Tuesday, November 20, 2018

आंख पर पट्टी बांध कर गांधारी न बनें, धर्म युद्ध के लिए सनद कुंती बनें

महाभारत  बहुत महत्व का महाकाव्य है हिन्दू समाज इस काव्य से बहुत सिख लेता है भगवान कृष्ण का प्रभाव तो सर्व दूर ,सर्वव्यापक तो है ही।पर महाभारत के भी नकारात्मक पात्र है उसका प्रभाव भी हिन्दू समाज पर है।
हम लोग महाभारत से इतना ज्यादा प्रभावित रहते है कि हमारे व्यक्तिगत जीवन का कोई भी काम ऐसा नही है जो इस महाकाव्य में वर्णित न हो।
मतदाता के रूप में हम लोग जब धृतराष्ट्र बन जाते है तो राष्ट्र को दुःख भोगना पड़ता है जब हम गांधारी हो जाते है बच्चे दुर्योधन दुशासन जैसे होने लगते है।
देखो नाम ही कितना जबरदस्त है
सु शासन जो गांधारी का पुत्र है पर गांधारी के आंख पर पट्टी है जिस कारण उसके अधर्मी कार्यो को देख कर वो उसको टोक नही सकती है जिस कारण वो दु शासन बनता है।
अब आप पधारिये कुंती की तरफ।
वो अपने बच्चों को धर्म के लिए लड़ना सिखाती है वो गुरु जनों का सम्मान करना सिखाती है वो नारी का सम्मान सिखाती है उसके बच्चे स्वयं दानमित्र- धर्म-शक्ति-भक्ति-समर्पण-सौंदर्य है।कर्ण उसका बच्चा जरूर है पर परिश्थिति वश उसका शिक्षण वो नही कर पाई थी इस कारण वो स्वार्थ वशीभूत दुर्योधन के साथ है उसके लिये तो स्वयं का स्वार्थ ही सब भले किसी स्त्री का अपमान करना पड़ जाए पर वो तथाकथित मित्र धर्म निभाता है जाने ऐसे मित्र धर्म की किसने महिमा गाई?पर भगवान ने नही गाई भगवान भी तो मित्र है न?उनका एक नाम ही मित्र है।
छोड़िए उस बात को।
तो मैं बता रहा था कि कुंती ने अपने बच्चों को बनाया ऐसा बनाया ऐसा बनाया कि भगवना तक को उसका सारथी बनने को विवश होना पड़ा।याने भगवान को आना पड़ा झूठा पत्तल उठाने।सारा मजमा जमा है हजारो राजे रजवाड़े है खूब ऐश्वर्य बिखरा है और उधर हमारे भगवान ऋषियों के झूठे पत्तल उठा रहे है।
जय श्री कृष्ण।
पर शास्त्र तो उस महायज्ञ को भी चंद पंक्तियों में व्यर्थ बता देते है अगर आपने स्वयं भूखे रहकर भी दूसरे को खिलाया हो।पूरा ब्राह्मण परिवार समाप्त एक भिक्षुक की याचना में उसकी क्षुब्धा शांत करने में।
दरिद्र नारायण भगवान की जय।
और उस के पड़े झूठन से नेवला सोने का हो जाता है पर उसका आधा अंग भगवान द्वारा उठाए गए पत्तलों से भी नही होता सोने का।
कितना कठिन है इस समझना?
विधाता की विधि तो स्वयं विधाता ही जानता है।
तो कुंती अपने दिव्यांग जेठ-जेठानी की सेवा करने नियमित राजमहल जाती है अपने देवर-देवरानी को भी मार्ग दिखाती है अपने बच्चों को सन्देश भेज करधर्मयुद्ध के लिए भी तैयार करती है सामान्य नागरिक जन आदि जो उससे मिलने आते है उनको भी धर्म की प्रेरणा देती है।
पर क्या उसकी किसी से भी आसक्ति है?क्या उसका किसी से मोह है?
युधिष्ठिर राज जीतने के बाद साम्राज्य का सुख जो कुंती ने भी नही भोगा अपनी माँ के चरण में समर्पित करने आता है और उनको राजमहल चलने का कहता है।
पर कुंती उसको धर्म का गृहस्थी का अध्यात्म का उपदेश देती है और कहती है कि प्रजा पालन ही क्षत्रिय धर्म है उसके लिए ही त्याग पूर्वक उपभोग करना।पर मैं तो मेरे माता-पिता तुल्य दिव्यांग जेठ-जेठानी के साथ वन गमन करूंगी और कृष्ण नाम लेते लेते ही प्राण त्याग करूंगी।
जब जोधपुर निर्वाचन आयोग के आंख पर पट्टी बांध कर मतदान न करें वाला एड देखा तो मेरे मन ये सब विचार उमड़ घूमड कर आये तो सोचा उसको अभिव्यक्त कर दूं।
जय श्री कृष्ण।
जय जय श्री राम

Monday, November 19, 2018

प्रेम भाव से मिलें हम,रोकेंगे सब दुर्भाव हम

सदियों से पुष्करणा ब्राह्मण और माली समाज साथ साथ रहते आये है न मेरे पिता जी ने कभी बताया न मेरे दादा जी ने कभी बताया कि एक भी मतलब एक भी ऐसी घटना हुई हो जहाँ इन दोनों के बीच कभी भी कैसा भी कोई विवाद या झगड़ा या मन मुटाव हुवा हो।मेरे तो अनेको अनेक अभिन्न मित्र है।मैं निरन्तर उनसे मार्गदर्शन लेता रहता हूँ उनका अत्यंत सम्मान करता हूँ वो मेरे को टोक भी सकते है ऐसा भी कह देते है " भासा यूं नही बोलणो,यूं नही करणों"।अनेको ठेकेदार,कर्मी भी मेरे अत्यंत प्रिय है वो मुझे न केवल व्यवहारिक ज्ञान बल्कि उत्कृष्ट कोटि का तकनीक ज्ञान भी सिखाते है फिर वो अत्यंत सुशिक्षित मेरे बॉस हो या साधरण या कम पढे पर सड़क भवन आदि निर्माण के अत्यंत विशेषज्ञ।
ये कैसी घटिया राजनीति आई जिसने इस भाईचारे को तोड़ने की कोशिश की।मैं ऐसी सभी राजनीति और राजनीति दलों व्यक्तियों का विरोधी हूँ जो हमारे बीच फुट डालने की कोशिश कर रहे हैं।मेरे घर पर माली समाज के जुड़े संघ के अत्यंत वरिष्ठ जनों का बहुत स्नेह है प्रेम है।
प्रति दिन का मिलना जुलना है।
पता नहीं इन नेताओं की अक्ल पर कैसा पर्दा पड़ गया है।जो लड़ाने झगड़ने की कोशिश में है ताकि स्वयं का लाभ ले सकें।
भाई जी हमको सत्ता से प्यार नही है हमको अनीति के धन से प्यार नही है हमको हमारी माँ से बहुत प्यार है भारत माँ बहुत प्यारी है हमारे सारे ये मित्र  मार्गदर्शक गुरुजन सहकर्मी ठेकेदार कर्मी आदि सभी बहुत प्यारे है।
मेरा सभी मतदाताओं से निवेदन है कि कैसे भी उन्मादी तत्वों के बहकावे में न आवें और इस भाई चारे को खत्म न करें।
नख से लेके सर तक राजनीति गप्पे हांकने के बाद भी मुझे राजनीति से सख्त नफरत है।राजस्थान में ऐसा घटियापन मेने पहली बार देखा है।
क्रांति कथा नग घूम रहे है गुमनामी की राहों में
गुंडे तस्कर फिरते है राजधर्म की बाहों में

Saturday, November 17, 2018

निराश करता निर्लज्ज जातिवाद और सम्प्रदायवाद।

निर्लज्ज जातिवाद और साम्प्रदायिकवाद की जरूरत नही है आप अपना काम गिनाओ।वोट किसको देना है मतदाता तय कर लेंगे।राजनीति में रुचि रखने वाले लोगो के सार्वजनिक पोस्ट अत्यंत निराशा जनक है मुझे अंधकार मय दिखता है बहुत कम है जो अपना काम बता रहे है बस ब्राह्मण को जिताओ ब्राह्मण को हराओ।पुष्करणा को टिकट दिया पुष्करणा को टिकट नही दिया।अरे तुम पढ़े लिखे हो या गधे हो?हद मूर्खता है।ये हाल तब है जब पुष्करणा लगभग शत प्रतिशत साक्षर है।
पढ़ लिख ने भी धूळ फाँकी।
दूजो रे देखा देखी थोरो गुण थे केन लेवने छोड़ो?थोड़ा बडेरा भी कोणी करियो एडो कदेई।
सत्ता एड़ी जरूरी चीज व्हे?थोरी जिम्मेदारी ही कि थे हिन्दुओ ने हमझावता कि भाई जाती-पाती छोड़ ने हम राष्ट्र धर्म रों कोम माते बात करो उन माते ही सब चली।पण केडो घोर कलजुग आयो।
कई कॉम माते बात नही बस पुष्करणा रे खिलाफ पुष्करणा रे पक्ष में।ओछी बात।
ठीक व्हे हेंगो ने दिखे राजनीति आँखियी फूटोडी कोणी पण थे थोरो धर्म क्यो छोड़ो?
अपोने भाईचारे रि प्रेम री सद्भाव री काम काज री।ईमानदारी उ जीवन यापन करने इज बात करनी।वो इज करणों।
आ इज बडेरा हीखा ने गया हा।
राजनीति रे कारण सत्ता हड़पनी अगर होचता तो कदे जयनारायण जी पद कोणी छोड़ता रामराज जी कदे ही पोस्ट ले लेता।
इण वास्ते देख भाल ने लिखो।किनी भी जाति धर्म रे खिलाफ लिखनी जगह मुद्दों री बात करो।तो इज थोरी चोखी लागी वरना भुंडी इज लगानी हॉ।
जातिवाद किसी भी जाति का भला नही करता है।उससे बचकर रहें।और मतदाता बन कर ही विचार करें।
कृपया प्रतिनिधि चुने जाती नही।

Friday, November 16, 2018

दोस्तों के संग मारवाड़ी में गप्प और बेडा पार

समय बहुत महत्वपूर्ण होता है निकल जाने के पश्चात वापस नही आता है अपना अनुभव कहता है कि व्यक्ति को उसकी मातृ भाषा के अतिरिक्त अगर कुछ भी अध्ययन करना पड़ें तो उसके सीखने में बहुत समय लगता हैं क्योंकि हमारा मन किसी भी नई वस्तु को जानने पर उसे पहले से जानी गई वस्तु के रूप में विचार करता है ततपश्चात उसे स्मरण आदि करने की कोशिश करता है।अब आप विचार करें कि मान लीजिए चिकित्सा शास्त्र आपने आरम्भ से ही हिंदी में पढ़ा हो या पढ़ते हो तो उसे कितनी देर में सीखेंगे और उसी शास्त्र को आप आरम्भ से ही इंग्लिश में सीखना आरम्भ करें।मान लीजिए आपकी मातृ भाषा हिंदी है और अपने इंग्लिश भी पढ़ी है।
तो किस भाषा मे आप उस विषय को जल्दी पकड़ लेंगे?
मेरा अनुभव विज्ञान के क्षेत्र में कहता है हिंदी में।और इंजीनियरिंग जो पूरी इंग्लिश में थी तो उसमे समझने में ही इतना समय लग जाता था अब परीक्षा आ गई सेमेस्टर दिया खेल खत्म।अब कोई स्मरण नहीं।
ये ही अगर मातृ भाषा या हिंदी में होता तो?
मेकेनेकील इंजिनियरिंग सबसे कठिन लगती थी उसके लेब में कुछ समझ नही आता था तो मेरा दोस्त Anand Bohra मुझे वो सब "मारवाड़ी" में समझाता था।बस उतना ही।
उसके बाद उस को मैं पढ़ लेता तो अपने शब्दों में जोड़ तोड़ की इंग्लिश बना देता और बेड़ा पार हो गया।समस्या उससे भी गम्भीर आई सी लेंग्वेज में।उसका क्या किया जाए?समझ नही आया।लेट us सी खरीदी।और किसी भी दूसरे से समझने से पहले पढ़ मारी।पर?प्रोग्रामिंग😢
तो पहले पकड़ा Saurabh Vyas को।वो ही समझाना मारवाड़ी में।बस एक क्लास लगी।उसमे मारवाड़ी में ही मेरा उस सेम का सेलेब्स कम्प्लीट।फिर भी हजम नही हुवा।तो मारवाड़ी में ही इस विषय ने गप्पे Rounak Bhansali से Sushil Purohit से Shekhar Kansara से ओर भी लोग थे।कुल मिला कर इसमे भी बेड़ा पार।
विचारणीय बात है कि विषय नया हो तो भी सरलता से समझ मे मातृ भाषा मे ही आता है।ऐसे बहुत से विषय थे कि जो दोस्तो के साथ मारवाड़ी या हिंदी में चर्चा कर कर के ही समझ आये परीक्षा में लिखा उनको भले ही इंग्लिश में था पर समझ मे आये तो अपनी भाषा मे।
तो जो अगर सारा विषय ही स्वयं की भाषा मे पढ़ना पड़े तो?
भारतीय क्या से क्या नही कर देंगे?

अपोणी भाषा अपोनो देश

मातृ भाषा का प्रभाव व्यापक है उसके सामर्थ्य को पहचानिए।
ओपिणी मा री बोली उ हीन भावना राखणी घमंड री बात कोणी व्हे।लोग बाग होचे कि इंग्लिश पढ़ने उ सब साहब बन जावेला पण साहब वाली होच चोखी कोणी हुवे।लगातार री गुलामी उ उपजी पराजीत मानसिकता व्हे।पीयया मारवाड़ी खुद री बोली ने राख ने भी घणा ई कमाया व्हे।जदे तक हिंदी मीडियम जवाता तब तक तो फेर भी मारवाड़ी बोलता आजकल देखूं माँ बाप आपरे टाबरिया ने मारबाड़ी बोलनी हीखावे कोणी,और तो और हिंदी भी वे इंग्लिश रे भेळी हीखावे।मारवाड़ी गई जा रही व्हे, हिंदी भी जा रही व्हे।पछे अंग्रेज बण ने साहब बण जाओ?साहेब बण भी जाओ कठे?😏😏
अपणी भाषा
अपणा देश।
जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है ।
वो नर नही नर पशु निरा और मृतक समान है ।।
~ मैथली शरण गुप्त

#अयोध्या अयोध्या करती है आह्वान वहां बैठा दें राम भगवान

#अयोध्या आज मैं बहुत प्रसन्न हूँ।आप की कल्पना में नहीं हो सकता है कि ये क्या हुवा है।हिन्दू समाज की आत्मा है भगवान श्री राम।राजा कोई होगा तो हम उसको राम के पैमाने से तोलेंगे।राम हमारे रोम रोम में बसते है हिन्दू छत्र को धारण करने वाले सभी लोग सभी राजे रजवाड़े नेता पेशवा मण्डलेशर महमण्डलेशर आदि आदि सभी जो कोई भी सत्ता,राजनीति,सरकार आदि आदि में है और हिन्दू है उन सबके आदर्श भगवान श्री राम हैं उनके प्रत्येक कृत्य उनके प्रत्येक पग हमारे लिए अनुकरणीय है अतः जब यूनानियों ने आक्रमण किया तो मिनेण्डर ने इस अयोध्या को ध्वस्त किया क्यों किया?
क्योंकि हिंदुओं का मनोबल टूट जाये।ताकि हिन्दू पराजित होकर गुलाम बन जावें।पर हिंदुओं ने उसको ठोक पिट कर भगा दिया।उसके बाद सैकड़ो सालों तक किसी भी विदेशी आक्रांता की हिम्मत नही हुई उस तरफ जाने कि मध्य काल मे हिंदुओं का सामर्थ्य सो गया हिन्दू इतने स्वार्थी हो गए कि भाई से भाई लड़ता था इस आपसी फूट का लाभ तुर्क तातार मंगोल पठान अफगान मुगल पुर्तगाली डच अंग्रेज फ्रेंच ने उठाया जिसमें से मुगलों के आक्रमण कारी बाबर के सिपहसालार मीर बाकी ने तोपों से भगवान श्री राम के जन्म स्थान को उड़ा दिया उस दिन अयोध्या जी हजारों हिन्दू गृहस्थों और सैकड़ों साधुओं वैरागियों ने अपने प्राण दिए थे तब से लगातार हिन्दू समाज कोशिश में है भगवान के जन्मस्थान को वापस लेने की।उसके साथ ही भगवान श्री राम की अयोध्या जी का नाम तक मिटाने के लिए उसको "फैजाबाद" नाम दे दिया।सरकारी रिकॉर्ड में भी अयोध्या-जिसको जीता न जा सकें उसका जिक्र तक नही आवें इसकी व्यवस्था की गई।
कब तक सत्य को दबा सकते है?कब तक हिंदुओं के उत्थान को रोक सकते हैं?आज जब ये नाम बदला है तो लगता है हिंदुओं ने अपना स्वाभिमान वापस पाया है।
नाम मे क्या है?
भाई नाम मे बहुत कुछ हैं।
नाम मे तो 10 हजार साल की पूरी संस्कृति है नाम से ही तो मुक्ति है।
क्यों नहीं है?
लेके देखो न एक बार राम नाम।पता चलेगा सामर्थ्य इसका।
हमने लियाहै, लेते है आगे भी लेंगे।अंतिम सांस तक लेंगे।गुरू गोरखनाथ हिन्दुओ के सबसे पुराने पर सबसे प्रगतिशील सम्प्रदाय के प्रवर्त्तक है स्वयं शंकर के अवतार हैं।उनका सम्प्रदाय भारत भर में फैला है उनके साधु महंत जोगी वैरागी कठोर साधना करते है जिस फकीरी का प्रभाव केवल नाथों में ही नही था बल्कि कबीरसाहेब तक उसका असर आता है कबीरसाहेब कहते है
तू कहता कागज की लेखी
मैं कहता अंखियन की देखी
नाथों के साधु जोगी लोग पुस्तको से ज्यादा हठ योग,ध्यान धारणा समाधि आदि में बहुत आगे है जिसका स्पष्ट प्रभाव है बड़ा ही मार्मिक है।
हिन्दुओ की रक्षार्थ इन्होंने बहुत युध्द किया है जदुनाथ सरकार की एक पुस्तक में मैने पढा था कि एक बार इन्होंने मारवाड़ रियासत को भी बचाया था।चिमटा लिए
अलग निरंजन बोल कर विदेशी हमलावरों से भिड़ जाने वाले ये लोग।निश्चित हिन्दू धर्म का उद्धार करेंगे।
भगवान श्री राम के उच्च आदर्श की उनके उस परम सत्य की उनके वचन कि उनके जीवन की हम स्थापना अपनर हृदय में भी और अपने जीवन मे भी करेंगे।निश्चित करेंगे।
जय जय श्री राम।
सियाराम मय सब जग जानी।
जो होई सोई राम रचित राखा।
"जो जिव चाहे मुक्तिको तो सुमरिजे राम।
हरिया गैले चालतां जैसे आवे गाम।।

नोटबंदी हिन्दुओ का सबसे बड़ा परिक्षण था

नोटबन्दी हिन्दू समाज का सबसे बड़ा परीक्षण था वो चाहता तो इसको मिनट में भूंगली बना सकता था जैसे कल मिलार्ड की बनाई थी अभी थोड़ी देर बाद फिर बनाने वाला है पर नोटबन्दी को हिन्दुओ ने पूरा समर्थन दिया।हिन्दुओ के बेईमान लोग तो इधर उधर दौड़ेंगे ही न?बेईमानो का काम ही दौड़ना है पर ऐसे चोर उच्चके ठगों को देख कर हिन्दुओ के दूसरे सामान्य लोग भी चोर बनना चाहते थे और है उनको तगड़ी चोट लगी है उनको ये पता तो चला न कि ऐसा भी हो सकता है।
आपका अथाह धन पड़ा रह जाता है काम तो व्यक्ति ही आता है धन नहीं। जो सत्य धर्म न्याय है वो ही टिकना है सत्य धर्म की नींव बहुत गहरी होती है हिन्दुओ को बार बार उखड़ना इसलिए पड़ता है क्योंकि वो अपनी नींव कच्ची बनाते है अनीति का धन सर्वनाश लाता है साथ में।
ईश्वर भी नही बचाता है।
अतः सत्य धर्म को पकड़ कर ही चलें इसमे आनंद बहुत है कष्ट नहीं है कुछ भी।जो अगर कष्ट भी आवें तो भी उसको सरलता से लेंवे तो भी वो भी आनंद लगेगा।
जय श्री राम
जय जय श्री राम।

जिम्मेदारो में समझ की कमी और अंहकार का होना हिन्दू समाज के पतन का कारण |

हिन्दू समाज की दुर्गत्ति का कारण समझ आ जाता है जिनको सारे देश के हिन्दू आदर देते है ऐसे महाराणा उदयपुर अपने सिटी पैलेस में महाराणा प्रताप से ज्यादा खुद के महिमा मंडन में लगे हैं।जिन मुगलों के कारण साका करना पड़ गया उसके तुलना में मराठे हमलावर है मुगलों से संधि कोई बड़ी घटना है महाराणा उदयसिंह महाराणा प्रताप और महाराणा अमर सिंह द्वारा लगातार 50 वर्षो के युद्ध का कोई जिक्र नहीं है हजारो लोग इसको पढ़ते है।पुस्तक विक्रय में महाराणा प्रताप पर कोई नया रिसर्च नहीं जबकि अंग्रेजो से संधि के साये में रहने वाले राणा का महिमा मंडन।सारे भारत के राजपूतों ने महाराणा प्रताप की तश्वीर और मूर्त्तियों को तो खूब प्रमोट किया पर उनके जीवन पर कोई अत्याधुनिक नवीन रिसर्च या कोई ऐसी पुस्तक जिसको दुसरो को बता सकें वैसा कुछ नहीं।
हाँ एक अच्छा ये हुवा की महारानी पद्मिनी पर तो फिर भी छप गया।यद्यपि महाराणा प्रताप पर पुस्तक उपलब्ध है पर वो ही ओझा जी से ज्यादा कुछ नहीं।ऐसे काम नही चलता।
है नही कोई राजस्थानी ऐसा जो ये कार्य कर सकें?
महाराणा प्रताप पर विस्तृत रिसर्च करके सरल इंग्लिश और हिंदी में पुस्तक छपवा सकें ताकि वो न केवल सर्व सुलभ बनें बल्कि महाराष्ट्र में जैसे छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिष्ठा है वैसी प्रतिष्ठा कम से कम राजस्थान में महाराणा प्रताप की बन सकें।सिटी पैलेस घूमते लिया गया हम दोनों का ये चित्र।श्रीमती जी बार बार पूछ रही थी कहा खोए हुवे हो।
खोए कहा,जब अपने ही हिन्दू समाज के भगवान श्री राम के प्रतिनिधि माने जाने वालों की नादानी देखे तो क्या कहें किस को कहें।
जब याद हमें महाराणा की आती है
आंखों से नीर की नदियां बह जाती है

अयोध्या जी का इतिहास बहुत प्राचीन है

अयोध्या जी का इतिहास उतना ही प्राचीन है जितना ऋग्वेद के इतिहास है।भगवान श्री राम की यह जन्मस्थली तो है ही प्रतापी रघुवंशी राजाओ का स्थल है बल्कि रघु से भी पहले का विस्तृत राज्य था।माननीय उच्च न्यायालय उत्तर प्रदेश की बेंच ने इन लेफ्ट हिस्टोरियन के दावों को नकार कर राम जी की अयोध्या को सप्रमाण माना।न केवल माना बल्कि ये तथकथित हिस्टोरियन वहां पर से माफी मांग कर ही छूट पावें इनकी बहुत बुरी गत बनी न्यायालय में।हिन्दू समाज कितना भलमानस है जो इन लेफ्ट हिस्टोरियन कम फ्रॉड को कुछ नही कह रहा है वरना भगवान श्री राम के ऊपर टिका टिप्पणी कितनी मंहगी पड़ सकती थी अगर ऐसा ही किसी दूसरे मजहब के साथ किया होता।वरिष्ठ लेखिका मीनाक्षी जैन ने विस्तार से इन हिस्टोरियन की पोल उप हाईकोर्ट के जजमेंट में इनके द्वारा दिये गए शपथ पत्रों और स्वीकारोक्ति के आधार पर खोली है।भगवान श्री राम की टेरोकोटा जो भीतरगांव से प्राप्त हुई थी जिसका काल खंड 5 वी शताब्दी ईसापूर्व माना गया है जो अभी usa के ब्रुकलिन म्यूजियम में है और अहल्या द्वारा राम जी को फल देने वाला पांचवी शताव्दी ईसा पूर्व का टेरोकोटा देवगढ़ से प्राप्त हुवा था नेशनल म्यूजिम दिल्ली में है तो तीसरी शताब्दी ईसापूर्व की राम जी की मूर्त्ति जिस पर ब्राह्मी में राम लिखा है वो नाचर खेड़ा सेप्राप्त हुवा था स्पष्ट है कि राम जी के बारे इन लेफ्ट हिस्टोरियन ने झूठ फैलाया और अयोध्या को ही विवादास्पद बनाने की कोशीश की जबकि इस केम्प में कोई भी मतलब कोई भी पुरातत्व वेत्ता नही है और नही था।जिन्होंने भी पुरातत्व वेत्ता होने का दावा कर राम जी के मंदिर के खिलाफ जाकर कोर्ट में कहा जब कोर्ट में मामला आगे बढ़ गया तो ऐसे फर्जी लेफ्ट पुरातत्व वेत्ता ने स्वीकार किया कि उन्होंने कभी खुदाई नही की।कभी अयोध्या तक नही गए।
हो हिन्दू कितना उदार है जो ऐसे बेईमानो को छोड़ देता है।प्रस्तुत चित्र मीनाक्षी जी की बुक से लिया है मेने।

Wednesday, November 7, 2018

पूज्य स्वामी ईश्वरानंद गिरी जी महाराज की प्रथम पुण्यतिथि पर उनके संस्मरण।

आज हमारे गुरुदेव पूज्य स्वामी ईश्वरानंद गिरी जी महाराज की पुण्य तिथि है संयोग से आज दीपोत्सव भी चल रहा है तो मुझे एक ऐसे ही दीपोत्सव के समय पूज्य श्री के साथ बिताए कुछ पल स्मरण में आ रहे है जिसको मेने अपने जीवन का ध्येय बनाने का प्रयास किया है कर रहा हूँ और पूज्य श्री का आशीर्वाद रहा तो आगे भी सहाय होंगे।
21 अक्टूम्बर 2006 की दीपावली सन्त सरोवर माउंट आबू पर ऐसा संयोग प्राप्त हुवा था स्वामी जी का सुबह 7 बजे सभी को दर्शन का लाभ प्राप्त हुवा या उसके पहले आ गए थे अभी ठीक से याद नहीं।सुबह सुबह महादेव की पूजा अर्चना के बाद मन अत्यधिक प्रसन्न था बहुत कम भक्त थे तो सरलता से बातचीत हो सकती थी मेरा कार्य तो केवल श्रवण करना ही था गुरू मुख से निकले गए ब्रह्म वाक्य जो सुनने में अमृत समान जान पड़ते थे उनको मैं सावधन होके सुन रहा था।स्वामी जी प्लेसमेंट के बाद उत्साहित एक विद्यार्थी साधक को सम्बोधित कर के कह रहे थे जिसको जॉब पर लगना था
"सारे विश्व को जान लिया पर आत्मा को न जाना तो इसका क्या अर्थ?
युवावस्था में लगता है कि सब चलता है देख लेंगे जो होगा जो?
पर आत्मा का संधान जरूरी है।
इसी आत्म साधना में जीवन के कर्म करते हुए "नाम" कमाना "धन" आए या न आए परवाह नहीं।
आत्म धन कमाना लौकिक धन जे साथ जरूरी है।"
उस क्षण मेरे पास न मोबाइल था न ही डायरी पर मैने स्मरण रखने की कोशिश की जो ही वो सत्संग पूरा हुवा समय मिलते ही इसको लिपिबद्ध करने की कोशिश की।सत्य है कि शब्द ये नही थे मुझे केवल भाव याद रहा।मेने उतना ही पकड़ा या पकड़ने की कोशिश की।
हमारे गुरूदेव "मेकेनिकल इंजीनियर" थे और जिस समय।उन्होंने डिग्री की थी उस समय के अभियन्ता दुर्लभ होते थे अगर उनको संसार का तनिक भी मोह होता तो उनके कदमो में बड़ा साम्राज्य होता।
अपने सभी प्रवचनों में वेदान्त,भक्ति,विज्ञान, इतिहास,परपंरा,इंजीनियरिंग,मेडिकल,आगम,साधना,तंत्र और भी बहुत ऐसा गूंथते थे कि साधक उस समय निश्चित ही संसार को भूल जाता।ऐसा हमारे अनेकों गुरू भ्राताओ का अनुभव है।
आज ही के दिन उन्होंने अपना ये चोला उतार दिया।पर उनके विचार सनातन है
हम सबके लिए पाथेय है गुरुदेव दुनिया इधर से उधर हो जावें पर हम आपके इन सिद्धान्तो पर ही चलने की कोशिश करेंगे।निरन्तर करेंगे।
जय गुरूदेव
जय शंकर।
शत शत नमन