Tuesday, January 3, 2023

ब्राह्मण ब्राह्मणत्व नही त्यागना चाहिए

इस घोर भौतिकता वादी कलियुग में भी ब्राह्मणों को अपने परंपरा गत संस्कार बचा कर रखने चाहिए।
पहला है सत्यता।
जो त्रिकाल अबाधित हो वही सत होता है वही सत्य होता है। ब्राह्मण का अधिष्ठान ही वो सत्य है।
दूसरा है निश्छलता
एक ब्राह्मण पर कोई भी व्यक्ति एक बच्चा भी विश्वास कर लेता है क्योंकि वो निश्छल है।
भगवान ने कहां
मोहे छल कपट छिद्र नही भावा

तीसरा है निर्लोभी

कोई लोभ नही किसी प्रकार का। न इस लोक का न ही परलोक का।
चौथा है सदाचारी।

ये आज के समय सबसे कठिन कर्म।
सदाचार होना ही आज के समय में अवगुण और एकांकी बना सकता है।
पर उससे क्या?
सत्य के मार्ग पर तो अकेला ही चला जाता हैं।

इसमें गुण जोड़ते जाए।
ये सब वेद आधारित जीवन जीने से आते है।
कोई भी व्यक्ति जन्म से ही इसका अभ्यास करे तो ही आते है
बहुत कठिन है किसी का भी अचानक से शास्त्र परायण में प्रवृत्त होना।

बहुत तगड़ी मार लगी हो तो अलग बात है
वरना असंभव।
देव कृपा हो तो सब संभव है
तो पैदा होते ही बालक बालिका को इस मार्ग में प्रवृत्त करना आरंभ कर दीजिए
पैदा क्या गर्भ में आया जीव तब से ही।
इसे ही गर्भाधान संस्कार कहते है जब पवित्र मन से स्त्री पुरुष संतान प्राप्ति निमित वैदिक वातावरण में पूजा आदि करके सनातन कृत्य में प्रवृत्त होते है
उससे उत्पन्न संतान ही वर्ण आश्रम धारण कर ने योग्य बनती है।
इसके पश्चात इस जीव का वर्ण पहचान करना अनिवार्य है।
जो एकदम से होना कठिन भी है बहुत तो एक बारीक तो अपने अपने कुल के संस्कार अनुसार उसको ज्ञाती में डालना चाहिए उसके बाद थोड़ा बड़ा होने पर सतर्क निगाह से उसके वर्ण स्वाभाविक रुचि को जान के उसके मार्ग पर ही उसको प्रवृत्त करना ही गृहस्थ धर्म है।
लेकिन अपने ही संतान को इतना ध्यान से ओबजर्व करे ही कौन?
समय ही कहा हमारे पास?
ब्राह्मणों को एसा कभी नही करना।चाहे सारी दुनिया करें।
ब्राह्मण वो जिसका पिता माता ब्राह्मण है उसका पिता माता।
कोई नया वेद सिख के आना चाहे तो स्वागत है उसका भी।
पर आएगा वो मेरिट से ही आरक्षण से नही।
ब्राह्मण का धर्म है वो सबको वेद सिखाए।
आरक्षण न दें किसी को।
पर दूसरो को वेद सिखाने से पहले खुद भी तो जीना है न इस पर?
जो कलियुग में क्या संभव है?
लगता तो नही।