Sunday, December 31, 2017

विज्ञान का रोना काम मूर्खो वाला

मेने विज्ञान विज्ञान का रोना रोते उन लोगो को देखा है जो विज्ञान गणित में ग्रेस से पास होते थे।जिनके बस की विज्ञान थी नही जो आर्ट्स में घुसे फिर येन केन डिग्री करके विशेष सोच के लोगो से जुड़ कर प्रगतिवादी बन गए अब वो लोग विज्ञान विज्ञान चिल्लाते घूमते है ऐसे गधों को जातीय द्वेष के चलते अनुयायी भी मिल जाते है।कोई उनसे पूछे कि तुम अगर विज्ञानवादी हो तो पोलिटिकल या राजनीति से कैसे प्रोफेसर हो?रसायन या भौतिकी या चिकित्सा या अभियंत्रिकी या जैविकी से क्यो नही?ध्यान देना मित्रो विज्ञान चिल्लाने वाला पूरी जिंदगी अवैज्ञानिक काम करता है।चवँनो को तरह रात को दारू पीके गाड़ियों को भिड़ा देने वाले और ऐसे तथाकथित त्योहार को मनाने को वकालत करने वाले वो ही लोग है जो सबसे ज्यादा विज्ञान का रोना रोते है।हिन्दू विक्रम संवत पूर्णत विज्ञान पर आधारित है इसमें एक साथ खगोल विज्ञान और मौसम विज्ञान तो जुड़ा ही है साथ मे मानव मनोविज्ञान भी जुड़ा है तो मानव शरीर विज्ञान भी।हिन्दू त्योहार कोई यो ही नही आता है।तुम्हारी समझने की अक्ल कम है जो इसको समझ नही पाते या यों कहें समझना नही चाहते।

राजनीतिक अक्षमता बढ़ता लवजिहाद

मैं तो इस बार मेरे जन प्रतिनिधि से साफ साफ पूछूंगा कि हिंदुत्व पर आपत्ति आई तब आप कहाँ थे?लवजिहाद हो रहा है तब आप क्या कर रहे है?आपकी सत्ता है चलाओ सत्ता  कादण्डा।तुम खुद के व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए क्या क्या नही करते हो तो सत्ता का उपयोग क्यो नही किया हिन्दुओ को बचाने?नही किया नही कर सकते तो तुम हमारे किसी काम के नहीं।तुमसे हमको कोई मोह भी नही।केवल हिन्दुओ का हित ही तुमको वोट देने का कारण है हिन्दू हित नही तो कोई वोट नहीं।
जो हिन्दू हित की बात करेगा
वही राज्य पर राज करेगा

जाती तू क्यो नही जाती

सौरभ पटेल के बारे में पढ़ रहा था पांचवी बार जीता है लेकिन मार्जिन उसका कम रहा क्योंकि उसके विधानसभा क्षेत्र में जातिवाद का जहर इतना घुल चुका था कि उसको हरवाने वहां भेजा है लोग कहने लगे।अमेरिका से mba किया है अहमदाबाद में नई बिल्डिंग जो न केवल पर्यावरण बल्कि एनर्जी सेविंग होती उस कल्चर को लेके आया था।एनर्जी फील्ड का किंग है।धीरूभाई अंबानी के भतीजी का पति है।पटेल है।न केवल उच्च शिक्षित है बल्कि अपनी जिस विधानसभा से जीता है अभी उसमे ही तीन बार पहले जीत चुका है।
अब मेने नीतिन पटेल का पढ़ा मंझा हुवा घाघ राजनीतिज्ञ।वर्षो से पार्टी की विभिन्न पोस्ट पर रहता आया उपमुख्यमंत्री।लेकिन उसको चाहिए वित्त विभाग ही वित्त विभाग।लेकिन उसकी शिक्षा ?बीएससी फैल?
जातिवादी तत्व किसके साथ है यहां?
इस लिए मैं जब कहता हूं कि जाति अपने आप मे बीमारी है ये हिन्दू समाज को खा गई है एक उच्च शिक्षित वित्त का अनुभव वाला आदमी।अपने विधान सभा मे काम से लोकप्रिय भी।उसको छोड़ के जाती किसके पीछे जा रही है ?जो बस ये जात वो जात करने वाले के।
शिक्षक को हरवाने वाले समाज में गुंडे ही निकलते है शिक्षक नही।दोनो पटेल ही है दोनो भले या बुरे होंगे मुझे पता नही पर मैने उनके प्रोफ़ाइल को तोल के देखा तो लगा जो लिख दिया।

चंद लाइने

1)शायर हम सड़को के
लोग पूछते है कौन तुम
काला डामर,तपती धूप
मंजिल वो ही रास्ता वो ही
चलने से पहले
मंजिल तय की थी
बस रास्ता तय करना
यू भूल गए

2)स्वागत आपका हमेशा
शायर हम बिगड़ैल से
पूछ लेना एक बार
मयखानों से भी ज्यादा
चढ़ेगा ऐसा फिर उतरेगा नही
नशा हम कभी सस्ता नही करते
फिर न कहना
आगाह नही किया था

Friday, December 29, 2017

#krishi किसान के दो शत्रु जातीय सोच और दास मानसिकता।

जातिवाद में फंसे किसान वास्तविक समस्या को नही समझ पा रहे है वो सोच रहे है कि सब चीज फ्री में मिल जाएगी तो देश का भला हो जाएगा।जबकि सच ये है कि फ्री में सब डूब जाएगा ऐसी हल्की राजनीति करने वाले नेताओं के साथ लोग फ्री और जातिवाद के कारण लोग खड़े हो जाते है पर मिलना कुछ नही है।
शासन व्यवस्था प्रत्येक वर्ग का हित करे किसान से ले प्रधानंत्री तक सबका कल्याण हो इसलिए ही भारतीय किसान संघ काम करता है।किसान को भारतीय हिन्दू वांग्मय में बहुत महत्व दिया है विश्व के प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद में कृषि का गौरवपूर्ण उल्लेख मिलता है ।अक्षैर्मा दीव्यः कृषिमित्‌ कृषस्व वित्ते रमस्व बहुमन्यमानः । ऋग्वेद-३४-१३।अर्थात जुआ मत खेलो, कृषि करो और सम्मान के साथ धन पाओ।
कृषि करो और सम्मान के साथ धन पाओ मतलब कि उपज का पूरा दाम मिलें।प्राचीन हिन्दुओ ने उस पध्दति को खोज निकाला था जिसमे पूरा का पूरा जीवन ही कृषि के आधार पर चलता था और उस कृषक का सम्मान इतना ज्यादा था कि वो हिन्दू व्यवस्था का मेरुदण्ड था लेकिन मुगलो और अंग्रेजो की लूट ने उसको बहुत हद तक प्रभावित किया बाद कि सरकारो के अन्धनधुकर्ण से गलत नीतियों से कृषि आज घाटे का सौदा बन गया है साफ है कि सरकारों की नीतियां गलत है वो दुनिया का उन्नतम किसान देने वाली प्राचीन कृषि पध्दति कीजगह विदेशी सोच के आधार पर चलने वाली आसुरी कृषि पद्धति को अपनाया।नतीजा अन्नदाता दिनों दिन दरिद्रनारायण होता जा रहा है।भारतीय किसान संघ की सर्वसमावेशी सोच मुझे अच्छी लगती है।इसमें न केवल भारत के किसान का बल्कि सम्पूर्ण भारत का ही नही मानवता का कल्याण है।

#JaiBhim भीम नाम हमारे महादेव का,भीम नाम हमारे अपने संविधान निर्माता युग पुरुष बाबा साहब अंबडेकर का।तो बोलो जय भीम।

जय भीम।भीम नाम महादेव का है वहां से ही सबको मिला है महाभारत के बलशाली भीम को तो भीमा नदी को तो आधुनिक युग के महान समाज सुधारक और संविधानज्ञ भीमराव को और अब भीम नामक क्रांतिकारी एप्लीकेशन को।
मेरे लिए मेरे आराध्य का नाम लेना ही बहुत रोमांचक अनुभव करा देता है अब तो भारत सरकार भी ले रही है।
प्रिय बन्धुवर!!भीम हमारा ही नाम है हमारे ही आराध्य का नाम है और जब तक सृष्टि चलेगी ये नाम चलेगा इस लिए जय भीम का नारा लगाने वाला हमारा ही भाई।मैं बहुत सालों तक ये ही मानता रहा हूँ कि जय भीम लिखने वाले महाभारत के भीम के उपासक होन्गे।उस समय ज्यादा पता नही था।भीम को किसी भी मीम आदि के साथ जोड़ने की गलती न करें क्योकि आज तक के इतिहास में भी ये उदाहरण नही एक भी नही।सही समझे एक भी नही।जय भीम।
भवः शर्वो रुद्रः पशुपतिरथोग्रः सहमहान्
तथा भीमेशानाविति यदभिधानाष्टकमिदम्
अमुष्मिन् प्रत्येकं प्रविचरति देव श्रुतिरपि
प्रियायास्मैधाम्ने प्रणिहित-नमस्योऽस्मि भवते
हे शिव, वेद एवं देवगन आपकी इन आठ नामों से वंदना करते हैं - भव, सर्व, रूद्र, पशुपति, उग्र, महादेव, भीम, एवं इशान। हे शम्भू मैं भी आपकी इन नामों से स्तुति करता हूं।

Thursday, December 28, 2017

ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या

ब्रह्मसूत्र वेदान्त परम्परा का एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है जिस पर अनेक महात्माओ ने भाष्य टीका आदी लिखा है सबसे महत्वपूर्ण भाष्य इसमें शारीरिक भाष्य है जो भगवान शंकराचार्य जी ने लिखा है अथातो ब्रह्म जिज्ञासा से ये ब्रह्मसूत्र शुरू होता है।सूत्र रूप में लिखित ये वेदांत का मर्म है ब्रह्म ज्ञान है और अतीव दुरूह और कठिन है आधुनिक युग में अनेक महात्माओ ने भी इस पर टीका लिखी है और अनेक महात्माओ के प्रवचन है।सरल भाषा में इस ब्रह्म विद्या पर वृन्दावन के स्वामी अखण्डानन्द जी ने इसके चतु सूत्री पर तिन खण्डों में प्रवचन दिया था जिज्ञासु साधको के लिए बहुत उपयोगी है।
वेदांत परम्परा में व्यक्ति जब यात्रा आरम्भ करता है तो उसका जीवन का दृष्टिकोण बदल जाता है उसके जीवन को देखने का नजरिया बदल जाता है।
इस संसार में किसी भी वस्तु में सार नही है सब के सब सार है समस्या ये है कि हम लोग प्रतिक्षा करते है जीवन में कोई दुःख या कष्ट के आने की या फ़ीर इसे सन्यासियो के लिए छोड़ देते है या फिर वृद्धावस्था के लिए।
ये विद्या तो गृहस्थ धर्म में यौवन में ही सिखने की है ताकि जीवन संग्राम के हर क्षण में इसकी अनुभूति हो।
हर क्षण हर पल हर व्यक्ति हर घटना दुर्घटना सुख दुःख सब का सब उस ब्रह्म का ही स्मित हास्य है। और उसके इस हास्य को भी हास्य के साथ ही देखना चाहिए।
ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या।

Thursday, December 7, 2017

काम आपूर्ति में बाधा मतलब अनियंत्रित हिंसा।

शास्त्रों में बहुत वैज्ञानिक तरीके से बताया है मनुष्य प्रत्येक कार्य काम के वशीभूत करता है काम का एक अर्थ इच्छा होता है एक अर्थ होता है वासना।काम माने प्राप्त करना।लौकिक या परलौकिक।कंचन कामिनी कीर्ति प्राप्त करना।सृजन करना।निर्माण करना।आश्चर्य ये कि ध्वंस करना भी काम से ही होता है।
जिसकी कोई इच्छा नही इस लोक परलोक में उसे कुछ भी प्राप्त करना नही वो सापेक्ष नही रहता है।निरपेक्ष रहकर कर्तव्य कर्म करता है।काम को नियंत्रित किया जाता है परिवार जनों और गुरु जनो के मार्गदर्शन में,शास्त्र के अध्य्यन और अनुपालन में कानून के जोर से।मनुष्य अनुशासन में बांध कर काम को नियंत्रित करता है भारत का संविधान प्रत्येक व्यक्ति की इच्छा को धर्म सम्मत बनाता है कि इच्छा पूर्ति के मार्ग भी युगानुकूल नीति सम्मत हो।अनीति से काम की पूर्ति नही हो सकती।
                      भोग न भोक्ता वयमेव भोक्ता शास्त्र वचन है।अब काम मे मनुष्य को अतृप्त इच्छाओ में कृत्रिम पदार्थ उत्प्रेरक का काम करते है मदिरा, अफीम,ड्रग्स,चाय,कॉपी आदि आदि कैसा भी नशा।इनसे दूर रहने की शास्त्र की आज्ञा है स्पष्ट।
देखिये मानव मात्र को ज्ञान देने वाले वेद क्या कहते है इस को श्री डॉक्टर विवेक जी आर्य के अनुवाद से लिया है -
१. वेद में मनुष्य को सात मर्यादायों का पालन करना निर्देश दिया गया हैं- सन्दर्भ ऋग्वेद 10/5/6  इन सात मर्यादाओं में से कोई एक का भी सेवन नहीं करता हैं तो वह पापी हो जाता हैं।

२. शराबी लोग मस्त होकर आपस में नग्न होकर झगड़ा करते और अण्ड बण्ड बकते हैं। - ऋग्वेद 8/2/12

३. सुरा और जुए से व्यक्ति अधर्म में प्रवृत होता हैं- ऋग्वेद 7/86/6 

४. मांस, शराब और जुआ ये तीनों निंदनीय और वर्जित हैं। - अथर्ववेद 6/70/1

अब आप विचार करिये इस प्रकार के काम को बढ़ाने वाले पदार्थों के निरन्तर सेवन से क्या होगा?
अब क्या लौकिक पदार्थ ही नशे को बढ़ाते है?जवाब है नहीं।
जाती और मजहब दो ऐसे तत्व है जो भी मादकता को बढ़ाने का काम करते है जो मादकता मात्र खुद के इच्छा को तुष्ट करने वाली होती है।
शास्त्र कहता है जिसमे इच्छा है काम है उसमें लौकिक अंह भी होता है।वैसे प्रत्येक का अपना अपना अंह अपना मैं पना है जो समष्टि के "मैं" से एकाकार है लेकिन वो अंह इस लौकिक अंह से अलग है जिसकी चर्चा बाद में कभी करेंगे।तो काम जो है वो इस अंह के समानुपाती है जो जो काम की पूर्ति होती है व्यक्ति का अंह तुष्ट होता जाता है जैसे ऊपर बताया कि काम की कभी पूर्ति होनी नही और ये लौकिकअंह कभी तुष्ट होना नही।सारा संसार निगल लो फिर नही प्यासे ही रहोगे।
अतः मनुष्य को इस आधारभूत गुणों को समझना चाहिए तद अनुसार आचरण करना चाहिए।जब तक हम उन मूलभूत गुणों पर चलेंगे तब तक ही वे प्रकृति प्रदत्त गुण हमारा रक्षण करेंगे।अंह पर चोट पड़ने से ही क्रोध उत्पन्न होता है और क्रोध में बुद्धि भृमित हो जाती है जिसे भगवान ने गीता में कहा है
क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः।

स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।।2.63।।
2.63।।क्रोधसे संमोह अर्थात् कर्तव्यअकर्तव्यविषयक अविवेक उत्पन्न होता है क्योंकि क्रोधी मनुष्य मोहित होकर गुरुको ( बड़ेको ) भी गोली दे दिया करता है। 
मोहसे स्मृतिका विभ्रम होता है अर्थात् शास्त्र और आचार्यद्वारा सुने हुए उपदेशके संस्कारोंसे जो स्मृति उत्पन्न होती है उसके प्रकट होनेका निमित्त प्राप्त होनेपर वह प्रकट नहीं होती।
इस प्रकार स्मृतिविभ्रम होनेसे बुद्धिका नाश हो जाता है। अन्तःकरणमें कार्यअकार्यविषयक विवेचनकी योग्यताका न रहना बुद्धिका नाश कहा जाता है। 
बुद्धिका नाश होनेसे ( यह मनुष्य ) नष्ट हो जाता है क्योंकि वह तबतक ही मनुष्य है जबतक उसका अन्तःकरण कार्यअकार्यके विवेचनमें समर्थ है ऐसी योग्यता न रहनेपर मनुष्य नष्टप्राय ( मनुष्यतासे हीन ) हो जाता है।
अतः उस अन्तःकरणकी ( विवेकशक्तिरूप ) बुद्धिका नाश होनेसे पुरुषका नाश हो जाता है। इस कथनका यह अभिप्राय है कि वह पुरुषार्थके अयोग्य हो जाता है।

स्पष्ट है कि क्रोध मोह अंह हिंसा प्रतिहिंसा बर्बरता राग द्वेष लोभ  आदि सब मानवीय दुर्गुण है और मानव में है तो प्रत्येक मानव के रिलीजन मजहब नस्लो में है और मानव उस नाते ही कर्म करता है।
समस्या ये है कि बहुत से मानव समुदायों ने वैश्विक मानवीय गुणों अवगुणों को अपना हथियार बना रखा है इस हथियारों के साधन से वो लोग अपना अपना मजहब बढ़ाते है मजहबी आसुरी वृत्ति मनुष्य को एक तरह बन कर सभी कुछ हड़पने की भले ही वो अधर्म संगत हो भले ही वो संविधान विरुद्ध हो भलेही वो मानवता विरुद्ध हो वो लोग इस प्रकार की कुचेष्टाओं को करते रहते है जिससे मानव समुदाय में एक साम्य बिगड़ जाता है और उस साम्य के बिगड़ जाने से कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ जाती है।
               अब संविधान के तहत कार्य करने वाले लोगों को चाहिए कि वो लोग इस गम्भीर तत्व को समझें और उस हिसाब से आचरण करें।
भारत ही नही विश्व मे जिहाद आज एक ऐसा शब्द बन गया है जो हिंसा प्रतिहिंसा की आसुरी वृत्ति को बढ़ा रहा है जिसके पीछे का अगर हम विचार करे तो लौकिक या अलौकिक भोगों को भोगने की आसुरी इच्छा दिखाई देती है जो काम का ही एक विकृत रूप है इस जिहाद ने उस साम्य को पिछले बहुत सालो से बिगाड़ रखा है  आजकल तो एक निकृष्ट रूप चल पड़ा है जिसमें पहले हिन्दू या सिख या पारसी या जैन या क्रिश्चन लड़की को मोह के आवरण में भरमाया जाता है इसका पूरा का पूरा एक तंत्र है जो इसमे काम करता है.
अत हिन्दू धर्म के इन बुनियादी सिद्धान्तों को समझ कर ही इस लव जिहाद के खिलाफ काम करना चाहिए।अविवेवकी जन इस में सहायक हो जायँगे विवेकी व्यक्ति ही प्रतीक्षा करेगा।

Friday, November 17, 2017

Padmavat and Maharani Padmini what is actual history in views of historian po

महारानी पदमिनी इतिहासकार की नजरों से
राजस्थान के ऐसा राज्य है जिसमे बहुत सी रियासते थी जिनका आजादी के बाद भारत मे विलय हुवा था केवल जोधपुर को छोड़ दिया जाए तो बाकी किसी रियासत के मामले में ज्यादा आपत्ति नही आई थी क्यों?क्योंकि सभी लोग मेवाड़ के राणा को बहुत सम्मान से देखते थे और आज भी देखते है।उसने भारत मे जुड़ने का फैसला कर लिया था।जिस वंश में महाराणा प्रताप जैसे महावीर हुवे हो उसके वंश को तो हिन्दुआ सूर्य का  पद मिलना ही था न।राजस्थानी जनमानस में मेवाड़ की कहानियां घर घर मे प्रचलित है प्रताप तो जननायक है ही।लेकिन प्रताप से भी ज्यादा या समकक्ष जिस पात्र की कहानी सुनी जाती है जो दादा अपने पोता पोती को सुनाते है वे है महारानी पदमिनी।
    इतिहासकारो के मतानुसार गुहिल नाम के सूर्यवंशी क्षत्रिय ने सबसे पहले सन 565 में मेवाड़ में राजवँश की स्थापना की थी इस्लाम के जन्म से भी पहले और लोकतंत्र जाने तक उसी राजवँश का शासन यहां रहा है।इसी की रावल शाखा में समर सिंह के दो बेटे हुवे है पहला रत्न सिंह दूसरा कुम्भकर्ण सिंह।ये महारावल रत्न सिंह ही महारानी पद्मिनी के पति थे और जिन्होंने खिलजी से घनघोर युद्ध किया था।इनके छोटे भाई नेपाल चले गए थे  जहां पर उन्होंने शासन स्थापित किया वो ही नेपाल के राणा कहलाए।
जब महारावल रतन सिंह राजा बने ही थे उस समय अलाउद्दीन खिलजी ने 28जनवरी 1303 को दिल्ली से रवाना होके चित्तौड़गढ़ जैसे सशक्त किले को लेने के लिए चित्तौड़गढ़ में बहुत बड़ी फ़ौज लेकर घेरा डाला था अनेक किंवदंतियां इस घेरे का कारण महारानी की सुंदरता को बताती हैं जो बिल्कुल ही मनघड़ंत और अपमानजनक है इस संदर्भ में प्रचलित सभी बस कहानियां ही है यह कहानियां क्यों बनी कैसे बनी किसने बनाई यह सब कोई रहस्य नहीं है महारानी का जौहर उस समय पूरे भारत में विख्यात हो गया था एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति मैं बात को जाते जाते वह क्या से क्या हो जाती है इसका हम सबको अनुभव है मलिक मोहम्मद जायसी जो एक मुस्लिम लेखक था उसको इस घटनाक्रम ने बहुत प्रभावित किया था और जायसी ने इस पर हिंदी भाषा का बहुत सुंदर काव्य लिखा है जो आजकल के नरेंद्र कोहली या अमीश त्रिपाठी आदि लेखको के द्वारा लिखे गए उपन्यास आदि के तुल्य ही है।इस कथा की समाप्ति पर जायसी ने इसे रूपक बताया है देखिये इस संदर्भ में इतिहासकार गौरी शंकर ओझा जी क्या कहते है
“इस कथा में चित्तौड़ शरीर का राजा रतनसेन मनका सिंगल दीप हृदय का पद्मनी बुद्धि की तोता मार्गदर्शक गुरु का नागमती संसार के कामों की राघव शैतान का और सुल्तान अलाउद्दीन माया का सूचक है जो इस प्रेम कथा को समझ सके वह इसे इसी दृष्टि से देखें।
इतिहास के अभाव में लोगों ने पद्मावत को ऐतिहासिक पुस्तक मान लिया है परंतु वास्तव में वह आजकल के ऐतिहासिक उपन्यासों कीसी ही कविता बोधकथा है जिसका कलेवर इन ऐतिहासिक बातों पर रचा गया है की रतन सिंह चित्तौड़ का राजा पद्मनी या पद्मावती उस की रानी और अल्लाउद्दीन दिल्ली का सुल्तान था जिसने रत्नसेन से लड़कर चित्तौड़ का किला छीना था बहुधा अन्य शब्द बातें कथा को रोचक बनाने के लिए कल्पित खडी की गई है क्योंकि रतन सिंह 1 बरस भी राज करने नहीं पाया ऐसी दशा में योगी बनकर उसका सिंगल दीप  लंका तक जाना और वहां की राजकुमारी को ब्याह लाना कैसे संभव हो सकता है उसके समय सिंगल दिप का राजा गंधर्वसेन नहीं किंतु राजा कीर्ति निशंक देव पराक्रम बाहु चौथा या भुवनेक बाहु तीसरा होना चाहिए सिंघल दिप में  गंधर्वसेन नाम का कोई राजा ही नहीं हुआ था उस समय तक कुंभलगढ़ आबाद भी नहीं हुआ था तो देवपाल वहां का राजा कैसे माना जाए अल्लाउद्दीन 8 बरस तक चित्तौड़ के लिए घेरा डालने के बाद निराश होकर दिल्ली नहीं लौटा किंतु अनुमानित 6 महीने लड़कर उसने चित्तौड़ ले लिया थाअतः एक ही बार चित्तौड़ पर चढ़ा था इसलिए दूसरी बार चित्तौड़ आने की कथा कल्पित है “ ओझा उदयपुर का इतिहास भाग प्रथम पेज 188।
महारानी पद्मिनी के जोहर की कथा इतनी प्रसिद्धि पा चुकी थी की 1540 ईसवी में पद्मावत के बनने के 70 वर्ष बाद मोहम्मद कासिम फरिश्ता ने अपनी पुस्तक तारीख ए फरिश्ता लिखी उसमें उस कथा का जिक्र है। इसी प्रकार कर्नल टॉड ने भी पद्मनी के संबंध में लिखा है लेकिन उसकी कथा भी पद्मावत और चारण भाटों के ख्यातो की तरह ही है।
इस रतनसिंह को लेके इतिहासकारो में गम्भीर मतभेद है कुछ इसको राणा मानते है कुछ इसको रावल शाखा का कहते है कुछ इसको होना ही नही मानते।कुछ इसको राणा नही बल्कि लक्ष्मण सिंग नाम के राणा का संरक्षक कहते है कुछ लक्ष्मण सिंह को इसका संरक्षक कहते है।श्री रंजन कानूनगो और श्री आर सी मजूमदार तो इस कहानी को ही नही मानते।लेकिन कर्नल टॉड,वीर विनोद,ओझा,सोमानी, दिवाकर,गोपीनाथ शर्मा जैसे अनेको इतिहासकार इस घटना को सत्य मानते है रतनसिंह और पद्मिनी के जौहर को।अब निर्णय कैसे किया जाए?
इसके लिए हमको तत्कालीन सहयात्रियों और शिलालेखों का सहारा लेना पड़ेगा जिससे रतनसिंह का होना या न होना सिद्ध हो ततपश्चात पदमिनी का जौहर होना।रतनसिंह के पिता श्री समरसिंह कहे  जाते है पहले उनका देखते है।समर सिंह के समय के आठ शिलालेख मिलें है जो ओझा जी ने और गोपीनाथ जी ने अपने अपने पुस्तको में विस्तार से दिया है जिसमें समर सिंग के रत्नसिंग नामक पुत्र के होने का जिक्र है।जो समर सिंग के बाद गद्दी पर बैठा था।महारावल रत्न सिंग के समय का एक शिलालेख दरिबे की माइंस के पास वाले मातृकाओं के मंदिर के एक स्तम्भ से मिला था जो ओझा जी को राणावत महेंद्र सिंह उदयपुर द्वारा 16 अगस्त 1928 को छाप के रूप में प्राप्त हुवा।यह लेख संवत 1359 माघ सुदी 5 बुधवार का है श्री राधवल्लभ सोमानी इसको खिलजी के दिल्ली से रवाना होने के चार दिन पूर्व का मानते हुवे रत्नसिंग के उस समय के राजा होने का सप्रमाण दावा करते है तो ओझा अपनी किताब के पेज 191 पर यह लेख देते है तो शर्मा अपने राजस्थान के इतिहास के स्त्रोत किताब के पेज 125 पर देते हैं।
ईसके साथ साथ जब खिलजी ने चितोड़ में नरसंहार करके उसको अपने बेटे को दे दिया तो उसके बेटे ने उसका नाम खिज्राबाद कर दिया था जिसने गम्भीर नदी पर दो वर्षों में एक पुल बनवाया था हिन्दू मन्दिरो को तोड़ कर जिसका लेख भी ओझा को मिला जिसे शर्मा ने भी दिया है तथा एक मकबरे में से लेख मिला जो खिलजी के आने और चित्तोड़ जीतने की पुष्टि करता हुवा उसे ईश्वर की छाया और संसार का रक्षक बताता है जो अरबी में है।ओझा की किताब से देख सकते है आज भी।
इसके साथ ही खिलजी के साथ आया अमीर खुसरो ने अपने ग्रंथ तारीख ए अलाइ में इस युद्ध का वर्णन करता हुवा लिखता है कि सोमवार तारीख 8 जमादी उस्सानी हिजरी संवत 702 तारीख 28 जनवरी 1303 को सुल्तान अलाउद्दीन चित्तौड़ लेने के लिए दिल्ली से रवाना हुआ ग्रंथकर्ता भी इस लड़ाई में साथ था सोमवार तारीख 11 मुहर्रम हिजरी संवत 703 तारीख 26 अगस्त ईसवी सन 1303 कोकिला फतेह हुआ राय भाग गया परंतु पीछे से स्वयं शरण में आया और तलवार की बिजली से बच गया हिंदू कहते हैं की जहां पीतल का बर्तन होता है वही बिजली गिरती है और राय का चेहरा डर के मारे पीतल सा पीला पड़ गया था 30,000 हिंदू को कत्ल करने की आज्ञा देने के पश्चात उसने चित्तौड़ का राज्य अपने पुत्र खिज्र खां को दिया और उसका नाम खिजराबाद रखा सुल्तान ने उसको लाल छत्र जरदोजी खिलअत और दो झंडे एक हरा और दूसरा काला दिए और उस पर लाल तथा पन्ने नश्वर किए फिर वह दिल्ली को लौटा अल्लाह का धन्यवाद कि सुल्ताने हिंद के जो हिन्दू राजा इस्लाम को नहीं मानते थे उन सबको अपनी काफिरों को कत्ल करने वाली तलवार से मार डालने का हुक्म दिया यदि कोई अन्य मतावलम्बी अपने लिए जीने का दावा करता तो भी सच्चे सुन्नी अल्लाह के इस खलीफा के नाम की शपथ खाकर यही कहते कि विधर्मी को जिंदा रहने का हक नहीं है”।
आप पाठकगण इस अमीर खुसरो के बिना लाग-लपेट के बताए हुए विवरण से अलाउद्दीन खिलजी की वास्तविक इच्छा और उसके कार्यों को समझ सकते हैं लेकिन इस प्रकार के सभी लोगों पर सेकुलरिज्म का छाप लगा देने वाले महा धूर्त इतिहासकार जो कम्युनिस्ट पार्टी से सीधा जुड़े थे उन्होंने खुसरो के कथन को उपेक्षा कर खिलजी को दूसरा अकबर बताया है तथा उसे मुल्ला मौलवियों के खिलाफ काम करने वाला बताया इस प्रकार की झूठ आपको दिल्ली विश्वविद्यालय के द्वारा प्रकाशित मध्यकालीन भारत के भाग प्रथम में सम्पादन हरीश वर्मा पाठ लेखिका मीनाक्षी सहाय द्वारा लिखे गए खिलजी वंश में मिल जाएगी यह धूर्तता कब तक चलेगी ईश्वर ही जाने? इसी तरह से इरफान हबीब द्वारा ओझा को कोट करके यह कहना कि ओझा ने पद्मनी को काल्पनिक माना दूसरा बौद्धिक आतंकवाद है इस प्रकार के हथकंडों में ये लोग माहिर है लेकिन सोशियल मीडिया के जमाने मे अब इनकी दुकानदारी ज्यादा नही बची है।
बरहाल एक ओर फ़ारसी तवारीख़ में इस युद्ध का जिक्र आया है उसका नाम है जिया बर्नी उसकी तारीख ए फ़िरोजशाही में लिखा है “सुल्तान अल्लाउदीन ने चित्तोड़ को घेरा और थोड़े ही अर्से में उसे अधीन कर दिया।घेरे के सम्पन्न होने तक चातुर्मास में सुलतान की फौज को बहुत हानि उठानी पड़ी।“
तारीख ए फरिश्ता का जिक्र किया जा चुका है जायसी का काव्य पद्मावत है ही।लेकिन इससे भी पहले सन 1460 यानी कि पदमिनी के जौहर के करीब 157 साल बाद के कुंभलगढ़ शिलालेख में अल्लाउद्दीन से हुवे युद्ध मे राणा शाखा के हमीर के दादा और पिता चाचाओं का मारा जाना लिखा है जो प्रमाणिक है तो एकलिंग महात्म्य के श्लोक 75 76 77 80 से स्पष्ट है महारावल रत्न सिंह का होना और उनकी पटरानी का जौहर होना।
पद्मावत काव्य के पहले करीब 14 वर्ष पूर्व डॉक्टर दशरथ शर्मा के अनुसार गीता चरित में भी पद्मिनी का जिक्र है जो उन्होंने राजस्थान हिस्ट्री कोंग्रेस में अपने अध्यक्षीय भाषण में भी कहा था।इस तरीके से हम लोग विचारकरे तो बहुत से इतिहासकार पद्मिनी के जौहर का प्रमाण खोज कर लाते है समकालिन शिलालेखों ओर तवरीखो से रत्नसिंग के वीरगति को प्राप्त करने का वर्णन है ही।अतः किसी भी व्यक्ति को इतिहास के आईने में से ही फ़िल्म बनानी चाहिए अगर इस प्रकार खिलजी का पद्मावत से प्रेम दिखाने की कोशिशें समाज मे विष ही घोलेगी क्योकि महारानी पदमिनी न केवल ऐतिहासिक पात्र  है बल्कि राजस्थान  देवी की तरह पूजनीय है।
जो इतिहासकार और लेख आदि इस घटनाक्रम को मानते है उसके नाम
1 अमीर खुसरो
2 फरिश्ता
3 अबुल फजल
4 कुम्भलगढ़ लेख
5 एकलिंग महात्म्य
6 जिया बर्नी
7 कर्नल टॉड
8 मुहणोत नेणसी
9 कवि श्यामल दास
10 जगदीश सिंह गहलोत
11 डॉक्टर गोपीनाथ शर्मा
12 गौरीशंकर ओझा
13 डॉक्टर दशरथ शर्मा
14 डॉक्टर सोमानी
15 बी एम दिवाकर
16 डॉक्टर के एस लाल
17 हाजी उदविर
18 बरनी
19 ईलियट
सभी इतिहासकार अल्लाउद्दीन के आक्रमण रत्नसिंग के वीर गति और सहमत है कुछ को छोड़ बाकी सभी पद्मिनी के जौहरपर भी सहमत है और कुछ पद्मावत को भी सत्य कहते है।0आखिर में जायसी की खूबसूरत पंक्तियो गाते हुवे

मैं एहि अरथ पंडितन्ह बूझा । कहा कि हम्ह किछु और न सूझा ॥
चौदह भुवन जो तर उपराहीं । ते सब मानुष के घट माहीं ॥
तन चितउर, मन राजा कीन्हा । हिय सिंघल, बुधि पदमिनि चीन्हा ॥
गुरू सुआ जेइ पंथ देखावा । बिनु गुरु जगत को निरगुन पावा ?॥
नागमती यह दुनिया-धंधा । बाँचा सोइ न एहि चित बंधा ॥
राघव दूत सोई सैतानू । माया अलाउदीं सुलतानू ॥
प्रेम-कथा एहि भाँति बिचारहु । बूझि लेहु जौ बूझै पारहु ॥

तुरकी, अरबी, हिंदुई, भाषा जती आहिं ।
जेहि महँ मारग प्रेम कर सबै सराहैं ताहि ॥1॥

मुहमद कबि यह जोरि सुनावा । सुना सो पीर प्रेम कर पावा ॥
जोरी लाइ रकत कै लेई । गाढि प्रीति नयनन्ह जल भेई ॥
औ मैं जानि गीत अस कीन्हा । मकु यह रहै जगत महँ चीन्हा ॥
कहाँ सो रतनसेन अब राजा ?। कहाँ सुआ अस बुधि उपराजा ?॥
कहाँ अलाउदीन सुलतानू ?। कहँ राघव जेइ कीन्ह बखानू ?॥
कहँ सुरूप पदमावति रानी?। कोइ न रहा, जग रही कहानी ॥
धनि सोई जस कीरति जासू । फूल मरै, पै मरै न बासू ॥

केइ न जगत बेंचा, कइ न लीन्ह जस मोल ?
जो यह पढै कहानी हम्ह सँवरै दुइ बोल ॥2॥

मुहमद बिरिध बैस जो भई । जोबन हुत, सो अवस्था गई ॥
बल जो गएउ कै खीन सरीरू । दीस्टि गई नैनहिं देइ नीरू ॥
दसन गए कै पचा कपोला । बैन गए अनरुच देइ बोला ॥
बुधि जो गई देई हिय बोराई । गरब गएउ तरहुँत सिर नाई ॥
सरवन गए ऊँच जो सुना । स्याही गई, सीस भा धुना ॥
भवँर गए केसहि देइ भूवा । जोबन गएउ जीति लेइ जूवा ॥
जौ लहि जीवन जोबन-साथा । पुनि सो मीचु पराए हाथा ॥

बिरिध जो सीस डोलावै, सीस धुनै तेहि रीस ।
बूढी आऊ होहु तुम्ह, केइ यह दीन्ह असीस ? ॥3॥

Thursday, June 1, 2017

अथातो ब्रह्म जिज्ञासा ............................

मानव मात्र को उसकी जीवन्तता का दर्शन कराने आज से हजारो सालो पूर्व हमारे देश में वैज्ञानिक सम्मत एवं श्रेष्ट मानवीय मूल्यों से जीवंत सैकड़ो खोजें हुई थी मानवता उन खोजो से आज भी न केवल प्रभावित है बल्कि उस को आगे बढा रही है हिन्दू ने उन सब मौलिक एवं मुलभुत दर्शन को पेटेंट करवाने का न केवल विचार ही नही ही किया बल्कि उसे बहुत ही अनुचित एवं मानवता विरोधी माना था इस कारण आज अनेक लोग शिकायत करते दीखते है कि हम लोगों ने क्यों नही कुछ खोजा या अगर खोजा तो उसका पेटंट क्यों नही करवाया.वैसा न हमारा कोई उद्देश्य था न ही उसमे कोई सार | हमारा इस लेख को लिखने का उद्देश्य केवल महान परम्परा का हल्का सा झलक दिखाना है जिसकी हल्की सी हवा से आइन्स्टीन से लेके स्टीव जॉब्स तक के लोग पगला गये थे ये वो दर्शन है जो मनुष्य को उत्तरोतर प्रगति की और ले जाता है स्वामी विवेकानंद इस पर कहते है कि एक बार ध्यान और एकाग्रता सिद्ध हो जाने पर उसको किसी भी विषय पर केन्द्रित किया जा सकता है वैदिक ऋषि बुला रहा है सबको अपनी ओर बुला रहा है उसके दोनों हाथ ऊपर उठे है वो बड़े आत्म विश्वास से कह रहा है कि उसने उस सत्य कोजान लिया जिसको जानने के बाद कुछ भी जानना बाकी नही रहता है | मानव का जन्म होता है और उसकी मृत्यु हो जाती है ये दो अकाट्य सत्य दुनिया का हर मानव निरंतर देखता है उसके मन मस्तिष्क में इसका रहस्य जानने की इच्छा शताब्दियों से ही नही बल्कि उसके भी परे के कालखंड में रही है क्यों मैं पैदा हुवा ??वो क्या मूलभुत गुण है जिसके चलते मैं न केवल नाच रहा हूँ बल्कि सारा जगत ही नाच रहा है ??ये नटन का कारण क्या है??क्यों इस जगत में इतनी पीड़ा दुःख है ??मैं सुनता हूँ मैं देखता हूँ में चलता हूँ मैं व्यवहार करता हूँ उसका कारण क्या है ??परस्पर मानवों के आपसी व्यवहार में कौन तत्व कब प्रधान है ???ये सब धोखा झूठ और हिंसा क्यों है??प्रश्न इतने है कि उसका अंत ही नजर नही आता है और उसका उत्तर देने का प्रयास समस्या को ओर जटिल बना देता है सारा हमारा अभी तक का आधुनिक और प्राचीन ज्ञान विज्ञान उन सब प्रश्नों के उत्तर देने का तरीका खोजना ही है और जैसे जैसे हम प्रकृति के इन आधारभूत प्रश्नों के उत्तर देते जाते है प्रकृति नये नये प्रश्न भेज देती है आधुनिक पश्चिमी बुद्धिजीवी इसका उत्तर भौतिकवाद से देते है वैदिक ऋषि उसको माता मान विन्रमता से इस रहस्य को खोलने का आग्रह करता है ये ही कारण है कि प्राचीन हिन्दू ऋषि चाहे राजनीती शास्त्र लिखेगा चाहे नीति शास्त्र चाहे न्याय चाहे वास्तु चाहे ज्योतिष चाहे खनिज चाहे विमान शास्त्र लिखेगा चाहे कामसूत्र लिखेगा चाहे जीवन को मुक्ति देने वाले शास्त्र हर एक मैं पहले श्लोक पहले पद छंद में उस परमामा को उस प्रकृति को उस महत उस पुरुष उस माँ की प्राथना है उसने निवेदन है अपना रहस्य खोल देने का ये ही हमारे दर्शन का आधार है कि जिसको जानना है उससे शरणागति को स्वीकार करना है जानना केवल ईश्वर को है ये सारा जगत उस ईश्वर का ही तो स्मित हास्य है न ??? सब बातो की एक बात कि "मैं कौन हूँ ?" इस मैं को जानने में ही सार हिन्दू चिंतन लगा है और न केवल आज से बल्कि जब से मानव ने जन्म लिया तब से |हमारी परम्परा इसमें अपना महत्व पूर्ण योगदान देती है ये एक इसी यात्रा है जो प्रत्येक मानव को अकेले शुरू करनी है अकेले ही समाप्त करनी है उस यात्रा के मार्ग में पाथेय के रूप में हमको भगवान ने वेद दिया है उसके ज्ञान को ह्र्द्यगम करके उस परम सत्य को जन सकते है लेकिन अगर वैदिक शास्त्र की बात करे तो इतना विशाल है कि एक जन्म भी कम पड जाता है तो अल्प समायावधि में हमारा चिन्तन क्या बात है ?इस लिए पूज्य गुरुओ ने उसमे से निकाल कर प्रस्थान त्रय का उपदेश दिया वो है 1 उपनिषद जो वेद का भाग है २ श्रीमद भगवत गीता ३ ब्रह्मसूत्र | आज थोड़ा सा हम उस शास्त्र के बारे बतायेंगे जो कम ज्ञात है उसका नाम है ब्रह्म सूत्र |सूत्र रूप में व्याखित् ये शास्त्र वेदान्त परम्परा में अत्यंत सम्मानीय स्थान रखता है इसका इतना मान है की इसपर शंकर रामानुज वल्लभ समेत करीब ४० वेदांत आचार्यो ने भाष्य लिखा है | इसका पहला सूत्र है "अथातो ब्रह्म जिज्ञासा |" वेदान्त परम्परा में अधिकारी पुरुष की बात बार बार आती है उस पुरुष के लक्ष्ण क्या है ?किन गुणों के होने से व्यक्ति अधिकारिहोता है जिसके तदुपरांत ब्रह्म जिज्ञासा की जाती है ?क्या पुरुष शब्द का तात्पर्य केवल male ब्राह्मण से है ?बहुत से प्रश्न है जो हमारे मन नही तो हमारे दर्शन की आलोचना वालो के मन में उठते है उसमे जो पहली बात समझने की है पुरुष शब्दका शाब्दिक अर्थ ही ये है कि शरीर रूपी में पुर में रहनेवाला | अव विचार करने का है कि इस शरीर रूपी पुर में अंगुष्ठ स्थान पर कौन रहता है ? ईश्वरसर्व भूतानाम हृदये तिष्टति अर्जुन:| ये इश्वर की आज्ञा है कि सर्व भूतो में ईश्वर रहता है | वैदिक आज्ञा है ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत् । अत: पुरुष शब्द का अर्थ यहाँ स्थूल रूप से मानव से न की किसी एक वर्ण या जाती से | अब ये प्रश्न उठता है कि वेदान्त परम्परा में अधिकारी अनाधिकारी का विधान क्यों किया गया ?क्यों नहीं सबको वेदांत श्रवण करने को कहा गया ? हम इसे आधुनिक रूप से विचार करे एक बार|मान लिजिय कोई अक्षु चिकित्सक होना चाहता है उसे क्या क्या करना पड़ेगा? अक्षर ज्ञान से लेके उसे निर्धारित सभी योग्यता को पूर्ण करना होगा उसके बाद परीक्षा देके चिकित्सक बनने के बाद अक्षु चिकित्सा में विशेष अध्ययन करना होगा उसके बाद ही वो एक ये बन सकता है इसी तरह एक अभियंता वकील सीए आदि आदि सभी आधुनिक योग्यता अर्जित करनी पडती है फिर ये तो मुक्ति का मग है ब्रह्म विद्या है उसके लिए तो विशेष आयोजन करना होगा |