक संविधान का गठन हुआ है| इस संविधान की दृष्टि में उस देश के सभी नागरिक सम्मान है और सभी नागरिकों को उस देश की संस्कृति और परंपरा के अनुसार स्वतंत्रता प्राप्त है|  सभी लोकतांत्रिक देश वयस्क मताधिकार के द्वारा सरकार चुनने की आजादी अपने सभी नागरिकों को बिना जाति-वर्ग-लिंग-धर्म-संस्कृति के आधार पर भेद किए हुए देते हैं इस सबके बीच फ्रांस के लोकतांत्रिक देश का क्या महत्व है और आज क्यों पूरी दुनिया के अंदर फ्रांस के राष्ट्रपति इम्मानुएल मेक्रोन की कहीं प्रशंसा हो रही है तो कहीं निंदा हो रही है इसको हम को समझने से पहले हमको भारत के जगत विख्यात स्वामी विवेकानंद जी महाराज का यूरोप के इस  देश फ्रांस के बारे  में कहा वचन समझना होगा वो फ्रांस को  स्वतंत्रता का जन्म स्थान बताते हुवे कहते  है

France is the home of liberty. From here, the city of Paris, travelled with tremendous energy the power of the People, and shook the very foundations of Europe. From that time, the face of Europe has completely changed, and a new Europe has come into existance. 'Liberté, Egalité, Fraternité, is no more heard in France; she is now imitating other ideas and purposes, while the spirit of the French Revolution is still working among the other nations of Europe.

न केवल यूरोप बल्कि पूरा का पूरा विश्व फ्रांस की राज्य क्रांति के फलस्वरूप इन तीन शब्दों स्वतंत्रता समानता और बंधुत्व की प्रेरणा से बहुत ही ज्यादा प्रभावित हुआ है| सभी संविधान जो लोकतंत्र के माध्यम से चलते हैं उन्होंने इन तीन शब्दों को स्वीकार किया है| भारत के संविधान निर्माता भारत रत्न बाबा साहब अंबेडकर ने भी हमारी प्रस्तावना के अंदर स्वतंत्रता समानता और बंधुत्व की बात कही है हां यह बात जरूर है कि बाबा साहब के मतानुसार उन्होंने यह 3 शब्द फ्रांस की राज्य क्रांति से ना लेकर प्राचीन तथागत के बौद्ध संघ धर्म से लिया है पर जो भी हो इससे हमको आधुनिक लोकतंत्र पर फ्रांस के प्रभाव की व्यापकता का अनुमान होता है |

 

       फ्रांस ने अपने परिपक्व लोकतंत्र को अनेक चरण में पूरे कर कर वर्तमान स्थिति तक पहुंचा है वर्तमान संविधान 1958 में स्वीकार किया गया था क्योंकि सारा यूरोप और पश्चिम एशिया रिलीजन की कट्टरता और सत्ता पर लोह जकडन  से ग्रसित रहा है और  मानव अधिकार पर वहां पादरी का पहरा था पॉप राजा से भी बड़ा बन गया था  इस मजहब  एवं चर्च की राज्य व्यवस्था में अनुचित हस्तक्षेप के कारण ही यूरोप में 15 वीं शताब्दी में पुनर्जागरण हुआ तो सारे यूरोप के देशों के अंदर यह धारणा थी  चर्च और सत्ता को राजव्यवस्था में अलग रखना चाहिए जिसे उन्होंने सेकुलर नाम दिया इस सेकुलर शब्द का चिंतन फ्रांस में बहुत ही गहराई तक हुआ है और फ्रांस के लोकतांत्रिक मनीषियों ने यह निष्कर्ष निकाला कि जो भी रिलीजन है उसका सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं होना चाहिए न केवल राज्य की दृष्टि में सभी नागरिक समान है बल्कि नागरिकों ने भी सार्वजनिक स्थानों पर रिलीजन को बहुत ही ज्यादा आक्रमक रूप में प्रस्तुत नहीं करना चाहिए|

France. Political map: boundaries, cities. Includes locator.

     यह फ्रांस देश की अपनी एक सोच है क्योंकि वह सेमिटिक रिलिजन के द्वारा संगठनात्मक गतिविधि से ऐतिहासिक रूप से प्रभावित रहा है फ्रांस ने अपने इस सेक्युलरिज्म के साथ कभी समझौता नहीं किया है शायद यही कारण रहा कि जब मुसलमानों को अनेकों देशो  से शरणार्थी के रूप से फ्रांस में आने का यूरोपीय यूनियन द्वारा कहा गया या फिर संयुक्त राष्ट्र संघ  द्वारा कहा गया तो फ्रांस ने मुक्त हस्त से सभी प्रकार के शरणार्थियों का स्वागत किया |फ्रांस के संविधान के आर्टिकल फर्स्ट में किसी भी प्रकार से सरकार के किसी भी प्रकार के कार्यों पर रिलिजन का शामिल होना और रिलिजन के प्रभाव  के द्वारा राज्य की नीति निर्धारण करने वाली समितियों का प्रभावित होना प्रतिबंधित  किया गया है सरकार को रिलिजन के मामले में हस्तक्षेप करने से भी रोका गया है इस हेतु फ्रांस ने लेसिक के माध्यम से मनुष्य की निजी लाइफ और उसके सार्वजनिक वातावरण में पर्याप्त भेद किया है फ्रांस के मतानुसार सभी नागरिक केवल नागरिक है और वह अपनी किसी भी पहचान और किसी भी प्रकार के मजहबी विश्वास और नस्ल के कारण राज्य की दृष्टि में विशेष अधिकार या कम अधिकार के योग्य नहीं है सभी समान है |फ्रांस की सरकार किसी भी प्रकार के मजहबी संघटन और मजहबी मौलाना और पादरी आदि के प्रभाव में नहीं आ कर अपना राजनैतिक और नीतिगत निर्णय लोकतंत्र से  करेगी|

   राज्य चर्च और स्टेट को हमेशा अलग रखेगा फ्रांस में इस प्रकार के सेक्युलरिज्म  का पालन बहुत ही निष्ठा और सच्चाई के साथ किया जाता है| वहां पर रिलीजन को क्रिटिसाइज यानी आलोचना करने का भी अधिकार सबको प्राप्त है अधिकांश मुस्लिम देशों में प्रचलित ईशनिंदा जैसा कोई कंसेप्ट वहां पर नहीं है वहां  व्यक्ति को  अपनी बात रखने की पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त है अगर कोई व्यक्ति चाहे कि वह किसी रिलिजन की आलोचना कर सकता है |वह किसी भी रिलीजन के किसी भी व्यक्तित्व की निंदा कर सकता है| उस पर कार्टून बना सकता है उस पर जोक बना सकता है यह सब फ्रांस के कानून के तहत अपराध की श्रेणी में नहीं आता है |

   फ्रांस की इस व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर आघात तब लगा जब फ्रांस द्वारा दिए गए शरणार्थी मुसलमानों ने इस आजादी का विरोध किया और चार्ले हेब्दो  नामक एक कार्टून पत्रिका पर आतंकवादियों ने हमला करके उसमें काम करने वाले निर्दोष पत्रकारों और कार्टूनिस्ट को जान से मार दिया|

 एक कार्टून बनाने की कीमत एक मनुष्य के जान से बड़ी होती है

ऐसा इस्लामिक आतंकियों ने दुनिया को बताया उसके बाद से ही फ्रांस के अंदर सेकुलरिज्म और इस्लामिक मनोवृति पर बहुत चर्चा चल रही है इस चर्चा का असर पूरे दुनिया के लोकतांत्रिक देशों में भी पड़ा है जहां अनेक देशों का मत है कि उनको इस्लामिक सेंटीमेंट्स और इस्लामिक रीति-रिवाजों का सम्मान करना चाहिए वहीं अनेक देशों का मत है कि इस्लाम को भी समय के अनुसार अपने आप को बदल कर अपने से भिन्न विचार वाले को भी स्थान देना चाहिए| यह बात प्रमाणित है कि पूरी दुनिया आज इस्लामिक आतंकवादियों से पीड़ित है और इस्लामिक आतंकवादी अपने सारी गैरकानूनी और आपराधिक एवं मानवता विरोधी गतिविधियों के लिए इस्लाम की किताबों का ही सहारा लेते हैं और अपनी बात को जस्टिफाइड करने के लिए वह इस्लाम के प्राचीन हदीस का उदाहरण देते हैं दूसरी तरफ कुछ मुस्लिम ऐसे भी हैं जो आतंकवादियों के इस कृत्य को इस्लाम विरोधी बता  कर उनको गैर मुस्लिम सिद्ध करते हैं और उनको भटके हुए मुसलमान बताते हैं|

    वास्तव में देखा जाए तो अगर हम किसी देश में जाकर शरण लेते हैं तो हमको उस देश के कानून का सम्मान करना चाहिए उस देश के संविधान के अनुसार अपने आप को चलाना चाहिए परंतु बार-बार मुस्लिम लोग इस बहुत ही आधारभूत बात को इनकार करते हैं वह चाहते हैं कि प्रत्येक देश उनके हिसाब से चलें प्रत्येक देश उनकी शरीयत के अनुसार अपने कानून में फेरबदल करें प्रत्येक देश उनके अपने रीति-रिवाजों तौर-तरीकों को बहुत सम्मान दें प्रत्येक देश उनकी आईडियोलॉजी चाहे वह मध्ययुगीन ही क्यों ना हो उनको ना केवल सम्मान दें बल्कि उसकी सत्ता को स्वीकार करें इस प्रकार की मनोवृति विश्व शांति को गंभीर खतरा है|इस इस्लामिक सुपर मेसी की सोच से नुकसानहै |

    क्या कोई हिंदू या ईसाई देश या यहूदी बौद्ध  देश इस बात को स्वीकार कर सकता है कि बहुविवाह अच्छा है? हलाला जैसी कुप्रथा अच्छा है ? या किसी कार्टून बनाने के  कथित अपराध में किसी निर्दोष की हत्या कर दी जाए ?क्या कोई हिंदू जो प्रतिदिन भगवान श्री राम और भगवान श्री कृष्ण आदि हिंदुओं के पूज्य भगवानों की निंदा सुन कर भी केवल मुस्कुरा कर देता है इस बात को स्वीकार कर सकता है कि इस्लाम मत के पैगंबर मोहम्मद की कोई आलोचना करें और उसके बदले में पूरे के पूरे मुस्लिम समुदाय मरने मारने पर उतारू हो जाए ?क्या यह सभ्य समरस समाज का लक्षण है ? https://cdn.shortpixel.ai/client/q_lossy,ret_img/https:/sanmarg.in/wp-content/uploads/2020/10/bangladesh-protest-against-france-1-e1603881641918.jpg

जाहिर सी बात है कि आज फ्रांस के अंदर 9% मुस्लिम हैं इसलिए वहां से यह आवाज उठ रही है कि फ्रांस अपने शताब्दियों पुराना संविधान और इतिहास के आधार पर खड़ा उनके देश की सोच बदल दें और वह केवल मुस्लिम के लिए सेकुलरिज्म को छोड़कर एक प्रकार के  एसे कृत्य को अपनाएं जिसमें मुस्लिम के लिए विशेष अधिकार हो |पर फ्रांस ने एसा करने से स्पष्ट मना ही नहीं किया है बल्कि  अभी इस लेख लिखी जाने तक वो एक ड्राफ्ट भी ली आया है जिसमे

1 विदेशी फंडिग और प्रभाव पर अंकुश लगा दिया है |

2 किसी भी चिकित्सक द्वारा इस्लामिक रीती रिवाज के लिए कियी जाने वाले स्त्रियों के बर्बर परिक्षण वर्जिनिटी टेस्ट  को बेन कर दिया है

3 रेडिकल इस्लाम को शत्रु मान सभी संगठनो से लिखित मे  लिया है कि वो रिपब्लिक ऑफ़ फ्रांस के कानून को मानेंगे |

4 बच्चो के रिलियस होम स्कुल पर सख्ती की है सभी को सेक्युलर स्कुल लेना जरुरी है |

5 मुस्लिम एसोशियन के स्कुल बंद कर दिए गए है जो फंडामेन्टलिज्म को बढावा देते है |

6 लव जिहाद पर हथोडा चलाते हुवे एसी किसी भी मेरिज की काउंसलिंग हो सकती है जिसमे फ़ोर्स मेरिज का संदेह हो |

7 बहुविवाह बेन कर दिया |

आदि बहुत से प्रावधान किए गए है  इसका प्रभाव पूरे के पूरे दुनिया के लोकतांत्रिक देशों पर पड़ना तय है जहां सभी प्रकार के अपने को लिबरल कहने वाले लोगों ने फ्रांस के नए राष्ट्रपति के चयन पर उनका बहुत स्वागत किया था और यह अपेक्षा की थी कि वह ज्यादा से ज्यादा मुस्लिम शरणार्थियों को अपने यहां शरण देंगे राष्ट्रपति मेक्रोन ने भी उन को निराश नहीं किया था  उनकी नीतियां पहले से अधिक उदारवादी और मुस्लिम शरणार्थियों के प्रति सहिष्णुता की रही थी |लेकिन उसमें बदलाव तब आया जब एक हाई स्कूल के अध्यापक सैमुअल पेटी की सरेआम उनके विद्यार्थियों के सामने एक दूसरे जो चेचन मूल का १८ सा विद्यार्थी ने गला काट कर हत्या कर दी उनका अपराध  केवल इतना था कि वह अपने बच्चों को चार्ली हेब्डो द्वारा प्रकाशित किए हुए कार्टून को बताकर फ्रांस के सेकुलरिज्म को समझा रहे  था |यह बात नहीं है कि उसने उन मुस्लिम बच्चों को बेइज्जत या अपमानित करने के लिहाज से ऐसा किया बल्कि उसने तो उन बच्चों की भावना का विशेष ख्याल रखते हुए उनके लिए अलग क्लास लगवाई थी आप विचार करें कि वह क्या मानसिकता है कि जिस देश में उन्होंने शरण ली है उसी की दूसरी पीढ़ी ने इस प्रकार के कुकृत्य और मानवता विरोधी घटनाक्रम को अंजाम दिया|इसी प्रकार चर्च में प्राथना कर रही निर्दोष महिला का गला रेत दिया जबकि वो एक सामन्य सी महिला थी |

 बहुत ही स्पष्ट बात है कि पूरी दुनिया को दो भागों में बांटने वाला इस्लाम अपने इस नई रणनीति के तहत शरणार्थी बनकर यूरोपियन देशों में घुस रहा है भारत में भी कभी बांग्लादेशी कभी रोहिंग्या बन के घुसता है और इसको दारुल हरब से दारुल इस्लाम बनाने की तैयारी कर रहा है|फ्रांस इस सोच को रोकने में कृत संकल्प है जिसके साथ दुनिया के दुसरे अनेक देश भी खड़े है |ग्रूमिंग जिहाद को रोकने योगी जी ने उत्तर प्रदेश में कानून बनाया है भारत के दुसरे राज्य  भी  इस समस्या को मान रहे है  फ्रांस के देख के इजरायल अमेरिका आदि देश सचेत हो रहे है तुर्की पाकिस्थान जैसे देश विरोध कर रहे है भारत आज फ़्रांस के साथ खड़ा है और यह अपेक्षा है कि इस्लाम अपने को समय के साथ बदल के सभी को स्वीकार्य करेगा ताकि विश्व शान्ति को खतरा न हो |france anti muslim protests: Anti France Protests by Muslims: मुस्लिमों का  फ्रांस के खिलाफ विरोध प्रदर्शन - Navbharat Times

Saturday, November 28, 2020

शास्त्र अनुसार शक्ति की साधना करना ही लव जिहाद का उपाय

सनातन धर्म में धर्म अर्थ काम मोक्ष का समन्वय है और प्रवृत्ति और निवृत्ति मार्ग स्पष्ट है।बिना प्रवृत्ति के निवृत्ति कठिन है।
काम के बहुत ताकतवर तत्व है इसकी महत्वता कितनी है ये इससे ही समझ लें कोई भी कार्य बिना काम की प्रेरणा से नही हो सकता।
एक विदेशी दार्शनिक ने तो काम को ही जगत का कारण बताया यद्यपि उसके लिये काम का अर्थ केवल नर-नारी मैथुन तक था पर काम केवल इतना ही नही है ये प्रत्येक इच्छा का नाम है।
अपनी प्रत्येक इच्छा की पुर्त्ती करना सनातन धर्म हैं।
आपको धन सम्पदा स्त्री भोग विलास स्वर्ण मुद्रा वाहन पशु आदी सब चाहिए और ये प्राप्त करना अधर्म नही बताया है शास्त्र में।उसकौ प्राप्त करने के लिये बहुत परिश्रम करना बताया।
वेदिक ऋचाओ में  ईश्वर से अपने शत्रुओ को नाश करने का,खूब धन सम्पदा प्राप्त करने का,पशु आदी प्राप्त करने की प्राथना है अनुष्ठान है सनातन धर्म इसको कभी त्याज्य नही मानता है काम शास्त्र के रचीयता वात्सयायन हुवे है जिन्को अनेक लोग या तो बृहस्पति कहते है या चाणक्य।
दोनो ही धर्म और अर्थ के आचार्य है।आज हिन्दू जाती जिस दुर्भाग्य का शिकार हुई है वो बौद्धो और इस्लाम के बाद इसाईयो को लादी गई फर्जी नैतिकता है जिसमे नैतिक जैसा कुछ नही है केवल मिथ्याचार है कुण्ठा है।
जबकी पूर्वज तो इसके ठीक उलट थे।
वो काम को भी सहज ही लेते है कोई टेबू की तरह नहीं।
होली आदी के प्रसंग पर जिसे हम अश्लील कहते है वैसे गायन का भी विधान बताया।वास्तव मे अश्लील कुछ है ही नही।बस स्थान और प्रसंग है।विज्ञान की क्लास में खी खी करते हंसते बच्चे आज भी मेरे को स्मरण है जबकी पढ़ाने वाले अध्यापक बहुत ही सहज थे विज्ञान द्वितीय प्रथम अध्याय ही था जनन।और नर मादा दोनो के पुरे शारिरीक विन्यास का ज्ञान था सचित्र।
काम एक अग्नि है जो सृजन करती है जो सृष्टि को रचने मे प्रजापति की सहायक है।उस ब्रह्म के मन में संकल्प उठा कि मै एक हुँ अनेक हो जाउ।एको बहुस्याम।
वो संकल्प मात्र से अनेक हो गया।
उसका यह संकल्प ही काम है।जिसे हमारे पूर्वजो ने नमस्कार किया है भगवान ने तो स्वयं कहां है
शास्त्र विधि के अनुसार ही काम की पुर्त्ति करना और जो इसकी अवेह्ल्ना करता वो दुख भोगता है ।बहुत लोग ये मानते है कि वेद मनुष्य की उत्पत्ति परमात्मा के शरीर के अंगो से बताता है उनका ये मानना उनके अज्ञान को दर्शाता है ऋग्वेद में तो बहुत ही स्पष्ट आज्ञा है।
विष्णु॒र्योनिं॑ कल्पयतु॒ त्वष्टा॑ रू॒पाणि॑ पिंशतु । आ सि॑ञ्चतु प्र॒जाप॑तिर्धा॒ता गर्भं॑ दधातु ते ॥१॥
गर्भं॑ धेहि सिनीवालि॒ गर्भं॑ धेहि सरस्वति । गर्भं॑ ते अ॒श्विनौ॑ दे॒वावा ध॑त्तां॒ पुष्क॑रस्रजा ॥२॥
हि॒र॒ण्ययी॑ अ॒रणी॒ यं नि॒र्मन्थ॑तो अ॒श्विना॑ । तं त॒त गर्भं॑ हवामहे दश॒मे मा॒सि सूत॑वे ॥३॥10/184
ये सूक्त है भगवान विष्णू से जिसमे कामना गर्भ से उत्तम सन्तान होने की कामना की जा रही है।इसके पहले के सूक्त में तो ओर भी मजेदार बात है
अपश्यं त्वा मनसा चेकितानं तपसो जातं तपसो विभूतम्.
इह प्रजामिह रयिं रराणः प्र जायस्व प्रजया पुत्रकाम.. (१)
हे कर्मों के ज्ञानी, तप से उत्पन्न एवं तपस्या से उन्नत यजमान! मैंने अपने मन की आंखों
से तुम्हें देखा है. तुम यहां संतान एवं धन पाकर प्रसन्न बनो एवं पुत्र की कामना से संतान के
रूप में जन्म लो. (१)
अपश्यं त्वा मनसा दीध्यानां स्वायां तनू ऋत्व्ये नाधमानाम्.
उप मामुच्चा युवतिर्बभूयाः प्र जायस्व प्रजया पुत्रकामे.. (२)
हे पत्नी! मैंने मन की आंखों से तुम्हें दीप्तिशालिनी व ऋतु के अनुसार अपने शरीर में
गर्भाधान की कामना करती हुई देखा है. हे पुत्र की कामना करने वाली! मेरे समीप तुम उत्तम
तरुणी बनो एवं पुत्र उत्पन्न करो. (२)
अहं गर्भमदधामोषधीष्वहं विश्वेषु भुवनेष्वन्तः.
अहं प्रजा अजनयं पृथिव्यामहं जनिभ्यो अपरीषु पुत्रान्.. (३)
मैं होता हूं, ओषधियों में गर्भ धारण करता हूं एवं सभी प्राणियों में गर्भ धारण का
कारण बनता हूं. मैंने धरती पर प्रजा को जन्म दिया है. मैं यज्ञ करके सब नारियों में पुत्र
उत्पन्न कर सकता हूं. (३)

याने वेद भगवान की तो आज्ञा है आप पना यह लोक भी सुख पुर्वक जीओ और अग्निहोत्र आदी करके पर लोक मे भी उत्तम लोक प्राप्त करो।यहां हिन्दू काल्पनिक नैतिकता मे अपनी स्त्री खोते जाते है।उन्का समझ नही आता क्या हुआ?क्यों एसा हो रहा है?
अरे! काम तो बहुत ताकतवर है जब तक ये प्रबल हो के सर मे हावी हो जाये उससे पहले ही उसकौ पहचान करके उसकौ उर्द्धगामि बना दो।
तभी न 
वो वीर्य/रज
से बढते बढते प्रज्ञा होगा न।
स्त्री स्वयं शक्ति है उसकौ खो देने पर सनातन स्वयं डूब जाता है अत: लव जिहाद का जवाब ही केवल शक्ति का संचय करना है शक्ति  के स्वरुप को जानकर तद अनुसार परिश्रम करना है बौद्धो की तरह बिना योग्यता के सन्यास लेना नही।एसा करने से ही मठ विहार पतन में फंस गये और ये यहां से नष्ट हो गया।
ये केवल पढ्ने से नही होना है मेरा एक मित्र है वो हमको वात्सायन की काम सूत्र का ज्ञान देता था एक बार हम लोग फुटबॉल खेलने गये वहाँ उसने इसकी क्लास लगा दी।अध्ययन शिल प्रवर्त्ति है तो काम से धर्म धर्म से अर्थ अर्थ से मोक्ष तक वो आया।
फिर उसका विवाह हो गया।
तब सब समाप्त।
जबकी होना क्या चाहिए?
गृहस्थ जीवन में ही काम अर्थ धर्म मोक्ष का परिक्षण है ये ही साधना है ये बेलेंस है।तब जीवन में रस आयेगा आनन्द आयेगा।तब काममे भी आनन्द होगा और धर्म में भी।
कार्य क्षेत्र मे अर्थ मे भी आनन्द आयेगा और निष्ठा से मोक्ष में भी।
तभी शक्ति के स्वरुप को पहचाने मे हम भूल नही कर पायेंगे।लव जिहाद का हल मेरे तो केवल ये ही समझ आया।
हिन्दू युवक पौरुष को जाग्रत करे।बल की साध्ना करें तब ही शक्ति आप्का वरण करेगी।और ये वेद भी कह रहा है।
बडे होते किशोर वय युवक युवती इस बात को जाने कि आदिम अवस्था मे रहने वाले जनजाती भी प्रेम करते है स्वतंत्र रह्ते है उनकी इच्छा हो सर्व परि है पर वो कबीला का नुकसान नही करते।
आपके प्रेम से समाज को हानी हो रही है तो वो अधर्म है आपको नष्ट करेगा।
कृष्ण की तरह सुभद्रा के प्रेम को पार्थ की तरफ मोडना है उसके पहले कि कोइ दुर्योधन ले जाये।
संयोगिता का वरण पृथ्वी राज ही करेंगे।
राज सिन्ह ही औरंगजेब के जबड़े मे जाने से क्षत्रिय कुमारी को ब्चाएन्गे।
अत: स्त्री को टेबू नही है वो भी वैसी ही मानव है जैसे आप हो।वो भी उतनी ही हिन्दू जितने आप।बस आप को ही मन में झिझक है संकोच है वर्ना उसने तो हजारो सालो से हिन्दुत्व धारण कर रखा है।
आनन्द से जिये।
लव जिहाद से शिकार होने से सबकौ बचायेंगे।
भगवान श्री राम ने कुल धर्म की मर्यादा और प्रेम के लिये अपना और शत्रुओ का रक्त बहाया और रावण का नाश करके भगवती जानकी को मुक्त कराया उसके बाद जानकी को कहा कि अब तुम्हारी इच्छा है वहाँ जाऔ।चाहे जिससे विवाह करो।जानकी को दुख हुवा।क्रोध नही।याने राम जी की दृष्टी मे भी जानकी की इच्छा ही सर्वोपरि है।
चंदेल राजाओ द्वारा बनाये गये इन अदभुत कलाकृतियाँ को देखें
इसको देख्के आपके मन मे क्या जागता है?विचार करें कितना आपका काम धर्म सिद्ध हुवा है उसका मापन है ये।
ओशो से एक ने पूछा था मै यहां ज्ञान ध्यान के लिये आया तो देखता हुँ सब तरफ सुन्दर स्त्रियाँ सुन्दर जोड़े घूम रहे है मेरा मन नही लगता है ज्ञान ध्यान में।तो ओशा हँसा बोला तुन्हारे मन में काम बहुय वर्षो से दबा पडा है और तुमको उसकौ दबा के योगी हो जाना चाहते हो?या एसा ही कुछ कहा था।
याने गृहस्थ मे रह के सब सुख को प्राप्त करना।
उसके बाद सब त्याग देना।
ये ही सनातन धर्म है।
एषो धर्म सनातन
अर्जुन हो जाना 
जय श्री राम

Friday, April 5, 2019

हम छोड़ नहीं सकते

समस्या ये ही है हम छोड़ नही सकते
मुंख मोड़ नही सकते
होंगे बहुत जिनको
न फ्रिक तिंरंगे के अपमान से
न परवाह भारत माँ के अपमान से
पर हम झुक नही सकते
पर हम रुक नही सकते
कुछ कर न पाये तो
अपनी बात को लिख तो
यो ही सकते है
हम छोड़ नही सकते
हम मुंह मोड़ नही सकते
कश्मीर शैव दर्शन का है
कश्मीर कल्हण का है
कश्मीर हरिसिंह का है
कश्मीर प्रेमनाथ का है
कश्मीर श्यामाप्रसाद का है
कश्मीर उन हजारो जवानो का है
जिनके रक्त के कण कण से
सिंचित है ये धरा
उसमे पढ़ने
उन्नत कॅरियर बनाने
एक होनहार छात्र यो गया
वहां नित तिरंगे का अपमान होते देखा
वहाँ मुस्तफा के नाम पे भारत को कुचलते देखा
वो चाहता क्या है??
बस तिरंगा न??
लेकिन उसको मिलता क्या है??
सर पर खून से सना डंडा
नही हम मुख मोड़ नही सकते
नही हम छोड़ नही सकते
गर कुछ कर न पाये
लिखना तो छोड़ नही सकते
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻