Sunday, December 30, 2018

धन्यवाद पीएम सर जो अंडमान के क्रान्तिकारियो को महत्व दिया

अंडमान मात्र टूरिस्ट प्लेस नहीं है ये तीर्थ है उन हजारो क्रांतिकारियों ने जहां अत्यंत कठोर तप किया था अगर शचीन्द्र नाथ सान्याल ने अंडमान में दिन नही बिताए होते तो कभी भी भगतसिंह नही होता क्योंकि वो उनकी बंदी जीवन पढ़ पढ़ कर ही जबरदस्त क्रान्तिकारी हुवा जो क्रान्तिकारियो की गीता बन गई।उल्लास दत्त ने अंडमान में दस साल पुस्तक लिखी थी जो देखते ही देखते नवयुवकों उसमें भी बंगाल के नवयुवकों पर उसका जबरदस्त प्रभाव पड़ा।
अंडमान के जीवन की घटनाएं अनेकों क्रांतिकारियों ने लिखी है जीवंत लिखी हैं जिसको पढ़ कर हम केवल अश्रु ही बहा सकते हैं या उन महान क्रान्तिकारो के अदम्य साहस को अपने ह्रदय में ले सकते हैं।महृषि अरविंद घोष के सगे भाई वारीन्द्र घोष हो या वो जनेऊ पहनने के अधिकार के लिए पागल होने भी तैयार हुवा गुमनाम से क्रांतिकारी।जिसको बिजली के झटके दिए गए बहुत ज्यादा विक्षिप्त हो जाने लर उसको उसकी मातृ भूमि बंगाल भेजा गया धन्य हे बंगला माँ!जो तूने ऐसे पुत्रो को जन्मा।
मनिकतल्ला षड्यंत्र में दस वर्ष की सजा पाया वो अभागा इंद्र भूषण जो अत्याचार की इतन्हा से टूट गया और जेल में आत्महत्या कर ली।
वीर पंजाब की भूमि के भाई परमानन्द हो या ग़दर के या खालसा युग के वीर जिन्होंने पराक्रम का इतिहास लिख दिया।या वो 1857 के क्रांतिकारी जो कभी जिंदा लौट के पंजाब नही जा सकें।
वो नानी गोपाल।जो अंग्रेज और पठान की गालिया नही सुन सका।
कितने कितने नाम गिनाऊ।नामो कामो का अंत होता नहीं है।
कोल्हू में जूते इन बैरिस्टर सम्पादक इंजीनिरस अध्यापकों आदि अनेको ऐसे व्यवसाय के क्रांतिकारी जिनको ब्रिटिश कानून के अनुसार ही लेखन का काम देना था परंतु.....।
इन सबके शिरोमणि वो दो सगे भाई।
जो त्याग बलिदान और रक्त अर्पण की पराकाष्ठा बन गए।जीवंत किवदंती बन गए
सगे भाइयो को पता नहीं वो बन्द है एक ही जेल में।
सावरकर कोई मराठी चितपावन ब्राह्मणों की एक उपजाति का नाम नहीं है बल्कि इस हिन्दू राष्ट्र की परीक्षा की घोतक है जिसने इनको कुछ नहीं दिया।इनका बस इतना ही दोष था कि वो चितपावन ब्राह्मण थे जिन्होंने अंग्रेजो को इतना ज्यादा तंग किया कि अंग्रेजों ने इस जाति के खिलाफ अकादमिक अभियान चला डाला।जिसका शिकार सारा हिन्दू समाज बना और आज भी बन रहा है।
भारत के प्रधानमंत्री ने आज जब उन हजारो क्रान्तरिकारीयो को नमन किया तो लगा जैसे किसीने उन रिसते घावों पर उपचार किया है।
ये कार्य हिंदुत्व का ही हैं।
थेंक्स पीएम सर।
आज ब्राह्मण के ख़िलाफ़ जो अभियान चलाया जाता है तो कभी कभी मैं सोचता हूँ कि ऐसे हजारों ने गुमनाम सा बलिदान नही दिया होता तो आज किसी गौरे के तलवे चाटने पड़ते तब छोटी सी नौकरी पाते।
फेंकना आसान है करना बहुत मुश्किल।देखे कब भारत इन क्रान्तिकारियो को उनका "हिस्सा" देता है।

Sunday, December 23, 2018

हिंदुओं का देश है हिन्दुओ ने बनाया है जिसको डर लगता है जाए यहां से

पाकिस्थान ने हिन्दुओ का मास मर्डर किया था और आज भी कर रहा हैं जो हिन्दू अत्यंत कमजोर है वंचित है दलित है उनके बहुत से हिस्से को जबरदस्ती से मुस्लिम या ईसाई बना दिया गया है।हमारे जोधपुर में  निरन्तर ऐसे पीड़ित हिंदुओं का आने का सिलसिला वर्षों से जारी है ऐसे हिंदुओं को यहां भारत मे भले ही सरकारों और यहां के हिन्दू समाज से सहायता नही मिलती हो पर वो इसमे भी प्रसन्न रहते है कि कम से कम उनकी बहन बेटियां तो सुरक्षित है कम से कम उनको पाकिस्तान जैसे हालात से तो गुजरना नहीं पड़ रहा है।एक स्वतंत्र और ताकतवर हिन्दू समाज के नाते ये कोई पीठ थपथपाने की बात नही है फिर भी ये हिंदुस्थान और पाकिस्थान का पर्याप्त अंतर बताती है।ये देश हिन्दुओ ने ही बनाया है उनके ही प्रयास से आज अच्छा या बुरा है।इस देश को गाली निकालने वाला हर वो शख्स यहां दे शोक से जा सकता है जिसको यहां से डर लगता है जिस देश मे डर हो उसमे रहने की जरूरत ना है।हिन्दू ऐसे किसी भी व्यक्ति समुदाय को बक्सने के मूड में नही है जो यहां की खाता है और गीत दुसरो के गाता है।विभाजन की मांग हमने नही की थी।विभाजन हो जाने पर भी इस देश को अपने मजहब  के झंडे तले लाने की आसुरी मानसिकता तो कभी पूरी होने देंगे नहीं और ये जो तुम नौटँकी कर रहे हो उससे तो ओर तुमको ही नुकसान है।हिन्दुओ को किसी भी मामले में रक्षात्मक होने की जरूरत नही है।
हमारा देश है हमने बनाया है किसी एरे गेरे को हमको सुनाने की कोई औकात नही इनका कोई कॉन्ट्रीब्यूशन देश को ना है सिवाय दंगा विभाजन और भीख मांगने के।

Saturday, December 22, 2018

हिन्दू परिवार व्यवस्था हिन्दत्व का आधार

हिंदुत्व बहुत ही व्यापक है।हिंदुत्व के कार्य का छोटा सा झलक है मन्दिर।मन्दिर मठ महात्मा ये तीन का मिलन हिंदुत्व को जानने में सहायता करता है पर उतना पर्याप्त नही रहता है क्योंकि ये तो जीवन के कण कण में बिखरा पड़ा है इस कारण ही मंदिरों के टूट जाने से मठों के उजड़ जाने से और महात्माओ की सामूहिक हत्याओं के बाद भी हिंदुत्व पूरी तरीके से नष्ट नहीं हुवा।पर कोई इस गुमान में न रहे कि ये सनातन है अतः कभी नष्ट नही हो सकता है।क्योंकि आज अफगानिस्थान या पाकिस्थान जैसे इलाको में नाम लेवा तक नही बचा है।
इस हिन्दू जीवन पद्धति का आधार है गृहस्थ धर्म।याने परिवार व्यवस्था।इस सयुंक्त हिन्दू परिवार व्यस्वथा ने अभी तक सभी प्रकार के आसुरी तत्वों को पटखनी दे रखी है 90 के दशकों से आया टीवी फिर इंटरनेट आदि से उत्पन्न भयंकर व्यक्तिवादी सोच ने इस परिवार व्यवस्था को तबाह करना शुरू कर दिया है जिस काऱण आज हिन्दू असुरक्षित ही नही बल्कि कैसे भी आसुरी विचार का आसानी से भक्ष्य हो गया है।
इस परिवार व्यवस्था को तोड़ने के लिए ही रात दिन आपका मीडिया नेट चेनल फ़िल्म आदि आदि लगें हैं।पहले तो एक मोहल्ला तक पूरा परिवार लगता था आजकल तो स्वयं का परिवार ही परिवार नही होता क्योंकि उपभोक्ता वाद के फर्जी सोच ने "my life my choice" टाइप मूर्खता पूर्ण सोच हावी कर दी।अतः हिन्दुओ का बहुत जल्दी ही पतन होने की सम्भवना है राह केवल और केवल पारिवारिक मूल्यों के आधार पर बनी हिन्दू परिवार व्यवस्था ही है।
देखो राम जी को उनकी माता कैकई ने या पिता दसरथ ने नही कहा था वनवास जाने को वो अपना धर्म समझ कर स्वयं ही चल दिये।आज वैसे राम मिलना दुर्लभतम है।और वैसा राम अगर पैदा नही हो पा रहा है तो राम जी का हमसे रूठना तय है।
इस लिए ही
हिन्दू बनो हिन्दू रहो हिन्दू जिओ

Thursday, December 20, 2018

हिन्दू बनो हिन्दू रहो हिन्दू जिओ

आप चाहे तो जाती को खारिज कर सकते है आपकी मर्जी है आप चाहे तो जाती तोड़ने का नारा लगाया सकते है पर जाती न तो जाती है न ही खारिज होती है क्योंकि मूलतः जातीय चरित्र को नही समझा।जो नही समझा तो नही पार पा सकते है इससे।जाती तोड़ने का हांका लगाने वाले दिनों दिन अधिक से अधिक संकुचित होते जाते है और जिन पर ये तोहमत है कि वो जातिवादी है वो जाती का ज्यादा लोड लेना बन्द करते जाते है।जाती के नाम से फायदा उठाने वाले कभी भी जाती नही तोड़ सकते है क्योंकि जाती उनको सामाजिक सुरक्षा का आश्वासन देती है अपनी इसी सुरक्षा या असुरक्षा की भावना में हिन्दू द्रोहियों से मिल जाने में भी संकोच नही करती है ये ही जाती सोच का नतीजा होता है।अब बिना जाती को गाली गलौच किये अपने को हिन्दू जाती का मानने से दायरा बहुत बढ़ जाता है अपने आप सामर्थ्य पैदा होता है मैं हिन्दू हूँ इस भाव मे अत्यंत सामर्थ्य निहित है इसकी अनुभूति करनी पड़ती है।पल में हिन्दू पल में पुष्करणा हो जाने से नहीं आता है ये तो दिन के चारो प्रहर,सातों दिन, साल भर उम्र भर का नाता है उम्र ही क्यों जब तक मनुष्य जन्म होता रहेगा तब तक का।अमूमन हिन्दू स्वयं को हिन्दू नही मान जाती मानता है इसलिए बेचारा हर जगह अकेला रहता है जहाँ थोड़े बहुत खुद जैसे सोचने वाले हो तो अलग बात है।वरना तो असुरक्षा के भाव मे ही गुजरता है।अमूमन जाती का भाव शादी ब्याह या वोट में तगड़ा लगता है बाकी जगह तो खैर।
तो इस तरह से जाती हिन्दुओ को नुकसान करने लगती है खुद की जाती का बुरा से बुरा व्यक्ति भी दूसरी जाति के महात्मा से भी बढ़िया लगने लगता है ये वह समय है तब ठीक इलाज की जरूरत है वरना मार्ग भटका जा सकता है अपनी हर सफलता-असफलता व्यक्तिगत न होके जातिगत नजर आती है सारा संसार जाती का बेरी जान पड़ता है गोया सबको आपकी बहुत पड़ी हो।जाती के लिए सत्ता पाने का नशा सा रहता है सत्ता सुंदरी दूर नजर आती है।दलबन्दी का तड़का ऊपर से स्वाद अलग देता है।इस सबके बीच हिंदुत्व कही साइड में खड़ा मिलता है हिन्दुओ के आराध्य टेंट में।
मजे की बात तो ये है कि श्री राम की ही वंशावलि में हुवे बुद्ध अहिन्दू दिखते है।
इसे ही तो कहते है असली भृमजाल।
हिन्दू बनो,हिन्दू रहो,हिन्दू जिओ।

Wednesday, December 12, 2018

जाती तू कब जाती?

देखो भाई अनाप शनाप वंचित वर्गों को कोसने से कुछ होगा नहीं।आपका आकलन गलत है बिल्कुल।
आपकी पराजय आपके जातीय खुमार का नतीजा है जो भौंडापन आपने जाती के नाम से पिछले कुछ महीनों में बहुत ज्यादा और लगभग रोज दिखाया है।समाजिक न्याय के लिए काम करने वाले लोगों ने बहुत पहले चेता दिया था कि जाती का उभार बहुत खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है।जाती अपने मूल चरित्र में हिन्दुओ की दुश्मन है ऐसा सभी जानते है पर मानते नहीं है जाती के उन्माद में कुछ नही सूझता है दूसरे लोग बौने नजर आते हैं।इस उन्माद को प्रश्रय देने से उन्माद ही पनपता है और फिर ये किसी ईमानदार नेक दिल सज्जन व्यक्तियों के लिए थोड़ी पनपता है ये तो माफियाओ, ठगों,बेईमानो,गुंडो के लिए पनपता है उसका नतीजा वो हो होता है जो होना है।
जातीय गुट बनाके सत्ता को हड़प जाने की आसुरी भूख का सबसे बड़ा शत्रु ही हिंदुत्व होता है जो समानता न्याय धर्म अनुशासन संयम जाने कौन कौन से बंधन में बांधता जाता है इसलिए एक बहुत ही सामान्य अनुभव है कि सभी प्रकार के जातिवादी तत्व संघ को उसके स्वयंसेवको को अपना व्यक्तिगत शत्रु मानते है।अब चूंकि हिन्दू राजनीति में सभी जातियो के साथ साथ सामाजिक न्याय समता बंधुत्व और प्रेम की अनुगूंज है तो वो स्थापित सत्ता अधिष्ठानों को हजम नहीं होती है मजबूरी में वे चुप रहे है उसका अर्थ ये नही कि वो साथ हैं।बस समय की प्रतीक्षा में है।
बाकी तो सब फर्जी नारे है  और नारों के क्या......।
अतः बाबा साहब अम्बेडकर की बात हमेशा स्मरण में रखना कि हिन्दुओ ने जाती नहीं छोड़ी तो हिन्दुओ का जाती बचाना भी कठिन हो जाएगा।