Sunday, December 30, 2018

धन्यवाद पीएम सर जो अंडमान के क्रान्तिकारियो को महत्व दिया

अंडमान मात्र टूरिस्ट प्लेस नहीं है ये तीर्थ है उन हजारो क्रांतिकारियों ने जहां अत्यंत कठोर तप किया था अगर शचीन्द्र नाथ सान्याल ने अंडमान में दिन नही बिताए होते तो कभी भी भगतसिंह नही होता क्योंकि वो उनकी बंदी जीवन पढ़ पढ़ कर ही जबरदस्त क्रान्तिकारी हुवा जो क्रान्तिकारियो की गीता बन गई।उल्लास दत्त ने अंडमान में दस साल पुस्तक लिखी थी जो देखते ही देखते नवयुवकों उसमें भी बंगाल के नवयुवकों पर उसका जबरदस्त प्रभाव पड़ा।
अंडमान के जीवन की घटनाएं अनेकों क्रांतिकारियों ने लिखी है जीवंत लिखी हैं जिसको पढ़ कर हम केवल अश्रु ही बहा सकते हैं या उन महान क्रान्तिकारो के अदम्य साहस को अपने ह्रदय में ले सकते हैं।महृषि अरविंद घोष के सगे भाई वारीन्द्र घोष हो या वो जनेऊ पहनने के अधिकार के लिए पागल होने भी तैयार हुवा गुमनाम से क्रांतिकारी।जिसको बिजली के झटके दिए गए बहुत ज्यादा विक्षिप्त हो जाने लर उसको उसकी मातृ भूमि बंगाल भेजा गया धन्य हे बंगला माँ!जो तूने ऐसे पुत्रो को जन्मा।
मनिकतल्ला षड्यंत्र में दस वर्ष की सजा पाया वो अभागा इंद्र भूषण जो अत्याचार की इतन्हा से टूट गया और जेल में आत्महत्या कर ली।
वीर पंजाब की भूमि के भाई परमानन्द हो या ग़दर के या खालसा युग के वीर जिन्होंने पराक्रम का इतिहास लिख दिया।या वो 1857 के क्रांतिकारी जो कभी जिंदा लौट के पंजाब नही जा सकें।
वो नानी गोपाल।जो अंग्रेज और पठान की गालिया नही सुन सका।
कितने कितने नाम गिनाऊ।नामो कामो का अंत होता नहीं है।
कोल्हू में जूते इन बैरिस्टर सम्पादक इंजीनिरस अध्यापकों आदि अनेको ऐसे व्यवसाय के क्रांतिकारी जिनको ब्रिटिश कानून के अनुसार ही लेखन का काम देना था परंतु.....।
इन सबके शिरोमणि वो दो सगे भाई।
जो त्याग बलिदान और रक्त अर्पण की पराकाष्ठा बन गए।जीवंत किवदंती बन गए
सगे भाइयो को पता नहीं वो बन्द है एक ही जेल में।
सावरकर कोई मराठी चितपावन ब्राह्मणों की एक उपजाति का नाम नहीं है बल्कि इस हिन्दू राष्ट्र की परीक्षा की घोतक है जिसने इनको कुछ नहीं दिया।इनका बस इतना ही दोष था कि वो चितपावन ब्राह्मण थे जिन्होंने अंग्रेजो को इतना ज्यादा तंग किया कि अंग्रेजों ने इस जाति के खिलाफ अकादमिक अभियान चला डाला।जिसका शिकार सारा हिन्दू समाज बना और आज भी बन रहा है।
भारत के प्रधानमंत्री ने आज जब उन हजारो क्रान्तरिकारीयो को नमन किया तो लगा जैसे किसीने उन रिसते घावों पर उपचार किया है।
ये कार्य हिंदुत्व का ही हैं।
थेंक्स पीएम सर।
आज ब्राह्मण के ख़िलाफ़ जो अभियान चलाया जाता है तो कभी कभी मैं सोचता हूँ कि ऐसे हजारों ने गुमनाम सा बलिदान नही दिया होता तो आज किसी गौरे के तलवे चाटने पड़ते तब छोटी सी नौकरी पाते।
फेंकना आसान है करना बहुत मुश्किल।देखे कब भारत इन क्रान्तिकारियो को उनका "हिस्सा" देता है।

Sunday, December 23, 2018

हिंदुओं का देश है हिन्दुओ ने बनाया है जिसको डर लगता है जाए यहां से

पाकिस्थान ने हिन्दुओ का मास मर्डर किया था और आज भी कर रहा हैं जो हिन्दू अत्यंत कमजोर है वंचित है दलित है उनके बहुत से हिस्से को जबरदस्ती से मुस्लिम या ईसाई बना दिया गया है।हमारे जोधपुर में  निरन्तर ऐसे पीड़ित हिंदुओं का आने का सिलसिला वर्षों से जारी है ऐसे हिंदुओं को यहां भारत मे भले ही सरकारों और यहां के हिन्दू समाज से सहायता नही मिलती हो पर वो इसमे भी प्रसन्न रहते है कि कम से कम उनकी बहन बेटियां तो सुरक्षित है कम से कम उनको पाकिस्तान जैसे हालात से तो गुजरना नहीं पड़ रहा है।एक स्वतंत्र और ताकतवर हिन्दू समाज के नाते ये कोई पीठ थपथपाने की बात नही है फिर भी ये हिंदुस्थान और पाकिस्थान का पर्याप्त अंतर बताती है।ये देश हिन्दुओ ने ही बनाया है उनके ही प्रयास से आज अच्छा या बुरा है।इस देश को गाली निकालने वाला हर वो शख्स यहां दे शोक से जा सकता है जिसको यहां से डर लगता है जिस देश मे डर हो उसमे रहने की जरूरत ना है।हिन्दू ऐसे किसी भी व्यक्ति समुदाय को बक्सने के मूड में नही है जो यहां की खाता है और गीत दुसरो के गाता है।विभाजन की मांग हमने नही की थी।विभाजन हो जाने पर भी इस देश को अपने मजहब  के झंडे तले लाने की आसुरी मानसिकता तो कभी पूरी होने देंगे नहीं और ये जो तुम नौटँकी कर रहे हो उससे तो ओर तुमको ही नुकसान है।हिन्दुओ को किसी भी मामले में रक्षात्मक होने की जरूरत नही है।
हमारा देश है हमने बनाया है किसी एरे गेरे को हमको सुनाने की कोई औकात नही इनका कोई कॉन्ट्रीब्यूशन देश को ना है सिवाय दंगा विभाजन और भीख मांगने के।

Saturday, December 22, 2018

हिन्दू परिवार व्यवस्था हिन्दत्व का आधार

हिंदुत्व बहुत ही व्यापक है।हिंदुत्व के कार्य का छोटा सा झलक है मन्दिर।मन्दिर मठ महात्मा ये तीन का मिलन हिंदुत्व को जानने में सहायता करता है पर उतना पर्याप्त नही रहता है क्योंकि ये तो जीवन के कण कण में बिखरा पड़ा है इस कारण ही मंदिरों के टूट जाने से मठों के उजड़ जाने से और महात्माओ की सामूहिक हत्याओं के बाद भी हिंदुत्व पूरी तरीके से नष्ट नहीं हुवा।पर कोई इस गुमान में न रहे कि ये सनातन है अतः कभी नष्ट नही हो सकता है।क्योंकि आज अफगानिस्थान या पाकिस्थान जैसे इलाको में नाम लेवा तक नही बचा है।
इस हिन्दू जीवन पद्धति का आधार है गृहस्थ धर्म।याने परिवार व्यवस्था।इस सयुंक्त हिन्दू परिवार व्यस्वथा ने अभी तक सभी प्रकार के आसुरी तत्वों को पटखनी दे रखी है 90 के दशकों से आया टीवी फिर इंटरनेट आदि से उत्पन्न भयंकर व्यक्तिवादी सोच ने इस परिवार व्यवस्था को तबाह करना शुरू कर दिया है जिस काऱण आज हिन्दू असुरक्षित ही नही बल्कि कैसे भी आसुरी विचार का आसानी से भक्ष्य हो गया है।
इस परिवार व्यवस्था को तोड़ने के लिए ही रात दिन आपका मीडिया नेट चेनल फ़िल्म आदि आदि लगें हैं।पहले तो एक मोहल्ला तक पूरा परिवार लगता था आजकल तो स्वयं का परिवार ही परिवार नही होता क्योंकि उपभोक्ता वाद के फर्जी सोच ने "my life my choice" टाइप मूर्खता पूर्ण सोच हावी कर दी।अतः हिन्दुओ का बहुत जल्दी ही पतन होने की सम्भवना है राह केवल और केवल पारिवारिक मूल्यों के आधार पर बनी हिन्दू परिवार व्यवस्था ही है।
देखो राम जी को उनकी माता कैकई ने या पिता दसरथ ने नही कहा था वनवास जाने को वो अपना धर्म समझ कर स्वयं ही चल दिये।आज वैसे राम मिलना दुर्लभतम है।और वैसा राम अगर पैदा नही हो पा रहा है तो राम जी का हमसे रूठना तय है।
इस लिए ही
हिन्दू बनो हिन्दू रहो हिन्दू जिओ

Thursday, December 20, 2018

हिन्दू बनो हिन्दू रहो हिन्दू जिओ

आप चाहे तो जाती को खारिज कर सकते है आपकी मर्जी है आप चाहे तो जाती तोड़ने का नारा लगाया सकते है पर जाती न तो जाती है न ही खारिज होती है क्योंकि मूलतः जातीय चरित्र को नही समझा।जो नही समझा तो नही पार पा सकते है इससे।जाती तोड़ने का हांका लगाने वाले दिनों दिन अधिक से अधिक संकुचित होते जाते है और जिन पर ये तोहमत है कि वो जातिवादी है वो जाती का ज्यादा लोड लेना बन्द करते जाते है।जाती के नाम से फायदा उठाने वाले कभी भी जाती नही तोड़ सकते है क्योंकि जाती उनको सामाजिक सुरक्षा का आश्वासन देती है अपनी इसी सुरक्षा या असुरक्षा की भावना में हिन्दू द्रोहियों से मिल जाने में भी संकोच नही करती है ये ही जाती सोच का नतीजा होता है।अब बिना जाती को गाली गलौच किये अपने को हिन्दू जाती का मानने से दायरा बहुत बढ़ जाता है अपने आप सामर्थ्य पैदा होता है मैं हिन्दू हूँ इस भाव मे अत्यंत सामर्थ्य निहित है इसकी अनुभूति करनी पड़ती है।पल में हिन्दू पल में पुष्करणा हो जाने से नहीं आता है ये तो दिन के चारो प्रहर,सातों दिन, साल भर उम्र भर का नाता है उम्र ही क्यों जब तक मनुष्य जन्म होता रहेगा तब तक का।अमूमन हिन्दू स्वयं को हिन्दू नही मान जाती मानता है इसलिए बेचारा हर जगह अकेला रहता है जहाँ थोड़े बहुत खुद जैसे सोचने वाले हो तो अलग बात है।वरना तो असुरक्षा के भाव मे ही गुजरता है।अमूमन जाती का भाव शादी ब्याह या वोट में तगड़ा लगता है बाकी जगह तो खैर।
तो इस तरह से जाती हिन्दुओ को नुकसान करने लगती है खुद की जाती का बुरा से बुरा व्यक्ति भी दूसरी जाति के महात्मा से भी बढ़िया लगने लगता है ये वह समय है तब ठीक इलाज की जरूरत है वरना मार्ग भटका जा सकता है अपनी हर सफलता-असफलता व्यक्तिगत न होके जातिगत नजर आती है सारा संसार जाती का बेरी जान पड़ता है गोया सबको आपकी बहुत पड़ी हो।जाती के लिए सत्ता पाने का नशा सा रहता है सत्ता सुंदरी दूर नजर आती है।दलबन्दी का तड़का ऊपर से स्वाद अलग देता है।इस सबके बीच हिंदुत्व कही साइड में खड़ा मिलता है हिन्दुओ के आराध्य टेंट में।
मजे की बात तो ये है कि श्री राम की ही वंशावलि में हुवे बुद्ध अहिन्दू दिखते है।
इसे ही तो कहते है असली भृमजाल।
हिन्दू बनो,हिन्दू रहो,हिन्दू जिओ।

Wednesday, December 12, 2018

जाती तू कब जाती?

देखो भाई अनाप शनाप वंचित वर्गों को कोसने से कुछ होगा नहीं।आपका आकलन गलत है बिल्कुल।
आपकी पराजय आपके जातीय खुमार का नतीजा है जो भौंडापन आपने जाती के नाम से पिछले कुछ महीनों में बहुत ज्यादा और लगभग रोज दिखाया है।समाजिक न्याय के लिए काम करने वाले लोगों ने बहुत पहले चेता दिया था कि जाती का उभार बहुत खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है।जाती अपने मूल चरित्र में हिन्दुओ की दुश्मन है ऐसा सभी जानते है पर मानते नहीं है जाती के उन्माद में कुछ नही सूझता है दूसरे लोग बौने नजर आते हैं।इस उन्माद को प्रश्रय देने से उन्माद ही पनपता है और फिर ये किसी ईमानदार नेक दिल सज्जन व्यक्तियों के लिए थोड़ी पनपता है ये तो माफियाओ, ठगों,बेईमानो,गुंडो के लिए पनपता है उसका नतीजा वो हो होता है जो होना है।
जातीय गुट बनाके सत्ता को हड़प जाने की आसुरी भूख का सबसे बड़ा शत्रु ही हिंदुत्व होता है जो समानता न्याय धर्म अनुशासन संयम जाने कौन कौन से बंधन में बांधता जाता है इसलिए एक बहुत ही सामान्य अनुभव है कि सभी प्रकार के जातिवादी तत्व संघ को उसके स्वयंसेवको को अपना व्यक्तिगत शत्रु मानते है।अब चूंकि हिन्दू राजनीति में सभी जातियो के साथ साथ सामाजिक न्याय समता बंधुत्व और प्रेम की अनुगूंज है तो वो स्थापित सत्ता अधिष्ठानों को हजम नहीं होती है मजबूरी में वे चुप रहे है उसका अर्थ ये नही कि वो साथ हैं।बस समय की प्रतीक्षा में है।
बाकी तो सब फर्जी नारे है  और नारों के क्या......।
अतः बाबा साहब अम्बेडकर की बात हमेशा स्मरण में रखना कि हिन्दुओ ने जाती नहीं छोड़ी तो हिन्दुओ का जाती बचाना भी कठिन हो जाएगा।

Tuesday, November 20, 2018

आंख पर पट्टी बांध कर गांधारी न बनें, धर्म युद्ध के लिए सनद कुंती बनें

महाभारत  बहुत महत्व का महाकाव्य है हिन्दू समाज इस काव्य से बहुत सिख लेता है भगवान कृष्ण का प्रभाव तो सर्व दूर ,सर्वव्यापक तो है ही।पर महाभारत के भी नकारात्मक पात्र है उसका प्रभाव भी हिन्दू समाज पर है।
हम लोग महाभारत से इतना ज्यादा प्रभावित रहते है कि हमारे व्यक्तिगत जीवन का कोई भी काम ऐसा नही है जो इस महाकाव्य में वर्णित न हो।
मतदाता के रूप में हम लोग जब धृतराष्ट्र बन जाते है तो राष्ट्र को दुःख भोगना पड़ता है जब हम गांधारी हो जाते है बच्चे दुर्योधन दुशासन जैसे होने लगते है।
देखो नाम ही कितना जबरदस्त है
सु शासन जो गांधारी का पुत्र है पर गांधारी के आंख पर पट्टी है जिस कारण उसके अधर्मी कार्यो को देख कर वो उसको टोक नही सकती है जिस कारण वो दु शासन बनता है।
अब आप पधारिये कुंती की तरफ।
वो अपने बच्चों को धर्म के लिए लड़ना सिखाती है वो गुरु जनों का सम्मान करना सिखाती है वो नारी का सम्मान सिखाती है उसके बच्चे स्वयं दानमित्र- धर्म-शक्ति-भक्ति-समर्पण-सौंदर्य है।कर्ण उसका बच्चा जरूर है पर परिश्थिति वश उसका शिक्षण वो नही कर पाई थी इस कारण वो स्वार्थ वशीभूत दुर्योधन के साथ है उसके लिये तो स्वयं का स्वार्थ ही सब भले किसी स्त्री का अपमान करना पड़ जाए पर वो तथाकथित मित्र धर्म निभाता है जाने ऐसे मित्र धर्म की किसने महिमा गाई?पर भगवान ने नही गाई भगवान भी तो मित्र है न?उनका एक नाम ही मित्र है।
छोड़िए उस बात को।
तो मैं बता रहा था कि कुंती ने अपने बच्चों को बनाया ऐसा बनाया ऐसा बनाया कि भगवना तक को उसका सारथी बनने को विवश होना पड़ा।याने भगवान को आना पड़ा झूठा पत्तल उठाने।सारा मजमा जमा है हजारो राजे रजवाड़े है खूब ऐश्वर्य बिखरा है और उधर हमारे भगवान ऋषियों के झूठे पत्तल उठा रहे है।
जय श्री कृष्ण।
पर शास्त्र तो उस महायज्ञ को भी चंद पंक्तियों में व्यर्थ बता देते है अगर आपने स्वयं भूखे रहकर भी दूसरे को खिलाया हो।पूरा ब्राह्मण परिवार समाप्त एक भिक्षुक की याचना में उसकी क्षुब्धा शांत करने में।
दरिद्र नारायण भगवान की जय।
और उस के पड़े झूठन से नेवला सोने का हो जाता है पर उसका आधा अंग भगवान द्वारा उठाए गए पत्तलों से भी नही होता सोने का।
कितना कठिन है इस समझना?
विधाता की विधि तो स्वयं विधाता ही जानता है।
तो कुंती अपने दिव्यांग जेठ-जेठानी की सेवा करने नियमित राजमहल जाती है अपने देवर-देवरानी को भी मार्ग दिखाती है अपने बच्चों को सन्देश भेज करधर्मयुद्ध के लिए भी तैयार करती है सामान्य नागरिक जन आदि जो उससे मिलने आते है उनको भी धर्म की प्रेरणा देती है।
पर क्या उसकी किसी से भी आसक्ति है?क्या उसका किसी से मोह है?
युधिष्ठिर राज जीतने के बाद साम्राज्य का सुख जो कुंती ने भी नही भोगा अपनी माँ के चरण में समर्पित करने आता है और उनको राजमहल चलने का कहता है।
पर कुंती उसको धर्म का गृहस्थी का अध्यात्म का उपदेश देती है और कहती है कि प्रजा पालन ही क्षत्रिय धर्म है उसके लिए ही त्याग पूर्वक उपभोग करना।पर मैं तो मेरे माता-पिता तुल्य दिव्यांग जेठ-जेठानी के साथ वन गमन करूंगी और कृष्ण नाम लेते लेते ही प्राण त्याग करूंगी।
जब जोधपुर निर्वाचन आयोग के आंख पर पट्टी बांध कर मतदान न करें वाला एड देखा तो मेरे मन ये सब विचार उमड़ घूमड कर आये तो सोचा उसको अभिव्यक्त कर दूं।
जय श्री कृष्ण।
जय जय श्री राम

Monday, November 19, 2018

प्रेम भाव से मिलें हम,रोकेंगे सब दुर्भाव हम

सदियों से पुष्करणा ब्राह्मण और माली समाज साथ साथ रहते आये है न मेरे पिता जी ने कभी बताया न मेरे दादा जी ने कभी बताया कि एक भी मतलब एक भी ऐसी घटना हुई हो जहाँ इन दोनों के बीच कभी भी कैसा भी कोई विवाद या झगड़ा या मन मुटाव हुवा हो।मेरे तो अनेको अनेक अभिन्न मित्र है।मैं निरन्तर उनसे मार्गदर्शन लेता रहता हूँ उनका अत्यंत सम्मान करता हूँ वो मेरे को टोक भी सकते है ऐसा भी कह देते है " भासा यूं नही बोलणो,यूं नही करणों"।अनेको ठेकेदार,कर्मी भी मेरे अत्यंत प्रिय है वो मुझे न केवल व्यवहारिक ज्ञान बल्कि उत्कृष्ट कोटि का तकनीक ज्ञान भी सिखाते है फिर वो अत्यंत सुशिक्षित मेरे बॉस हो या साधरण या कम पढे पर सड़क भवन आदि निर्माण के अत्यंत विशेषज्ञ।
ये कैसी घटिया राजनीति आई जिसने इस भाईचारे को तोड़ने की कोशिश की।मैं ऐसी सभी राजनीति और राजनीति दलों व्यक्तियों का विरोधी हूँ जो हमारे बीच फुट डालने की कोशिश कर रहे हैं।मेरे घर पर माली समाज के जुड़े संघ के अत्यंत वरिष्ठ जनों का बहुत स्नेह है प्रेम है।
प्रति दिन का मिलना जुलना है।
पता नहीं इन नेताओं की अक्ल पर कैसा पर्दा पड़ गया है।जो लड़ाने झगड़ने की कोशिश में है ताकि स्वयं का लाभ ले सकें।
भाई जी हमको सत्ता से प्यार नही है हमको अनीति के धन से प्यार नही है हमको हमारी माँ से बहुत प्यार है भारत माँ बहुत प्यारी है हमारे सारे ये मित्र  मार्गदर्शक गुरुजन सहकर्मी ठेकेदार कर्मी आदि सभी बहुत प्यारे है।
मेरा सभी मतदाताओं से निवेदन है कि कैसे भी उन्मादी तत्वों के बहकावे में न आवें और इस भाई चारे को खत्म न करें।
नख से लेके सर तक राजनीति गप्पे हांकने के बाद भी मुझे राजनीति से सख्त नफरत है।राजस्थान में ऐसा घटियापन मेने पहली बार देखा है।
क्रांति कथा नग घूम रहे है गुमनामी की राहों में
गुंडे तस्कर फिरते है राजधर्म की बाहों में

Saturday, November 17, 2018

निराश करता निर्लज्ज जातिवाद और सम्प्रदायवाद।

निर्लज्ज जातिवाद और साम्प्रदायिकवाद की जरूरत नही है आप अपना काम गिनाओ।वोट किसको देना है मतदाता तय कर लेंगे।राजनीति में रुचि रखने वाले लोगो के सार्वजनिक पोस्ट अत्यंत निराशा जनक है मुझे अंधकार मय दिखता है बहुत कम है जो अपना काम बता रहे है बस ब्राह्मण को जिताओ ब्राह्मण को हराओ।पुष्करणा को टिकट दिया पुष्करणा को टिकट नही दिया।अरे तुम पढ़े लिखे हो या गधे हो?हद मूर्खता है।ये हाल तब है जब पुष्करणा लगभग शत प्रतिशत साक्षर है।
पढ़ लिख ने भी धूळ फाँकी।
दूजो रे देखा देखी थोरो गुण थे केन लेवने छोड़ो?थोड़ा बडेरा भी कोणी करियो एडो कदेई।
सत्ता एड़ी जरूरी चीज व्हे?थोरी जिम्मेदारी ही कि थे हिन्दुओ ने हमझावता कि भाई जाती-पाती छोड़ ने हम राष्ट्र धर्म रों कोम माते बात करो उन माते ही सब चली।पण केडो घोर कलजुग आयो।
कई कॉम माते बात नही बस पुष्करणा रे खिलाफ पुष्करणा रे पक्ष में।ओछी बात।
ठीक व्हे हेंगो ने दिखे राजनीति आँखियी फूटोडी कोणी पण थे थोरो धर्म क्यो छोड़ो?
अपोने भाईचारे रि प्रेम री सद्भाव री काम काज री।ईमानदारी उ जीवन यापन करने इज बात करनी।वो इज करणों।
आ इज बडेरा हीखा ने गया हा।
राजनीति रे कारण सत्ता हड़पनी अगर होचता तो कदे जयनारायण जी पद कोणी छोड़ता रामराज जी कदे ही पोस्ट ले लेता।
इण वास्ते देख भाल ने लिखो।किनी भी जाति धर्म रे खिलाफ लिखनी जगह मुद्दों री बात करो।तो इज थोरी चोखी लागी वरना भुंडी इज लगानी हॉ।
जातिवाद किसी भी जाति का भला नही करता है।उससे बचकर रहें।और मतदाता बन कर ही विचार करें।
कृपया प्रतिनिधि चुने जाती नही।

Friday, November 16, 2018

दोस्तों के संग मारवाड़ी में गप्प और बेडा पार

समय बहुत महत्वपूर्ण होता है निकल जाने के पश्चात वापस नही आता है अपना अनुभव कहता है कि व्यक्ति को उसकी मातृ भाषा के अतिरिक्त अगर कुछ भी अध्ययन करना पड़ें तो उसके सीखने में बहुत समय लगता हैं क्योंकि हमारा मन किसी भी नई वस्तु को जानने पर उसे पहले से जानी गई वस्तु के रूप में विचार करता है ततपश्चात उसे स्मरण आदि करने की कोशिश करता है।अब आप विचार करें कि मान लीजिए चिकित्सा शास्त्र आपने आरम्भ से ही हिंदी में पढ़ा हो या पढ़ते हो तो उसे कितनी देर में सीखेंगे और उसी शास्त्र को आप आरम्भ से ही इंग्लिश में सीखना आरम्भ करें।मान लीजिए आपकी मातृ भाषा हिंदी है और अपने इंग्लिश भी पढ़ी है।
तो किस भाषा मे आप उस विषय को जल्दी पकड़ लेंगे?
मेरा अनुभव विज्ञान के क्षेत्र में कहता है हिंदी में।और इंजीनियरिंग जो पूरी इंग्लिश में थी तो उसमे समझने में ही इतना समय लग जाता था अब परीक्षा आ गई सेमेस्टर दिया खेल खत्म।अब कोई स्मरण नहीं।
ये ही अगर मातृ भाषा या हिंदी में होता तो?
मेकेनेकील इंजिनियरिंग सबसे कठिन लगती थी उसके लेब में कुछ समझ नही आता था तो मेरा दोस्त Anand Bohra मुझे वो सब "मारवाड़ी" में समझाता था।बस उतना ही।
उसके बाद उस को मैं पढ़ लेता तो अपने शब्दों में जोड़ तोड़ की इंग्लिश बना देता और बेड़ा पार हो गया।समस्या उससे भी गम्भीर आई सी लेंग्वेज में।उसका क्या किया जाए?समझ नही आया।लेट us सी खरीदी।और किसी भी दूसरे से समझने से पहले पढ़ मारी।पर?प्रोग्रामिंग😢
तो पहले पकड़ा Saurabh Vyas को।वो ही समझाना मारवाड़ी में।बस एक क्लास लगी।उसमे मारवाड़ी में ही मेरा उस सेम का सेलेब्स कम्प्लीट।फिर भी हजम नही हुवा।तो मारवाड़ी में ही इस विषय ने गप्पे Rounak Bhansali से Sushil Purohit से Shekhar Kansara से ओर भी लोग थे।कुल मिला कर इसमे भी बेड़ा पार।
विचारणीय बात है कि विषय नया हो तो भी सरलता से समझ मे मातृ भाषा मे ही आता है।ऐसे बहुत से विषय थे कि जो दोस्तो के साथ मारवाड़ी या हिंदी में चर्चा कर कर के ही समझ आये परीक्षा में लिखा उनको भले ही इंग्लिश में था पर समझ मे आये तो अपनी भाषा मे।
तो जो अगर सारा विषय ही स्वयं की भाषा मे पढ़ना पड़े तो?
भारतीय क्या से क्या नही कर देंगे?

अपोणी भाषा अपोनो देश

मातृ भाषा का प्रभाव व्यापक है उसके सामर्थ्य को पहचानिए।
ओपिणी मा री बोली उ हीन भावना राखणी घमंड री बात कोणी व्हे।लोग बाग होचे कि इंग्लिश पढ़ने उ सब साहब बन जावेला पण साहब वाली होच चोखी कोणी हुवे।लगातार री गुलामी उ उपजी पराजीत मानसिकता व्हे।पीयया मारवाड़ी खुद री बोली ने राख ने भी घणा ई कमाया व्हे।जदे तक हिंदी मीडियम जवाता तब तक तो फेर भी मारवाड़ी बोलता आजकल देखूं माँ बाप आपरे टाबरिया ने मारबाड़ी बोलनी हीखावे कोणी,और तो और हिंदी भी वे इंग्लिश रे भेळी हीखावे।मारवाड़ी गई जा रही व्हे, हिंदी भी जा रही व्हे।पछे अंग्रेज बण ने साहब बण जाओ?साहेब बण भी जाओ कठे?😏😏
अपणी भाषा
अपणा देश।
जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है ।
वो नर नही नर पशु निरा और मृतक समान है ।।
~ मैथली शरण गुप्त

#अयोध्या अयोध्या करती है आह्वान वहां बैठा दें राम भगवान

#अयोध्या आज मैं बहुत प्रसन्न हूँ।आप की कल्पना में नहीं हो सकता है कि ये क्या हुवा है।हिन्दू समाज की आत्मा है भगवान श्री राम।राजा कोई होगा तो हम उसको राम के पैमाने से तोलेंगे।राम हमारे रोम रोम में बसते है हिन्दू छत्र को धारण करने वाले सभी लोग सभी राजे रजवाड़े नेता पेशवा मण्डलेशर महमण्डलेशर आदि आदि सभी जो कोई भी सत्ता,राजनीति,सरकार आदि आदि में है और हिन्दू है उन सबके आदर्श भगवान श्री राम हैं उनके प्रत्येक कृत्य उनके प्रत्येक पग हमारे लिए अनुकरणीय है अतः जब यूनानियों ने आक्रमण किया तो मिनेण्डर ने इस अयोध्या को ध्वस्त किया क्यों किया?
क्योंकि हिंदुओं का मनोबल टूट जाये।ताकि हिन्दू पराजित होकर गुलाम बन जावें।पर हिंदुओं ने उसको ठोक पिट कर भगा दिया।उसके बाद सैकड़ो सालों तक किसी भी विदेशी आक्रांता की हिम्मत नही हुई उस तरफ जाने कि मध्य काल मे हिंदुओं का सामर्थ्य सो गया हिन्दू इतने स्वार्थी हो गए कि भाई से भाई लड़ता था इस आपसी फूट का लाभ तुर्क तातार मंगोल पठान अफगान मुगल पुर्तगाली डच अंग्रेज फ्रेंच ने उठाया जिसमें से मुगलों के आक्रमण कारी बाबर के सिपहसालार मीर बाकी ने तोपों से भगवान श्री राम के जन्म स्थान को उड़ा दिया उस दिन अयोध्या जी हजारों हिन्दू गृहस्थों और सैकड़ों साधुओं वैरागियों ने अपने प्राण दिए थे तब से लगातार हिन्दू समाज कोशिश में है भगवान के जन्मस्थान को वापस लेने की।उसके साथ ही भगवान श्री राम की अयोध्या जी का नाम तक मिटाने के लिए उसको "फैजाबाद" नाम दे दिया।सरकारी रिकॉर्ड में भी अयोध्या-जिसको जीता न जा सकें उसका जिक्र तक नही आवें इसकी व्यवस्था की गई।
कब तक सत्य को दबा सकते है?कब तक हिंदुओं के उत्थान को रोक सकते हैं?आज जब ये नाम बदला है तो लगता है हिंदुओं ने अपना स्वाभिमान वापस पाया है।
नाम मे क्या है?
भाई नाम मे बहुत कुछ हैं।
नाम मे तो 10 हजार साल की पूरी संस्कृति है नाम से ही तो मुक्ति है।
क्यों नहीं है?
लेके देखो न एक बार राम नाम।पता चलेगा सामर्थ्य इसका।
हमने लियाहै, लेते है आगे भी लेंगे।अंतिम सांस तक लेंगे।गुरू गोरखनाथ हिन्दुओ के सबसे पुराने पर सबसे प्रगतिशील सम्प्रदाय के प्रवर्त्तक है स्वयं शंकर के अवतार हैं।उनका सम्प्रदाय भारत भर में फैला है उनके साधु महंत जोगी वैरागी कठोर साधना करते है जिस फकीरी का प्रभाव केवल नाथों में ही नही था बल्कि कबीरसाहेब तक उसका असर आता है कबीरसाहेब कहते है
तू कहता कागज की लेखी
मैं कहता अंखियन की देखी
नाथों के साधु जोगी लोग पुस्तको से ज्यादा हठ योग,ध्यान धारणा समाधि आदि में बहुत आगे है जिसका स्पष्ट प्रभाव है बड़ा ही मार्मिक है।
हिन्दुओ की रक्षार्थ इन्होंने बहुत युध्द किया है जदुनाथ सरकार की एक पुस्तक में मैने पढा था कि एक बार इन्होंने मारवाड़ रियासत को भी बचाया था।चिमटा लिए
अलग निरंजन बोल कर विदेशी हमलावरों से भिड़ जाने वाले ये लोग।निश्चित हिन्दू धर्म का उद्धार करेंगे।
भगवान श्री राम के उच्च आदर्श की उनके उस परम सत्य की उनके वचन कि उनके जीवन की हम स्थापना अपनर हृदय में भी और अपने जीवन मे भी करेंगे।निश्चित करेंगे।
जय जय श्री राम।
सियाराम मय सब जग जानी।
जो होई सोई राम रचित राखा।
"जो जिव चाहे मुक्तिको तो सुमरिजे राम।
हरिया गैले चालतां जैसे आवे गाम।।

नोटबंदी हिन्दुओ का सबसे बड़ा परिक्षण था

नोटबन्दी हिन्दू समाज का सबसे बड़ा परीक्षण था वो चाहता तो इसको मिनट में भूंगली बना सकता था जैसे कल मिलार्ड की बनाई थी अभी थोड़ी देर बाद फिर बनाने वाला है पर नोटबन्दी को हिन्दुओ ने पूरा समर्थन दिया।हिन्दुओ के बेईमान लोग तो इधर उधर दौड़ेंगे ही न?बेईमानो का काम ही दौड़ना है पर ऐसे चोर उच्चके ठगों को देख कर हिन्दुओ के दूसरे सामान्य लोग भी चोर बनना चाहते थे और है उनको तगड़ी चोट लगी है उनको ये पता तो चला न कि ऐसा भी हो सकता है।
आपका अथाह धन पड़ा रह जाता है काम तो व्यक्ति ही आता है धन नहीं। जो सत्य धर्म न्याय है वो ही टिकना है सत्य धर्म की नींव बहुत गहरी होती है हिन्दुओ को बार बार उखड़ना इसलिए पड़ता है क्योंकि वो अपनी नींव कच्ची बनाते है अनीति का धन सर्वनाश लाता है साथ में।
ईश्वर भी नही बचाता है।
अतः सत्य धर्म को पकड़ कर ही चलें इसमे आनंद बहुत है कष्ट नहीं है कुछ भी।जो अगर कष्ट भी आवें तो भी उसको सरलता से लेंवे तो भी वो भी आनंद लगेगा।
जय श्री राम
जय जय श्री राम।