पलाश के फूलों की महक से
महकता आँगन
चंग की थाप से
झूमता हर आँगन
होरी गैर से मदहोश सा
वो मस्त मचलता यौवन
अब कहाँ?
अब कहाँ?
की बोर्ड की यांत्रिक होली
चंद साइट्स पर थोथी
शुभकामनाएं
न कस कर रंग लगाना
न ही रंग लगवाना
पानी मे होता अब प्रदूषण
गहरे हानिकारक रसायन
में वो अबीर केसर की महक
अब कहाँ?
अब कहाँ?
आलू के चुपके से छापे
कही एकदम से
गुब्बारे का फूटा रंग
जोर जोर हँसते
गाते बच्चों की
ये उन्मुक्त टोलियाँ
अब कहाँ?
अब कहाँ?
आओ हम भी खेले
होली जी भर के
रंग से रंगा यूं जीवन
चंग की धुन सा
भंग की मादकता सा
उन्मुक्त-स्वच्छंद-महकता
यौवन..............
Monday, March 18, 2019
होली के रंग......
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