Friday, November 17, 2017

Padmavat and Maharani Padmini what is actual history in views of historian po

महारानी पदमिनी इतिहासकार की नजरों से
राजस्थान के ऐसा राज्य है जिसमे बहुत सी रियासते थी जिनका आजादी के बाद भारत मे विलय हुवा था केवल जोधपुर को छोड़ दिया जाए तो बाकी किसी रियासत के मामले में ज्यादा आपत्ति नही आई थी क्यों?क्योंकि सभी लोग मेवाड़ के राणा को बहुत सम्मान से देखते थे और आज भी देखते है।उसने भारत मे जुड़ने का फैसला कर लिया था।जिस वंश में महाराणा प्रताप जैसे महावीर हुवे हो उसके वंश को तो हिन्दुआ सूर्य का  पद मिलना ही था न।राजस्थानी जनमानस में मेवाड़ की कहानियां घर घर मे प्रचलित है प्रताप तो जननायक है ही।लेकिन प्रताप से भी ज्यादा या समकक्ष जिस पात्र की कहानी सुनी जाती है जो दादा अपने पोता पोती को सुनाते है वे है महारानी पदमिनी।
    इतिहासकारो के मतानुसार गुहिल नाम के सूर्यवंशी क्षत्रिय ने सबसे पहले सन 565 में मेवाड़ में राजवँश की स्थापना की थी इस्लाम के जन्म से भी पहले और लोकतंत्र जाने तक उसी राजवँश का शासन यहां रहा है।इसी की रावल शाखा में समर सिंह के दो बेटे हुवे है पहला रत्न सिंह दूसरा कुम्भकर्ण सिंह।ये महारावल रत्न सिंह ही महारानी पद्मिनी के पति थे और जिन्होंने खिलजी से घनघोर युद्ध किया था।इनके छोटे भाई नेपाल चले गए थे  जहां पर उन्होंने शासन स्थापित किया वो ही नेपाल के राणा कहलाए।
जब महारावल रतन सिंह राजा बने ही थे उस समय अलाउद्दीन खिलजी ने 28जनवरी 1303 को दिल्ली से रवाना होके चित्तौड़गढ़ जैसे सशक्त किले को लेने के लिए चित्तौड़गढ़ में बहुत बड़ी फ़ौज लेकर घेरा डाला था अनेक किंवदंतियां इस घेरे का कारण महारानी की सुंदरता को बताती हैं जो बिल्कुल ही मनघड़ंत और अपमानजनक है इस संदर्भ में प्रचलित सभी बस कहानियां ही है यह कहानियां क्यों बनी कैसे बनी किसने बनाई यह सब कोई रहस्य नहीं है महारानी का जौहर उस समय पूरे भारत में विख्यात हो गया था एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति मैं बात को जाते जाते वह क्या से क्या हो जाती है इसका हम सबको अनुभव है मलिक मोहम्मद जायसी जो एक मुस्लिम लेखक था उसको इस घटनाक्रम ने बहुत प्रभावित किया था और जायसी ने इस पर हिंदी भाषा का बहुत सुंदर काव्य लिखा है जो आजकल के नरेंद्र कोहली या अमीश त्रिपाठी आदि लेखको के द्वारा लिखे गए उपन्यास आदि के तुल्य ही है।इस कथा की समाप्ति पर जायसी ने इसे रूपक बताया है देखिये इस संदर्भ में इतिहासकार गौरी शंकर ओझा जी क्या कहते है
“इस कथा में चित्तौड़ शरीर का राजा रतनसेन मनका सिंगल दीप हृदय का पद्मनी बुद्धि की तोता मार्गदर्शक गुरु का नागमती संसार के कामों की राघव शैतान का और सुल्तान अलाउद्दीन माया का सूचक है जो इस प्रेम कथा को समझ सके वह इसे इसी दृष्टि से देखें।
इतिहास के अभाव में लोगों ने पद्मावत को ऐतिहासिक पुस्तक मान लिया है परंतु वास्तव में वह आजकल के ऐतिहासिक उपन्यासों कीसी ही कविता बोधकथा है जिसका कलेवर इन ऐतिहासिक बातों पर रचा गया है की रतन सिंह चित्तौड़ का राजा पद्मनी या पद्मावती उस की रानी और अल्लाउद्दीन दिल्ली का सुल्तान था जिसने रत्नसेन से लड़कर चित्तौड़ का किला छीना था बहुधा अन्य शब्द बातें कथा को रोचक बनाने के लिए कल्पित खडी की गई है क्योंकि रतन सिंह 1 बरस भी राज करने नहीं पाया ऐसी दशा में योगी बनकर उसका सिंगल दीप  लंका तक जाना और वहां की राजकुमारी को ब्याह लाना कैसे संभव हो सकता है उसके समय सिंगल दिप का राजा गंधर्वसेन नहीं किंतु राजा कीर्ति निशंक देव पराक्रम बाहु चौथा या भुवनेक बाहु तीसरा होना चाहिए सिंघल दिप में  गंधर्वसेन नाम का कोई राजा ही नहीं हुआ था उस समय तक कुंभलगढ़ आबाद भी नहीं हुआ था तो देवपाल वहां का राजा कैसे माना जाए अल्लाउद्दीन 8 बरस तक चित्तौड़ के लिए घेरा डालने के बाद निराश होकर दिल्ली नहीं लौटा किंतु अनुमानित 6 महीने लड़कर उसने चित्तौड़ ले लिया थाअतः एक ही बार चित्तौड़ पर चढ़ा था इसलिए दूसरी बार चित्तौड़ आने की कथा कल्पित है “ ओझा उदयपुर का इतिहास भाग प्रथम पेज 188।
महारानी पद्मिनी के जोहर की कथा इतनी प्रसिद्धि पा चुकी थी की 1540 ईसवी में पद्मावत के बनने के 70 वर्ष बाद मोहम्मद कासिम फरिश्ता ने अपनी पुस्तक तारीख ए फरिश्ता लिखी उसमें उस कथा का जिक्र है। इसी प्रकार कर्नल टॉड ने भी पद्मनी के संबंध में लिखा है लेकिन उसकी कथा भी पद्मावत और चारण भाटों के ख्यातो की तरह ही है।
इस रतनसिंह को लेके इतिहासकारो में गम्भीर मतभेद है कुछ इसको राणा मानते है कुछ इसको रावल शाखा का कहते है कुछ इसको होना ही नही मानते।कुछ इसको राणा नही बल्कि लक्ष्मण सिंग नाम के राणा का संरक्षक कहते है कुछ लक्ष्मण सिंह को इसका संरक्षक कहते है।श्री रंजन कानूनगो और श्री आर सी मजूमदार तो इस कहानी को ही नही मानते।लेकिन कर्नल टॉड,वीर विनोद,ओझा,सोमानी, दिवाकर,गोपीनाथ शर्मा जैसे अनेको इतिहासकार इस घटना को सत्य मानते है रतनसिंह और पद्मिनी के जौहर को।अब निर्णय कैसे किया जाए?
इसके लिए हमको तत्कालीन सहयात्रियों और शिलालेखों का सहारा लेना पड़ेगा जिससे रतनसिंह का होना या न होना सिद्ध हो ततपश्चात पदमिनी का जौहर होना।रतनसिंह के पिता श्री समरसिंह कहे  जाते है पहले उनका देखते है।समर सिंह के समय के आठ शिलालेख मिलें है जो ओझा जी ने और गोपीनाथ जी ने अपने अपने पुस्तको में विस्तार से दिया है जिसमें समर सिंग के रत्नसिंग नामक पुत्र के होने का जिक्र है।जो समर सिंग के बाद गद्दी पर बैठा था।महारावल रत्न सिंग के समय का एक शिलालेख दरिबे की माइंस के पास वाले मातृकाओं के मंदिर के एक स्तम्भ से मिला था जो ओझा जी को राणावत महेंद्र सिंह उदयपुर द्वारा 16 अगस्त 1928 को छाप के रूप में प्राप्त हुवा।यह लेख संवत 1359 माघ सुदी 5 बुधवार का है श्री राधवल्लभ सोमानी इसको खिलजी के दिल्ली से रवाना होने के चार दिन पूर्व का मानते हुवे रत्नसिंग के उस समय के राजा होने का सप्रमाण दावा करते है तो ओझा अपनी किताब के पेज 191 पर यह लेख देते है तो शर्मा अपने राजस्थान के इतिहास के स्त्रोत किताब के पेज 125 पर देते हैं।
ईसके साथ साथ जब खिलजी ने चितोड़ में नरसंहार करके उसको अपने बेटे को दे दिया तो उसके बेटे ने उसका नाम खिज्राबाद कर दिया था जिसने गम्भीर नदी पर दो वर्षों में एक पुल बनवाया था हिन्दू मन्दिरो को तोड़ कर जिसका लेख भी ओझा को मिला जिसे शर्मा ने भी दिया है तथा एक मकबरे में से लेख मिला जो खिलजी के आने और चित्तोड़ जीतने की पुष्टि करता हुवा उसे ईश्वर की छाया और संसार का रक्षक बताता है जो अरबी में है।ओझा की किताब से देख सकते है आज भी।
इसके साथ ही खिलजी के साथ आया अमीर खुसरो ने अपने ग्रंथ तारीख ए अलाइ में इस युद्ध का वर्णन करता हुवा लिखता है कि सोमवार तारीख 8 जमादी उस्सानी हिजरी संवत 702 तारीख 28 जनवरी 1303 को सुल्तान अलाउद्दीन चित्तौड़ लेने के लिए दिल्ली से रवाना हुआ ग्रंथकर्ता भी इस लड़ाई में साथ था सोमवार तारीख 11 मुहर्रम हिजरी संवत 703 तारीख 26 अगस्त ईसवी सन 1303 कोकिला फतेह हुआ राय भाग गया परंतु पीछे से स्वयं शरण में आया और तलवार की बिजली से बच गया हिंदू कहते हैं की जहां पीतल का बर्तन होता है वही बिजली गिरती है और राय का चेहरा डर के मारे पीतल सा पीला पड़ गया था 30,000 हिंदू को कत्ल करने की आज्ञा देने के पश्चात उसने चित्तौड़ का राज्य अपने पुत्र खिज्र खां को दिया और उसका नाम खिजराबाद रखा सुल्तान ने उसको लाल छत्र जरदोजी खिलअत और दो झंडे एक हरा और दूसरा काला दिए और उस पर लाल तथा पन्ने नश्वर किए फिर वह दिल्ली को लौटा अल्लाह का धन्यवाद कि सुल्ताने हिंद के जो हिन्दू राजा इस्लाम को नहीं मानते थे उन सबको अपनी काफिरों को कत्ल करने वाली तलवार से मार डालने का हुक्म दिया यदि कोई अन्य मतावलम्बी अपने लिए जीने का दावा करता तो भी सच्चे सुन्नी अल्लाह के इस खलीफा के नाम की शपथ खाकर यही कहते कि विधर्मी को जिंदा रहने का हक नहीं है”।
आप पाठकगण इस अमीर खुसरो के बिना लाग-लपेट के बताए हुए विवरण से अलाउद्दीन खिलजी की वास्तविक इच्छा और उसके कार्यों को समझ सकते हैं लेकिन इस प्रकार के सभी लोगों पर सेकुलरिज्म का छाप लगा देने वाले महा धूर्त इतिहासकार जो कम्युनिस्ट पार्टी से सीधा जुड़े थे उन्होंने खुसरो के कथन को उपेक्षा कर खिलजी को दूसरा अकबर बताया है तथा उसे मुल्ला मौलवियों के खिलाफ काम करने वाला बताया इस प्रकार की झूठ आपको दिल्ली विश्वविद्यालय के द्वारा प्रकाशित मध्यकालीन भारत के भाग प्रथम में सम्पादन हरीश वर्मा पाठ लेखिका मीनाक्षी सहाय द्वारा लिखे गए खिलजी वंश में मिल जाएगी यह धूर्तता कब तक चलेगी ईश्वर ही जाने? इसी तरह से इरफान हबीब द्वारा ओझा को कोट करके यह कहना कि ओझा ने पद्मनी को काल्पनिक माना दूसरा बौद्धिक आतंकवाद है इस प्रकार के हथकंडों में ये लोग माहिर है लेकिन सोशियल मीडिया के जमाने मे अब इनकी दुकानदारी ज्यादा नही बची है।
बरहाल एक ओर फ़ारसी तवारीख़ में इस युद्ध का जिक्र आया है उसका नाम है जिया बर्नी उसकी तारीख ए फ़िरोजशाही में लिखा है “सुल्तान अल्लाउदीन ने चित्तोड़ को घेरा और थोड़े ही अर्से में उसे अधीन कर दिया।घेरे के सम्पन्न होने तक चातुर्मास में सुलतान की फौज को बहुत हानि उठानी पड़ी।“
तारीख ए फरिश्ता का जिक्र किया जा चुका है जायसी का काव्य पद्मावत है ही।लेकिन इससे भी पहले सन 1460 यानी कि पदमिनी के जौहर के करीब 157 साल बाद के कुंभलगढ़ शिलालेख में अल्लाउद्दीन से हुवे युद्ध मे राणा शाखा के हमीर के दादा और पिता चाचाओं का मारा जाना लिखा है जो प्रमाणिक है तो एकलिंग महात्म्य के श्लोक 75 76 77 80 से स्पष्ट है महारावल रत्न सिंह का होना और उनकी पटरानी का जौहर होना।
पद्मावत काव्य के पहले करीब 14 वर्ष पूर्व डॉक्टर दशरथ शर्मा के अनुसार गीता चरित में भी पद्मिनी का जिक्र है जो उन्होंने राजस्थान हिस्ट्री कोंग्रेस में अपने अध्यक्षीय भाषण में भी कहा था।इस तरीके से हम लोग विचारकरे तो बहुत से इतिहासकार पद्मिनी के जौहर का प्रमाण खोज कर लाते है समकालिन शिलालेखों ओर तवरीखो से रत्नसिंग के वीरगति को प्राप्त करने का वर्णन है ही।अतः किसी भी व्यक्ति को इतिहास के आईने में से ही फ़िल्म बनानी चाहिए अगर इस प्रकार खिलजी का पद्मावत से प्रेम दिखाने की कोशिशें समाज मे विष ही घोलेगी क्योकि महारानी पदमिनी न केवल ऐतिहासिक पात्र  है बल्कि राजस्थान  देवी की तरह पूजनीय है।
जो इतिहासकार और लेख आदि इस घटनाक्रम को मानते है उसके नाम
1 अमीर खुसरो
2 फरिश्ता
3 अबुल फजल
4 कुम्भलगढ़ लेख
5 एकलिंग महात्म्य
6 जिया बर्नी
7 कर्नल टॉड
8 मुहणोत नेणसी
9 कवि श्यामल दास
10 जगदीश सिंह गहलोत
11 डॉक्टर गोपीनाथ शर्मा
12 गौरीशंकर ओझा
13 डॉक्टर दशरथ शर्मा
14 डॉक्टर सोमानी
15 बी एम दिवाकर
16 डॉक्टर के एस लाल
17 हाजी उदविर
18 बरनी
19 ईलियट
सभी इतिहासकार अल्लाउद्दीन के आक्रमण रत्नसिंग के वीर गति और सहमत है कुछ को छोड़ बाकी सभी पद्मिनी के जौहरपर भी सहमत है और कुछ पद्मावत को भी सत्य कहते है।0आखिर में जायसी की खूबसूरत पंक्तियो गाते हुवे

मैं एहि अरथ पंडितन्ह बूझा । कहा कि हम्ह किछु और न सूझा ॥
चौदह भुवन जो तर उपराहीं । ते सब मानुष के घट माहीं ॥
तन चितउर, मन राजा कीन्हा । हिय सिंघल, बुधि पदमिनि चीन्हा ॥
गुरू सुआ जेइ पंथ देखावा । बिनु गुरु जगत को निरगुन पावा ?॥
नागमती यह दुनिया-धंधा । बाँचा सोइ न एहि चित बंधा ॥
राघव दूत सोई सैतानू । माया अलाउदीं सुलतानू ॥
प्रेम-कथा एहि भाँति बिचारहु । बूझि लेहु जौ बूझै पारहु ॥

तुरकी, अरबी, हिंदुई, भाषा जती आहिं ।
जेहि महँ मारग प्रेम कर सबै सराहैं ताहि ॥1॥

मुहमद कबि यह जोरि सुनावा । सुना सो पीर प्रेम कर पावा ॥
जोरी लाइ रकत कै लेई । गाढि प्रीति नयनन्ह जल भेई ॥
औ मैं जानि गीत अस कीन्हा । मकु यह रहै जगत महँ चीन्हा ॥
कहाँ सो रतनसेन अब राजा ?। कहाँ सुआ अस बुधि उपराजा ?॥
कहाँ अलाउदीन सुलतानू ?। कहँ राघव जेइ कीन्ह बखानू ?॥
कहँ सुरूप पदमावति रानी?। कोइ न रहा, जग रही कहानी ॥
धनि सोई जस कीरति जासू । फूल मरै, पै मरै न बासू ॥

केइ न जगत बेंचा, कइ न लीन्ह जस मोल ?
जो यह पढै कहानी हम्ह सँवरै दुइ बोल ॥2॥

मुहमद बिरिध बैस जो भई । जोबन हुत, सो अवस्था गई ॥
बल जो गएउ कै खीन सरीरू । दीस्टि गई नैनहिं देइ नीरू ॥
दसन गए कै पचा कपोला । बैन गए अनरुच देइ बोला ॥
बुधि जो गई देई हिय बोराई । गरब गएउ तरहुँत सिर नाई ॥
सरवन गए ऊँच जो सुना । स्याही गई, सीस भा धुना ॥
भवँर गए केसहि देइ भूवा । जोबन गएउ जीति लेइ जूवा ॥
जौ लहि जीवन जोबन-साथा । पुनि सो मीचु पराए हाथा ॥

बिरिध जो सीस डोलावै, सीस धुनै तेहि रीस ।
बूढी आऊ होहु तुम्ह, केइ यह दीन्ह असीस ? ॥3॥