Sunday, December 31, 2017

विज्ञान का रोना काम मूर्खो वाला

मेने विज्ञान विज्ञान का रोना रोते उन लोगो को देखा है जो विज्ञान गणित में ग्रेस से पास होते थे।जिनके बस की विज्ञान थी नही जो आर्ट्स में घुसे फिर येन केन डिग्री करके विशेष सोच के लोगो से जुड़ कर प्रगतिवादी बन गए अब वो लोग विज्ञान विज्ञान चिल्लाते घूमते है ऐसे गधों को जातीय द्वेष के चलते अनुयायी भी मिल जाते है।कोई उनसे पूछे कि तुम अगर विज्ञानवादी हो तो पोलिटिकल या राजनीति से कैसे प्रोफेसर हो?रसायन या भौतिकी या चिकित्सा या अभियंत्रिकी या जैविकी से क्यो नही?ध्यान देना मित्रो विज्ञान चिल्लाने वाला पूरी जिंदगी अवैज्ञानिक काम करता है।चवँनो को तरह रात को दारू पीके गाड़ियों को भिड़ा देने वाले और ऐसे तथाकथित त्योहार को मनाने को वकालत करने वाले वो ही लोग है जो सबसे ज्यादा विज्ञान का रोना रोते है।हिन्दू विक्रम संवत पूर्णत विज्ञान पर आधारित है इसमें एक साथ खगोल विज्ञान और मौसम विज्ञान तो जुड़ा ही है साथ मे मानव मनोविज्ञान भी जुड़ा है तो मानव शरीर विज्ञान भी।हिन्दू त्योहार कोई यो ही नही आता है।तुम्हारी समझने की अक्ल कम है जो इसको समझ नही पाते या यों कहें समझना नही चाहते।

राजनीतिक अक्षमता बढ़ता लवजिहाद

मैं तो इस बार मेरे जन प्रतिनिधि से साफ साफ पूछूंगा कि हिंदुत्व पर आपत्ति आई तब आप कहाँ थे?लवजिहाद हो रहा है तब आप क्या कर रहे है?आपकी सत्ता है चलाओ सत्ता  कादण्डा।तुम खुद के व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए क्या क्या नही करते हो तो सत्ता का उपयोग क्यो नही किया हिन्दुओ को बचाने?नही किया नही कर सकते तो तुम हमारे किसी काम के नहीं।तुमसे हमको कोई मोह भी नही।केवल हिन्दुओ का हित ही तुमको वोट देने का कारण है हिन्दू हित नही तो कोई वोट नहीं।
जो हिन्दू हित की बात करेगा
वही राज्य पर राज करेगा

जाती तू क्यो नही जाती

सौरभ पटेल के बारे में पढ़ रहा था पांचवी बार जीता है लेकिन मार्जिन उसका कम रहा क्योंकि उसके विधानसभा क्षेत्र में जातिवाद का जहर इतना घुल चुका था कि उसको हरवाने वहां भेजा है लोग कहने लगे।अमेरिका से mba किया है अहमदाबाद में नई बिल्डिंग जो न केवल पर्यावरण बल्कि एनर्जी सेविंग होती उस कल्चर को लेके आया था।एनर्जी फील्ड का किंग है।धीरूभाई अंबानी के भतीजी का पति है।पटेल है।न केवल उच्च शिक्षित है बल्कि अपनी जिस विधानसभा से जीता है अभी उसमे ही तीन बार पहले जीत चुका है।
अब मेने नीतिन पटेल का पढ़ा मंझा हुवा घाघ राजनीतिज्ञ।वर्षो से पार्टी की विभिन्न पोस्ट पर रहता आया उपमुख्यमंत्री।लेकिन उसको चाहिए वित्त विभाग ही वित्त विभाग।लेकिन उसकी शिक्षा ?बीएससी फैल?
जातिवादी तत्व किसके साथ है यहां?
इस लिए मैं जब कहता हूं कि जाति अपने आप मे बीमारी है ये हिन्दू समाज को खा गई है एक उच्च शिक्षित वित्त का अनुभव वाला आदमी।अपने विधान सभा मे काम से लोकप्रिय भी।उसको छोड़ के जाती किसके पीछे जा रही है ?जो बस ये जात वो जात करने वाले के।
शिक्षक को हरवाने वाले समाज में गुंडे ही निकलते है शिक्षक नही।दोनो पटेल ही है दोनो भले या बुरे होंगे मुझे पता नही पर मैने उनके प्रोफ़ाइल को तोल के देखा तो लगा जो लिख दिया।

चंद लाइने

1)शायर हम सड़को के
लोग पूछते है कौन तुम
काला डामर,तपती धूप
मंजिल वो ही रास्ता वो ही
चलने से पहले
मंजिल तय की थी
बस रास्ता तय करना
यू भूल गए

2)स्वागत आपका हमेशा
शायर हम बिगड़ैल से
पूछ लेना एक बार
मयखानों से भी ज्यादा
चढ़ेगा ऐसा फिर उतरेगा नही
नशा हम कभी सस्ता नही करते
फिर न कहना
आगाह नही किया था

Friday, December 29, 2017

#krishi किसान के दो शत्रु जातीय सोच और दास मानसिकता।

जातिवाद में फंसे किसान वास्तविक समस्या को नही समझ पा रहे है वो सोच रहे है कि सब चीज फ्री में मिल जाएगी तो देश का भला हो जाएगा।जबकि सच ये है कि फ्री में सब डूब जाएगा ऐसी हल्की राजनीति करने वाले नेताओं के साथ लोग फ्री और जातिवाद के कारण लोग खड़े हो जाते है पर मिलना कुछ नही है।
शासन व्यवस्था प्रत्येक वर्ग का हित करे किसान से ले प्रधानंत्री तक सबका कल्याण हो इसलिए ही भारतीय किसान संघ काम करता है।किसान को भारतीय हिन्दू वांग्मय में बहुत महत्व दिया है विश्व के प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद में कृषि का गौरवपूर्ण उल्लेख मिलता है ।अक्षैर्मा दीव्यः कृषिमित्‌ कृषस्व वित्ते रमस्व बहुमन्यमानः । ऋग्वेद-३४-१३।अर्थात जुआ मत खेलो, कृषि करो और सम्मान के साथ धन पाओ।
कृषि करो और सम्मान के साथ धन पाओ मतलब कि उपज का पूरा दाम मिलें।प्राचीन हिन्दुओ ने उस पध्दति को खोज निकाला था जिसमे पूरा का पूरा जीवन ही कृषि के आधार पर चलता था और उस कृषक का सम्मान इतना ज्यादा था कि वो हिन्दू व्यवस्था का मेरुदण्ड था लेकिन मुगलो और अंग्रेजो की लूट ने उसको बहुत हद तक प्रभावित किया बाद कि सरकारो के अन्धनधुकर्ण से गलत नीतियों से कृषि आज घाटे का सौदा बन गया है साफ है कि सरकारों की नीतियां गलत है वो दुनिया का उन्नतम किसान देने वाली प्राचीन कृषि पध्दति कीजगह विदेशी सोच के आधार पर चलने वाली आसुरी कृषि पद्धति को अपनाया।नतीजा अन्नदाता दिनों दिन दरिद्रनारायण होता जा रहा है।भारतीय किसान संघ की सर्वसमावेशी सोच मुझे अच्छी लगती है।इसमें न केवल भारत के किसान का बल्कि सम्पूर्ण भारत का ही नही मानवता का कल्याण है।

#JaiBhim भीम नाम हमारे महादेव का,भीम नाम हमारे अपने संविधान निर्माता युग पुरुष बाबा साहब अंबडेकर का।तो बोलो जय भीम।

जय भीम।भीम नाम महादेव का है वहां से ही सबको मिला है महाभारत के बलशाली भीम को तो भीमा नदी को तो आधुनिक युग के महान समाज सुधारक और संविधानज्ञ भीमराव को और अब भीम नामक क्रांतिकारी एप्लीकेशन को।
मेरे लिए मेरे आराध्य का नाम लेना ही बहुत रोमांचक अनुभव करा देता है अब तो भारत सरकार भी ले रही है।
प्रिय बन्धुवर!!भीम हमारा ही नाम है हमारे ही आराध्य का नाम है और जब तक सृष्टि चलेगी ये नाम चलेगा इस लिए जय भीम का नारा लगाने वाला हमारा ही भाई।मैं बहुत सालों तक ये ही मानता रहा हूँ कि जय भीम लिखने वाले महाभारत के भीम के उपासक होन्गे।उस समय ज्यादा पता नही था।भीम को किसी भी मीम आदि के साथ जोड़ने की गलती न करें क्योकि आज तक के इतिहास में भी ये उदाहरण नही एक भी नही।सही समझे एक भी नही।जय भीम।
भवः शर्वो रुद्रः पशुपतिरथोग्रः सहमहान्
तथा भीमेशानाविति यदभिधानाष्टकमिदम्
अमुष्मिन् प्रत्येकं प्रविचरति देव श्रुतिरपि
प्रियायास्मैधाम्ने प्रणिहित-नमस्योऽस्मि भवते
हे शिव, वेद एवं देवगन आपकी इन आठ नामों से वंदना करते हैं - भव, सर्व, रूद्र, पशुपति, उग्र, महादेव, भीम, एवं इशान। हे शम्भू मैं भी आपकी इन नामों से स्तुति करता हूं।

Thursday, December 28, 2017

ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या

ब्रह्मसूत्र वेदान्त परम्परा का एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है जिस पर अनेक महात्माओ ने भाष्य टीका आदी लिखा है सबसे महत्वपूर्ण भाष्य इसमें शारीरिक भाष्य है जो भगवान शंकराचार्य जी ने लिखा है अथातो ब्रह्म जिज्ञासा से ये ब्रह्मसूत्र शुरू होता है।सूत्र रूप में लिखित ये वेदांत का मर्म है ब्रह्म ज्ञान है और अतीव दुरूह और कठिन है आधुनिक युग में अनेक महात्माओ ने भी इस पर टीका लिखी है और अनेक महात्माओ के प्रवचन है।सरल भाषा में इस ब्रह्म विद्या पर वृन्दावन के स्वामी अखण्डानन्द जी ने इसके चतु सूत्री पर तिन खण्डों में प्रवचन दिया था जिज्ञासु साधको के लिए बहुत उपयोगी है।
वेदांत परम्परा में व्यक्ति जब यात्रा आरम्भ करता है तो उसका जीवन का दृष्टिकोण बदल जाता है उसके जीवन को देखने का नजरिया बदल जाता है।
इस संसार में किसी भी वस्तु में सार नही है सब के सब सार है समस्या ये है कि हम लोग प्रतिक्षा करते है जीवन में कोई दुःख या कष्ट के आने की या फ़ीर इसे सन्यासियो के लिए छोड़ देते है या फिर वृद्धावस्था के लिए।
ये विद्या तो गृहस्थ धर्म में यौवन में ही सिखने की है ताकि जीवन संग्राम के हर क्षण में इसकी अनुभूति हो।
हर क्षण हर पल हर व्यक्ति हर घटना दुर्घटना सुख दुःख सब का सब उस ब्रह्म का ही स्मित हास्य है। और उसके इस हास्य को भी हास्य के साथ ही देखना चाहिए।
ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या।

Thursday, December 7, 2017

काम आपूर्ति में बाधा मतलब अनियंत्रित हिंसा।

शास्त्रों में बहुत वैज्ञानिक तरीके से बताया है मनुष्य प्रत्येक कार्य काम के वशीभूत करता है काम का एक अर्थ इच्छा होता है एक अर्थ होता है वासना।काम माने प्राप्त करना।लौकिक या परलौकिक।कंचन कामिनी कीर्ति प्राप्त करना।सृजन करना।निर्माण करना।आश्चर्य ये कि ध्वंस करना भी काम से ही होता है।
जिसकी कोई इच्छा नही इस लोक परलोक में उसे कुछ भी प्राप्त करना नही वो सापेक्ष नही रहता है।निरपेक्ष रहकर कर्तव्य कर्म करता है।काम को नियंत्रित किया जाता है परिवार जनों और गुरु जनो के मार्गदर्शन में,शास्त्र के अध्य्यन और अनुपालन में कानून के जोर से।मनुष्य अनुशासन में बांध कर काम को नियंत्रित करता है भारत का संविधान प्रत्येक व्यक्ति की इच्छा को धर्म सम्मत बनाता है कि इच्छा पूर्ति के मार्ग भी युगानुकूल नीति सम्मत हो।अनीति से काम की पूर्ति नही हो सकती।
                      भोग न भोक्ता वयमेव भोक्ता शास्त्र वचन है।अब काम मे मनुष्य को अतृप्त इच्छाओ में कृत्रिम पदार्थ उत्प्रेरक का काम करते है मदिरा, अफीम,ड्रग्स,चाय,कॉपी आदि आदि कैसा भी नशा।इनसे दूर रहने की शास्त्र की आज्ञा है स्पष्ट।
देखिये मानव मात्र को ज्ञान देने वाले वेद क्या कहते है इस को श्री डॉक्टर विवेक जी आर्य के अनुवाद से लिया है -
१. वेद में मनुष्य को सात मर्यादायों का पालन करना निर्देश दिया गया हैं- सन्दर्भ ऋग्वेद 10/5/6  इन सात मर्यादाओं में से कोई एक का भी सेवन नहीं करता हैं तो वह पापी हो जाता हैं।

२. शराबी लोग मस्त होकर आपस में नग्न होकर झगड़ा करते और अण्ड बण्ड बकते हैं। - ऋग्वेद 8/2/12

३. सुरा और जुए से व्यक्ति अधर्म में प्रवृत होता हैं- ऋग्वेद 7/86/6 

४. मांस, शराब और जुआ ये तीनों निंदनीय और वर्जित हैं। - अथर्ववेद 6/70/1

अब आप विचार करिये इस प्रकार के काम को बढ़ाने वाले पदार्थों के निरन्तर सेवन से क्या होगा?
अब क्या लौकिक पदार्थ ही नशे को बढ़ाते है?जवाब है नहीं।
जाती और मजहब दो ऐसे तत्व है जो भी मादकता को बढ़ाने का काम करते है जो मादकता मात्र खुद के इच्छा को तुष्ट करने वाली होती है।
शास्त्र कहता है जिसमे इच्छा है काम है उसमें लौकिक अंह भी होता है।वैसे प्रत्येक का अपना अपना अंह अपना मैं पना है जो समष्टि के "मैं" से एकाकार है लेकिन वो अंह इस लौकिक अंह से अलग है जिसकी चर्चा बाद में कभी करेंगे।तो काम जो है वो इस अंह के समानुपाती है जो जो काम की पूर्ति होती है व्यक्ति का अंह तुष्ट होता जाता है जैसे ऊपर बताया कि काम की कभी पूर्ति होनी नही और ये लौकिकअंह कभी तुष्ट होना नही।सारा संसार निगल लो फिर नही प्यासे ही रहोगे।
अतः मनुष्य को इस आधारभूत गुणों को समझना चाहिए तद अनुसार आचरण करना चाहिए।जब तक हम उन मूलभूत गुणों पर चलेंगे तब तक ही वे प्रकृति प्रदत्त गुण हमारा रक्षण करेंगे।अंह पर चोट पड़ने से ही क्रोध उत्पन्न होता है और क्रोध में बुद्धि भृमित हो जाती है जिसे भगवान ने गीता में कहा है
क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः।

स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।।2.63।।
2.63।।क्रोधसे संमोह अर्थात् कर्तव्यअकर्तव्यविषयक अविवेक उत्पन्न होता है क्योंकि क्रोधी मनुष्य मोहित होकर गुरुको ( बड़ेको ) भी गोली दे दिया करता है। 
मोहसे स्मृतिका विभ्रम होता है अर्थात् शास्त्र और आचार्यद्वारा सुने हुए उपदेशके संस्कारोंसे जो स्मृति उत्पन्न होती है उसके प्रकट होनेका निमित्त प्राप्त होनेपर वह प्रकट नहीं होती।
इस प्रकार स्मृतिविभ्रम होनेसे बुद्धिका नाश हो जाता है। अन्तःकरणमें कार्यअकार्यविषयक विवेचनकी योग्यताका न रहना बुद्धिका नाश कहा जाता है। 
बुद्धिका नाश होनेसे ( यह मनुष्य ) नष्ट हो जाता है क्योंकि वह तबतक ही मनुष्य है जबतक उसका अन्तःकरण कार्यअकार्यके विवेचनमें समर्थ है ऐसी योग्यता न रहनेपर मनुष्य नष्टप्राय ( मनुष्यतासे हीन ) हो जाता है।
अतः उस अन्तःकरणकी ( विवेकशक्तिरूप ) बुद्धिका नाश होनेसे पुरुषका नाश हो जाता है। इस कथनका यह अभिप्राय है कि वह पुरुषार्थके अयोग्य हो जाता है।

स्पष्ट है कि क्रोध मोह अंह हिंसा प्रतिहिंसा बर्बरता राग द्वेष लोभ  आदि सब मानवीय दुर्गुण है और मानव में है तो प्रत्येक मानव के रिलीजन मजहब नस्लो में है और मानव उस नाते ही कर्म करता है।
समस्या ये है कि बहुत से मानव समुदायों ने वैश्विक मानवीय गुणों अवगुणों को अपना हथियार बना रखा है इस हथियारों के साधन से वो लोग अपना अपना मजहब बढ़ाते है मजहबी आसुरी वृत्ति मनुष्य को एक तरह बन कर सभी कुछ हड़पने की भले ही वो अधर्म संगत हो भले ही वो संविधान विरुद्ध हो भलेही वो मानवता विरुद्ध हो वो लोग इस प्रकार की कुचेष्टाओं को करते रहते है जिससे मानव समुदाय में एक साम्य बिगड़ जाता है और उस साम्य के बिगड़ जाने से कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ जाती है।
               अब संविधान के तहत कार्य करने वाले लोगों को चाहिए कि वो लोग इस गम्भीर तत्व को समझें और उस हिसाब से आचरण करें।
भारत ही नही विश्व मे जिहाद आज एक ऐसा शब्द बन गया है जो हिंसा प्रतिहिंसा की आसुरी वृत्ति को बढ़ा रहा है जिसके पीछे का अगर हम विचार करे तो लौकिक या अलौकिक भोगों को भोगने की आसुरी इच्छा दिखाई देती है जो काम का ही एक विकृत रूप है इस जिहाद ने उस साम्य को पिछले बहुत सालो से बिगाड़ रखा है  आजकल तो एक निकृष्ट रूप चल पड़ा है जिसमें पहले हिन्दू या सिख या पारसी या जैन या क्रिश्चन लड़की को मोह के आवरण में भरमाया जाता है इसका पूरा का पूरा एक तंत्र है जो इसमे काम करता है.
अत हिन्दू धर्म के इन बुनियादी सिद्धान्तों को समझ कर ही इस लव जिहाद के खिलाफ काम करना चाहिए।अविवेवकी जन इस में सहायक हो जायँगे विवेकी व्यक्ति ही प्रतीक्षा करेगा।