Tuesday, February 27, 2018

होली का आनन्द

जब पलाश के फूलों से
मधुबन खिल जाता
भौंरों का गुंजन साम गान हो जाता
चंग की थाप नभ में सुनाई देती
उड़ती गुलाल की
भीगे रंगों की महक से
महक जाता मेरा जीवन
जब सखी तुम रंग से
श्रंगार किया करती हो
नंदन वन अप्सरा
संकुचा सी जाती हैं
होली भरती नया रंग
जीवन में आ जाता
सत चित आनन्द
हां सत चित आनन्द

Thursday, February 22, 2018

हिंदुत्व का दर्शन सामाजिक समानता का दर्शन

हिंदुत्व के दर्शन में मनुष्य की आध्यात्मिक और समाजिक समानता की बात कही गई है.
छान्दोग्य उपनिषद में गाड़ीवान रैक्क जो वर्तमान जाती व्यवस्था के हिसाब से ऋषि नहीँ होता है पर वैदिक परम्परा में उसे वेदिक सूक्त का ऋषि कहाँ है उससे शिक्षा लेने के लिये ब्राह्मण और राजकुमार आते है उस आख्यान में ब्रह्म ऋषि रैक्क कहते है कि तुम लोग शोक से मोहित मत होवो शुद्रता को प्राप्त मत होवो.
साफ है ये जाती का नहीँ है ये वचन गुण का है.
सामाजिक समरसता तब ही आती है जब मन में किसी के प्रति न तो घृणा न ही हीनता का भाव हो.
स्वामी विवेकानंद जी कहते है कि तभी और तुम तभी हिंदू कहलाने के अधिकारी हो जब तुम्हारे हृदय में अज्ञानी हिंदू पीडित हिंदू दलित हिंदू शोषित हिंदू के प्रति न केवल  बंधुत्व हो बल्कि तुम उसके लिये कार्य भी करो.भारत का भाग्य उस दिन ही डूब गया था जब हजारो विद्वान करोड़ों भूखे प्यासौ और शोषित लोगों कि उन्नति की परवाह किये बगैर इस बात के लिये बहस करते रहे कि आचमन किस हाथ से करें??
हिन्दुओ ने बहुत पहले ही सिद्धांत से मान लिया था कि चींटी से लेके हाथी तक ब्राह्मण से लेके चांडाल तक सब उस ब्रह्म की ही अभिव्यक्ति है
ये सोच समरसता के लिये बहुत प्रेरणादायीं है अत जब हम संघ की प्राथना में वयम उच्चारण करते है तब वो किसी जाती का न होकर हिन्दुओ का है और अगर गहराई से विचार करे तो तो वो वयम मानव मात्र का भी है.
व्यस्टि  से समष्टि की ये यात्रा किसी जाती की नहीँ है सर्व भूतों की है.
ईश्वर सर्व भूतानाम हृदय तिषट्ति अर्जुन.
इस को ही जीवन में उतारना समरसता है इस ओर जितना क़दम बढे उतना ही हम हिंदुत्व के नज़दीक आयेंगे.

Tuesday, February 20, 2018

बाबारामदेव के स्वानुभव पर जातिवादी लोगों के क्षोभ पर

अ॒ग्निमी॑ळे पु॒रोहि॑तं य॒ज्ञस्य॑ दे॒वमृ॒त्विज॑म्। होता॑रं रत्न॒धात॑मम्। 1-1
यहां से वेद की ऋग्वेद संहिता आरम्भ होती है और समाप्त कहाँ होती है?
स॒मा॒नी व॒ आकू॑तिः समा॒ना हृद॑यानि वः । स॒मा॒नम॑स्तु वो॒ मनो॒ यथा॑ व॒: सुस॒हास॑ति ॥४॥10/191/4
बस इससे ज्यादा कुछ ब्राह्मणत्व नहीं।इन दो मन्त्रो का ही विचार करते तो भी ये अवस्था प्राप्त नही होती।ये सत्य है कि राष्ट्र में अग्नि को मैं पुरोहित ही प्रज्ज्वलित करूंगा।ये अग्नि है जो हृदयाकाश से लेके अखण्डकाश तक प्रवाहित होगी इसका अरणि से ब्राह्मण ही निकालेगा अग्रणी वो ही है परमात्मा ने नियत कर रखा है उसे किसका अनुसरण करना?किससे द्वेष या ईर्ष्या या भेद रखना?उसको तो कम दे रखा है न?इन 1024 सूक्तों तक ले जाते हुवे सुसहासती तक लेजाना।जहां हमारे मन हृदय तक समान हो जाते है।हमारे गुरु जी कहते थे ये भारत राष्ट्र वेद धर्म को लेके चला है वेद लुप्त हो गया तो भारत लुप्त हो जाएगा पूरे मानव समुदाय के चौथाई भाग को इसके संरक्षण के लिए ही नियुक्त किया है।
इसमे कोई भोग ऐश्वर्य है?कोई सरल मार्ग है?क्या कठिन?कठिनतम।ब्राह्मणत्व को लेके चलने वाले को किसी से कोई अपेक्षा नही होती इस जगत में ऐसा कुछ भी नही जो उसको कुछ भी दे सकता है न ही ऐसा कुछ है जो उससे लिया जा सकता है।स्वयं को ब्राह्मण मानने से कर्त्तव्य बोध बहुत बढ़ जाता है मुझे बहुत पीड़ा होती है जब एक भी सूक्त तक परम्परा से नही जानने वाले ब्राह्मण ब्राह्मण करते रहते है वेद नही तो ब्राह्मण नहीं।
तुम्हारा सारा महत्व वेद को पिछले 2500 सालों से लगातार आक्रमण के बाद भी बचा लेने से है तुम्हारी कसौटी कोई आधुनिक साधन नही है तुम्हारी कसौटी तो तुम्हारे अपने पूर्वज ही है जो किसी भी राज सत्ता से कैसी भी अपेक्षा नही रख कर सम्पूर्ण मानव को धर्म पर चलाते थे बड़े बड़े राजे महाराजे आके चरण छूते थे
आप थे कि ये पता नही सायं भोजन क्या बनेगा।
ये ही ब्राह्मणत्व उसको अपनाना ही ब्राह्मण होना है अतः फालतू का समय किसी महात्मा की आलोचना में व्यर्थ जाया करने की जगह उसको ही पकड़ो।तुम्हारी पोल एक क्षण में खुल जाती है इस क्षण हिंदूवादी होते ही अगले क्षण कुछ और हो जाते हो...........
सं ग॑च्छध्वं॒ सं व॑दध्वं॒ सं वो॒ मनां॑सि जानताम् । दे॒वा भा॒गं यथा॒ पूर्वे॑ संजाना॒ना उ॒पास॑ते ॥२॥

Saturday, February 10, 2018

अस्तेन मा ईशत

वैदिक धर्म तेजस्विता और पराक्रम का धर्म है हिन्दुओ ने जब से इस धर्म का त्याग किया तब से हिन्दुओ का पराक्रम चला गया है सर्व दूर हमको चोर उच्चके ही प्रभावी दिखाई देते है ऐसा क्यों?
क्योंकि यजुर्वेद का पहला ही सुक्त कहता है
व:  स्तेन मा ईशत।
अवंशस: व: मा ईशत।
तुम पर चोर डाकू लोग स्वामित्व प्राप्त न करें।
दुष्ट पाप कर्म में प्रेरित करने वाले स्वामित्व प्राप्त नही करें।
गौपतो ध्रुवा: बन्हि स्यात
बहुत बड़ी संख्या में तुम गौपतो याने भूमि के स्वामी याने गौ के स्वामी याने यजमानों के साथ बने रहो।
ध्यान देने वाली बात है यहां पांच आज्ञा बहुत स्पष्ट है
1 चोरो और डाकुओ को सर मत चढ़ाओ उनके स्वामित्व को नही स्वीकारो,बल्कि सच्चे और निस्वार्थ लोगों का शासन मानो
2 दुष्टता में पाप कर्म में प्रेरणा देने वाले भी स्वामी न बनें।
3 गौ पति के पक्ष में रहो।गौ का एक अर्थ होता है गाय एक अर्थ होता है भूमि, उसका स्वामी।लेकिन इस भूमि का स्वामी माने कैसा भी राजा हो वैसा नही बल्कि यज्ञ के यजमाम भाव से राज करने वाला,इस शरीर में इंद्रियों रूपी गौ का स्वामी जीवात्मा उसके साथ रहना याने ईश्वर के साथ रहना।
4 ध्रुव-माने दृढ़ता पूर्वक रहना।मानये स्थिर रहना।कैसा स्थिर?यजमान भाव से राज करने वाले के साथ रहना ही है कभी  नही डिगना।
5बन्हि-मतलब बहुत बड़ी संख्या में।याने संख्या का बहुत महत्व है।
कोई एक  दो नही बहुत बड़ी संख्या।सारा राष्ट्र एक हो जाये वेसी संख्या।
ये यज्ञ है सामूहिक कर्म।इसको अकेले नही करना है पूरे राष्ट्र के साथ करना है किसके पक्ष में करना है इंद्रियों को जीतने वाले के पक्ष में करना है बहुत बड़ी संख्या केसाथ करना है क्यों?
दुष्ट पापकर्म करने की प्रेरणा देने वाले ठग चोर डाकू हमारे स्वामी न बन जाये।
बोलो उससे स्पष्ट कुछ कहूँ?
जो गौपतो है उसके साथ मैं ध्रुव हूँ और अकेले ध्रुव नही हूँ बल्कि बन्हि हूँ।
क्यों हूँ
वः अस्तेन मा ईशत..........

शोभना प्रेम

मेरी तुकबंदी पर
खिलना तेरा
मेरे बचपने पर
हंसना तेरा
मेरी बिखरी किताबे
समेटना तेरा
मेरे जीवन को
संवारना तेरा
मुझे मेरे होने का
अहसास कराना तेरा
मुझे गहराई से
चाहना तेरा
बता यार क्या क्या
बोलू
चाहत का ये अफसाना
कैसे खोलूं
मैं हूँ ऐसा ही
उलझा उलझा सा
बिखरा बिखरा सा
तुने बनाया मुझे
तुने उठाया मुझे
क्या देउ तुझे
कुछ मेरा अब
बचा नही मुझमें

शोभना प्रेम

काफ़ीरी में ही ये हुवा है
तुम इमां का क्या पूछते हो
मान भी जाओ अब
तुमसे मिलने से पहले
हम आदमी काम के थे

रजपूती बासन्ती प्रेम

चित्तौड़ से बढ़ कर
प्रेम की दूजी मिसाल कहा होगी
देखो इस धरती को
प्रेम की खातिर
वासन्ती आग लेली
उस आग को सीने में बसाए
नर मुंडो की माला जप ली
मिलन हुवा धूम्र में
नवयौवना वीर का
अग्नि ही प्रेम की ज्वाला बनी
समिधा उसमे
चित्तौड़ का रजपूती वैभव सारा
घी के
माँ का उजियारा
हम पूत कपूत है
जो माँ के बलिदान पर हंसते है
माँ के त्याग पर वैभब रचते है
हे माँ!!हम तेरे अपराधी
हे माँ!! क्षमाहमको
मत रूठना हमसे
तू ही तो प्रताप से
महावीरों की जननी

जय चित्तौड़

जब रत्नसिंग की आंखों
में आंसू की चार बून्द देखी
सिंहनी बोल पड़ी
क्षत्रिय जीवन मौत को
सम सा समझते है हुक्म
ये क्लीवता कैसी
ये नीरवता कैसी
पूर्ण यौवन
श्रृंगार युक्त सुंदरतम
पद्मिनी को देख के
महारावल बोले
"चित्तोड़" पर
दुष्त यवन का पैर होगा
तेरे मेरे मिलन का
बासन्ती पर्व चला जाता है
हंस के महारानी बोली
ये अग्नि ही मिलन है
तुम केसरिया धारण करना
रक्त की अंतिम बून्द तक
मातृभूमि के लिए लड़ना
श्रृंगार युक्त जीवन फिर कभी
जब न खिलजी होगा
जब न ईमान होगा
तब भी तेरे मेरे
प्रेम की गाथा
ये अरावली गायेगा
दूर आकाश से
गूंजेगा एक ही नारा
जय चित्तौड़
जय चित्तौड़

राजस्थानी

मैं राजस्थानी
मेरी जात हिंदुस्थानी
सीने मेहजारो सालो की
आग लिये बैठा हूँ
बप्पा रावल का तेज
पद्मिनी का त्याग लिए बैठा हूँ
गौ माता के लिए चँवरी से
उठ जाने वाले
तेजा पाबू हरबू का
शौर्य लिए बैठा हूँ
जीवन क्या है?
चंद पल का सपना
जंगल जंगल फिरने वाले
प्रताप का उद्यम लिए बैठा हूँ
पीढ़ियों तक बेटा देने वाले
परिवारों का सम्मान लिए बैठा हूँ
मैं फिल्मी कोटो पर जाया नही करता
मैं बलिदानी वीरों के त्याग को
लजाया नही करता
मेरा रोम रोम ऋणी इनका
चारण भांड हमारे अपने
तुम वो नही हो
ये बलिदानो के गायक थे
कंजर चांडाल हमारे अपने
जंगल चिता के नायक हैं
तुम जाने कौन हो
जो माँ को नचाया करते है
जाने कौन सी नस्ल के हो
कैसा धन्धा करते हो
तेरे वो फर्जी  बिके
मिलॉर्ड!!!
मेरा सम्मान नही हो सकते
पैसों से बिक जाने वाले
कानून नही हो सकते
हूँ राजस्थानी
गीत जौहर के ही
गाऊंगा
बात प्रताप की सुनाऊंगा
इनके मार्ग का
चारण हो जाउ तो
धन्य मेरा जीवन
चांडाल बन
तम आग लगाउ तो
धन्य मेरा जीवन
तलवारो से लिखा इतिहास
जाके देखो
चित्तौड़ का जर्रा जर्रा
माँ पद्मिनी की
यशोगाथा गाता है
विजय स्तम्भ पर बैठ
मेने सुना उसे
किया बहुत सा क्रंदन
माँ होता मैं  भी
माँ होता मैं भी
बलिदानी जीवन

Saturday, February 3, 2018

मेरे बचपन के जीव और हिन्दू संस्कृति

एक निष्ठावान हिन्दू होने के नाते मुझे गधा बहुत याद आता है जब बहुत गधे की ढेंचू ढेंचू सुनता तो मैं दौड़ कर बाहर भागता था और उस समय घर मे सब बड़े हंसते थे गधों का झुंड निकलता था आगे एक लड़का उस पर बैठा होता था एक या दो नीचे चलते थे विशेष प्रकार की आवाज निकालते जाते थे मुझे उनको देखने का बहुत मजा आता।
फिर कभी कभी मौहल्ले में वैरागियों का झुंड आता जो अपने साथ एक हाथी लाता।उस हाथी को केला या गुड़ देना पड़ता था पांच रुपये तक देते तो बहुत खुश होता उसका महावत साधु।मुझे उसके पास जाते डर लगता था साधु बच्चों को उठा कर ले जाते है ये धारणा सकारण ही हिन्दू समाज मे आज भी दृढ़ है।लेकिन इस तरह मैं हाथी को देख लेता।प्रति वर्ष मेरे घर मे बिल्लियों का एक समूह जरूर आता।वो पड़ोस आनन्द के घर से मेरे घर मे आते उसके आगे तापी बावड़ी थी जिसे छत पर वो बच्चे देती थी फिर आस पास के सब घरो के बच्चे उसके स्वाभाविक अभिभावक होते।एक दिन गर्मियों में मध्य रात्रि में तापी बावड़ी की छत पर दो कुत्तों और एक बिल्ली की फाइट आज भी गुदगुदाती है छत के पास ही बालाजी मंदिर का गुम्बद है जिस पर हनुमान जी मन्दिर की पताका है जो तेज हवा में लहर लाती रहती है एक दिन सांय में मेरे दो दोस्त और मैं मेरी छत पर बैठे थे तेज हवा चल रही थी थोड़ी थोड़ी देर में छम छम की आवाज आती।बिल्ली गुराति थी दोनो बहुत डर गए और नीचे आने का कहने लगे।खैर।
बिल्लियों के बच्चे बहुत उद्यमी होते थे दूध गिरा देते थे उनकी पोटी भी अनेक बार दूध जैसी होती।हमारे लिए रहस्य ही रहता ये क्या है।कभी कभी रात को ऐसे रोते थे कि लगता था गहन अंधकार में तापी बावड़ी में कोई बच्चा रो रहा है।बिल्लियों को लेके झगड़ा भी बहुत हो जाता था।
कुत्ते भी बच्चा देते थे पर उनको छूने की मनाही थी कुत्ती के सम्बंध में बहुत से मिथक चलते थे वो अपने बच्चे को उठाने की कोशिश में बच्चों के कान को खा जाती है ये सबसे बड़ा लगता था।
गर्मी की छुट्टियों में मामा के घर या कभी कभी मेरे घर ही लँगूर हनुमान दिख जाता था सुबह सुबह आंख खोलते ही अगर काले मुंह वाला लँगूर दिख जाए तो भय मिश्रति भाव की बस कल्पना कर सकते हो।ढप्पे ने ऐसे एक लँगूर को थप्पड़ मार दिया था ये किवंदती बन गया है घर मे।
लंगूरों का झुंड होता है वो पेड़ो पर उछलते कूदते मजा देते है।
कुत्ते को रोटी जो कटोरदान में सबसे लास्ट की होती है वो हमेशा खा जाता फिर झगड़ा होता।पहली रोटी गाय की जाने वो क्यो अच्छी लगती।
हां चिड़ियाए।वो तो मेरे घर की शान थी।जाने कितने सालो पुराना घोंसला।किवंदती है कि 100 साल पुराना है कौन जाने।
छत पर से हजारो की तादात में पक्षी उड़ते थे।उनको देखते देखते गदाधर की समाधि लग गई थी ये बहुत बचपन मे ही मेने सुन रखा था तो मैं सोचता था मेरे भी लग जायेगी।पक्षी सब तरह के थे विदेशी भी देशी भी विद्यामन्दिर जाते समय गुलाब सागर के वट पीपल पर हजारो के तादात में थे।दुर्लभ से दुर्लभ।
पक्षियों के कल कल से समाधि तो कभी नही लगी,पर किताब पढ़ने का बहुत अभ्यास हुवा सामने मेहरानगढ़ की पृष्ठभूमि छत की भिंडी का सहारा आधी धूप छाव।बाएं हाथ की तरफ से आती राम धुन या कोई वेद मन्त्र की धुन।कभी कभी शाम जे समय घनश्याम जी की आरती की आवाज।मुल्ले का हल्का सा भोंपू।आज बस भोंपु है बाकी बन्द है खैर।
कभी कभी सांप के निकलने की खबर आती तो उसको देखने हुजूम उमड़ता।जो सांप को पकड़ के लाया वो हीरो होता।भुआ जी के यहां खरोगोश और कछवे को हाथ मे लेने का भी अनुभव मजेदार होता।
चूहा......👍गणेश जी का वाहन।वो तो जैसे एक साथ डर और सम्मान का पात्र है।अभी कुछ महीने पहले ही तापी वाले घर मे मेरे से ऊपर से निकल गया।इतना भय हुवा कि.....।
छिपकली बहुत डराती है कॉकरोच से भी ज्यादा।अंकल जी तो उसे पकड़ लेते है।मोर तो जैसे हमारी शान है मन्दिरो के  छत पर घूमते थे उनके पंख के किस्से तो आज भी बहु प्रचारित है।मेढ़क अगर मूत्र कर देगा तो फलां हो जाएगा पर टर टर आह आ।बिच्छू बहुत शैतान है बाप रे।कंसल पकड़ो सांप जितना साहस देगा।चींटी तो ज्ञान का भंडार है दादा सा कितनी ही कहानी सुनाते इस पर।तेंदुए पर खुद की कहानी गल्प लगती तो भी सुनता।शिवाजी शाखा पर अत्यंत जल्दी करीब सवा पांच बजे एक बार ललित जी भाई साहब ने कहा ध्यान से सुनो।शेर की दहाड़ थी।बोले यहा सर्दियों में आती है चिड़ियाघर से आवाज।ये आज भी आश्चर्य है इतना दूर था लेकिन थी वो ही।मछ्ली को आटा देना ही है।
गाय?
खाने के सामने ही आती..........अगर पानी गिरा कर भी भगाया तो अपराध बोध रहता।भैंस मजेदार।घोड़े तो ताकतवर है जी।कौवा चील बाज गिद्ध आदि को उछाल उछाल के खाना देते थे बहादुर जी के  घर वाले हम सिर्फ आवाज सुनते चिल्लो की।टिलोदी कबूतर गिलहरी कमेडी तोता कोयल मेना........।गूगल की खुशबू तुलसी निम बबूल...........
हां ये ही है हिन्दू संस्कृति..........कुछ अलग हो तो बताना।
दुर्भाग्य आने वाले बच्चों का की बहुत से नही होंगे.....