Saturday, March 31, 2018

अज्ञेय

कभी राजे सरदार अपने राज्य की सीमाएं लिखते थे दूसरों के लहू से। फिर सेठ साहूकार अपनी हवेलियों के नक्शे लिखते रहें दूसरों के लहू से। अब आपकी डिंग है कि आप की कविता लहू से लिखी जा रही है। पर किसके लहू से? आपका अपना तो वह नहीं है। यह मान भी लें कि आपको दूसरों का गम बहुत है- या कम आराम के साथ है; पर अगर आपकी कविता भी दूसरों के लहू से लिखी गई है, या कम से कम आपके अपने लहू से नहीं लिखी गई है, तो मुझे क्यों उसे उसकी कविता से अच्छा ही मानना चाहिए जिसने अपनी कविता खून से तो नहीं लिखी थी, पर अपने पसीने से लिखी थी तो अपने पसीने से लिखी थी, या सपनों से ही लिखी थी तो अपने सपनों से लिखी थी?- और आप को सुख देने के लिए और आपके सुख में अपना सुख मानते हुए लिखी थी? क्या आप लोगों की बात करके, या इस ढंग के कहके, मूल्यांकन की सारी प्रक्रिया को ही उचित नहीं कर रहे हैं?-अज्ञेय

Friday, March 23, 2018

शास्त्री शिवराम हरि राजगुरु

क्रान्तिकारियो की तश्वीरें आपने देखी होगी सभी बलिष्ठ और सुदर्शन नौजवान थे उन सबमें शिवराम हरि राजगुरु कृशकाय थे आप संस्कृत भाषा के विद्वान और लेखक थे और तर्कशास्त्र के जानकार थे।बाबा राव सावरकर से प्रभावित होकर आप क्रांति में सम्मिलती हुवे थे हनुमान प्रसार सिमिति में सबसे पहले जुड़े जो अखाड़ा चलाते थे और बुद्धि में वृध्दि करने सावरकर और विभिन्न क्रान्तिकारियो की जीवनियां पढ़ते पढ़ाते थे आपने काशी जाके पढ़ने का निश्चय किया आप काशी गए वहां आप संस्कृत का अध्ययन करने लगे मन मे अदम्य देशभक्ति थी ही तो वहां भी वो क्रान्ति कार्यो में रुचि लेने लगे।आजाद से भेंट के बाद तो पूरा ही क्रांतिकारी बन गए।
एक दिन आजाद ने सभी को बताया किआ अंग्रेज पुलिस के अत्याचारों को सहने योग्य शरीर को सख्त बनाना होगा।उस दिन बिना किसी को बताये राजगुरु रसोई में गए और चाकू को गर्म किया रक्त तप्त हो गया तो उसे अपने सीने में लगा दिया ऐसा सात बार किया।मुंह पर शिकन तक नहीं।
रात्रि में जब बहुत दर्द से नींद में ही आवाज आई तब पता चला आजाद को।
आप वीर सावरकर के परम भक्त थे आपने ही भगतसिंह कल हिन्दूपादपदशाही पुस्तक भगतसिंह को दी थी जिसके अनेको कोट्स भगतसिंह ने अपनी जेल की डायरी में किये है ये पुस्तक अंग्रेजो को तलाशी में राजगुरु के समान से मिली थी।आप का जीवंत सम्पर्क डॉक्टर हेडगेवार से था संघ की स्थापना के बाद एक बार ये फरारी में नागपुर आये थे डॉक्टर जी से मिले थे तब डॉक्टर जी ने उनको एक कर्तकर्त्ता के घर छुपा कर रखा था।
आपका स्वभाव हँसमुख था और आप ईश्वर के परमभक्त थे।भगतसिंह से आपकी मजाक नुमा नोकझोंक चलती रहती थी जब भगतसिंह ने इनको दूध पिला कर भूख हड़ताल से हटवाया तो इनको मजाक में बोले कि तुम सोचते हो कि मेरे से पहले पहुंच जाओगे पर मैं ऐसा होने नही दूंगा अब तो जवाब में शिवराम ने कहा कि मैने सोचा था कि स्वर्ग में पहले जाके तुम्हारे लिए कमरा बुक रखूंगा पर अब ये हो नही सकेगा।
इनके बहुत से विनोद पूर्ण किस्से भगतसिंह और आजाद के साथ के है।

तुम हमेशा याद आओगे भगतसिंह

अगर सरदार भगतसिंह न होते तो कदाचित भारतीय क्रान्ति का इतिहास लोह शिकंजो में दफन हो जाता।जितना इस महावीर को पढ़ता हूँ उतना कृतज्ञता से भर जाता हूँ।कभी बी एस सिंधु कभी बलवंत सिंह कभी विद्रोही नाम से इसने लेखों की झड़ी लगा दी थी बहुत कम लोग आज जानते है कि भगतसिंह ने तब अनेको पत्रिकाओं में पुराने क्रान्तिकारियो के जीवन व्रत छापे थे क्या ग़दर पार्टी क्या कुका विद्रोह क्या काकोरी कांड क्या बब्बर अकाली क्या इंडिया हाउस?इनसे जुड़े हर क्रांतिकारी के बारे में भगतसिंह ने कही न कही लिखा है छपवाया है।उसके बाद भी ये अद्भुत क्रांति छिप न जाये तो स्वयं का बलिदान दिया था।चोट उस जगह की जहां पर लगने से आवाज ज्यादा होती है ताकि बहरे गूंगे भारतीयों केकानो में जहां फर्जी अहिंसा का नगाड़ा बज रहा था वहां सशस्त्र क्रांति के उच्च आदर्श पहुंचा सकें।और इस काम वो सफल रहें।
भारतीय क्रान्तिकारियो को वो अमर कर गए है उन पर जो भी अध्ययन करेगा वो एक के बाद एक ऐसे मतवाले नवयुवकों से परिचित होके चमत्कृत होता जाएगा।लगेगा बार बार भारत की धरती पर भगतसिंह आते है?एक ही समय मे इतने भगतसिंह थे?
तुम हमेशा याद आओगे भगतसिंह.......
जब तक भारत देश रहेगा तब तक तुम्हारा बलिदान याद किया जाएगा।तुमने न केवल साम्रज्यवाद ब्रिटिश को पराजीत कर दिया बल्कि उस झूठे अहिंसावाद को नष्ट कर दिए जिस पर चलने की भारत मे ऐतिहासिक भूल की थी.......फिर भी तुम्हारी फोटू नही लगी नॉट पर।कोई नही तुम्हारी फोटू लगी है हमारे दिल पर जिसको कोई नही हटा सकता...........

Thursday, March 22, 2018

भगत सिंह तुम हमेशा याद आओगे

दिल से निकलगी न मर कर वतन की उल्फत।
मेरी मिट्टी से भी खुशबु ए वतन आएगी।।
काश मुझमे भगत सिंह जैसे यज्ञअग्नि की छोटी सी चिंगारी भी होती।
जिस देश के लिए वो हँसते हँसते फंदे पर झूल गया था उस देश में लोग अपने फायदे के लिए देश बेच देते है।भगत सिंह को याद करना बहुत जरूरी है उससे भी जरुरी है भगत सिंह बन कर जीना।
इलाही वह दिन भी होगा जब राज अपना देखेंगे
अपनी जमीन होगी अपना आसमान होगा।
ये बिस्मिल जी की शायरी है जिसे वो दीवाने गाते थे भगत सिंह आजाद बिस्मिल खान लाहिड़ी रोशन सिंह भगवती बोहरा समेत ये क्रांतिकारी भारत के युवा प्रतिशोध को अमर कर गए है।हिन्दू महासभा के लीडर लाल लाजपत राय की हत्या के प्रतिशोध में ही सांडर्स को निपटाया गया था।
प्रतिशोध राष्ट्र का जीवन सेतु होता है प्रतिशोध से घृणा करने वाला राष्ट्र कभी नही पनपता है।
राष्ट्र को उसी चिंगारी की जरूरत है।
भगत सिंह तुम हमेशा याद आओगे।
इस लिए की तुमको हमारे झूठे नेता बचा सकते थे लेकिन वो तुम्हारी प्रसिद्धि से जल गए।

कर्मयोगी भगत सिंह

मुझे ऐसे बहुत लोग मिलें ऑनलाइन जो कहते थे की वीर सावरकर नास्तिक थे।खास कर ऑरकुट पर तो इस तरह के पेज में मेरी बहुत डिबेट होती तो वहां भी ये लोग सावरकर को नास्तिक घोषित करते थे।मुझे मराठी नही आती है अनुवाद खूब पढा उसमे कभी नही लगा कि वो नास्तिक थे फिर संघ के वरिष्ठ प्रचारक से पूछा तो उन्होंने तो बहुत से सन्दर्भ दिए।
उसी तरह भगतसिंह के लिए भी पहला काम राष्ट्र को आजाद कराना था भगत सिंह ने अपने पत्र में साफ़ साफ़ कहा था कि उसके साथ के सब क्रांतिकारी आर्यसमाजी वैदिक और उपनिषद को मानने वाले है।उसके पिताजी आर्यसमाजी है वे उनको पूजा करने को प्रेरित करते रहते है।उनके एक मित्र ने तो उलाहना भी दी कि प्रसिध्दि के कारण तुम नास्तिक हो रहे हो।
लेकिन भगतसिंह इस जन्म में ही संसार को समानता स्वतन्त्रता शोषण मुक्त बनाने की कोशिश में थे वो किसी भी स्वर्गस्थ ईश्वर की प्रतीक्षा में अकर्मण्य नही होना चाहते थे और उनको उस समय तक जितना भी धर्म पता चला वो लौकिकता को छोड़ अलौकिकता के पिछे था या वैसा उन्होंने समझा।जो उनको स्वीकार नही था वो तो कर्मयोगी थे और बिना गीता को सिखे वो कर्मयोगी थे देखिये आप उसके उसी मैं नास्तिक क्यों हूँ में विचार " विश्वास’ कष्टों को हलका कर देता है। यहाँ तक कि उन्हें सुखकर बना सकता है। ईश्वर में मनुष्य को अत्यधिक सान्त्वना देने वाला एक आधार मिल सकता है। उसके बिना मनुष्य को अपने ऊपर निर्भर करना पड़ता है। तूफ़ान और झंझावात के बीच अपने पाँवों पर खड़ा रहना कोई बच्चों का खेल नहीं है। परीक्षा की इन घड़ियों में अहंकार यदि है, तो भाप बन कर उड़ जाता है और मनुष्य अपने विश्वास को ठुकराने का साहस नहीं कर पाता। यदि ऐसा करता है, तो इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि उसके पास सिर्फ़ अहंकार नहीं वरन् कोई अन्य शक्ति है। आज बिलकुल वैसी ही स्थिति है। निर्णय का पूरा-पूरा पता है। एक सप्ताह के अन्दर ही यह घोषित हो जायेगा कि मैं अपना जीवन एक ध्येय पर न्योछावर करने जा रहा हूँ। इस विचार के अतिरिक्त और क्या सान्त्वना हो सकती है? ईश्वर में विश्वास रखने वाला हिन्दू पुनर्जन्म पर राजा होने की आशा कर सकता है। एक मुसलमान या ईसाई स्वर्ग में व्याप्त समृद्धि के आनन्द की तथा अपने कष्टों और बलिदान के लिये पुरस्कार की कल्पना कर सकता है। किन्तु मैं क्या आशा करूँ? मैं जानता हूँ कि जिस क्षण रस्सी का फ़न्दा मेरी गर्दन पर लगेगा और मेरे पैरों के नीचे से तख़्ता हटेगा, वह पूर्ण विराम होगा – वह अन्तिम क्षण होगा। मैं या मेरी आत्मा सब वहीं समाप्त हो जायेगी। आगे कुछ न रहेगा। एक छोटी सी जूझती हुई ज़िन्दगी, जिसकी कोई ऐसी गौरवशाली परिणति नहीं है, अपने में स्वयं एक पुरस्कार होगी – यदि मुझमें इस दृष्टि से देखने का साहस हो। बिना किसी स्वार्थ के यहाँ या यहाँ के बाद पुरस्कार की इच्छा के बिना, मैंने अनासक्त भाव से अपने जीवन को स्वतन्त्रता के ध्येय पर समर्पित कर दिया है, क्योंकि मैं और कुछ कर ही नहीं सकता था। जिस दिन हमें इस मनोवृत्ति के बहुत-से पुरुष और महिलाएँ मिल जायेंगे, जो अपने जीवन को मनुष्य की सेवा और पीड़ित मानवता के उद्धार के अतिरिक्त कहीं समर्पित कर ही नहीं सकते, उसी दिन मुक्ति के युग का शुभारम्भ होगा। वे शोषकों, उत्पीड़कों और अत्याचारियों को चुनौती देने के लिये उत्प्रेरित होंगे। इस लिये नहीं कि उन्हें राजा बनना है या कोई अन्य पुरस्कार प्राप्त करना है यहाँ या अगले जन्म में या मृत्योपरान्त स्वर्ग में। उन्हें तो मानवता की गर्दन से दासता का जुआ उतार फेंकने और मुक्ति एवं शान्ति स्थापित करने के लिये इस मार्ग को अपनाना होगा। क्या वे उस रास्ते पर चलेंगे जो उनके अपने लिये ख़तरनाक किन्तु उनकी महान आत्मा के लिये एक मात्र कल्पनीय रास्ता है। क्या इस महान ध्येय के प्रति उनके गर्व को अहंकार कहकर उसका गलत अर्थ लगाया जायेगा? कौन इस प्रकार के घृणित विशेषण बोलने का साहस करेगा? या तो वह मूर्ख है या धूर्त। हमें चाहिए कि उसे क्षमा कर दें, क्योंकि वह उस हृदय में उद्वेलित उच्च विचारों, भावनाओं, आवेगों तथा उनकी गहराई को महसूस नहीं कर सकता। उसका हृदय मांस के एक टुकड़े की तरह मृत है। उसकी आँखों पर अन्य स्वार्थों के प्रेतों की छाया पड़ने से वे कमज़ोर हो गयी हैं। स्वयं पर भरोसा रखने के गुण को सदैव अहंकार की संज्ञा दी जा सकती है। यह दुखपूर्ण और कष्टप्रद है, पर चारा ही क्या है?"
अब इसको पढ़ कर क्या लगता है??वो एक कर्मयोगी थे??इसके अलावा कुछ ओर हो नही सकते।उल्लेखनीय है कि लोकमान्य तिलक ने गीता का जो व्याख्या गीता रहस्य किया है उसमें भी उसी कर्म का ही यशोगान है।स्वामी विवेकानन्द जी के शब्दों में उसे कहूँ तो भारत को आज सत गुण की आवश्यता नही है आवश्यकता है सर से लेके नख तक रोम रोम को हिला देने वाले रजो गुण की।
ये भगतसिंह का वो ही तीव्र रजो गुण है जो उस समय आध्यात्मिकता की आड़ में तम गुण को प्रशंसित करने का विरोध करता है और कहता है कि 
हाँ मैं नास्तिक हूँ।
स्वामी जी कहते है पुराना धर्म कहता है ईश्वर में विश्वास नया धर्म कहता है अपने में विश्वास।
अगर तुम अपने में विश्वास करते हो तो नास्तिक नही हो।