Saturday, November 28, 2020

शास्त्र अनुसार शक्ति की साधना करना ही लव जिहाद का उपाय

सनातन धर्म में धर्म अर्थ काम मोक्ष का समन्वय है और प्रवृत्ति और निवृत्ति मार्ग स्पष्ट है।बिना प्रवृत्ति के निवृत्ति कठिन है।
काम के बहुत ताकतवर तत्व है इसकी महत्वता कितनी है ये इससे ही समझ लें कोई भी कार्य बिना काम की प्रेरणा से नही हो सकता।
एक विदेशी दार्शनिक ने तो काम को ही जगत का कारण बताया यद्यपि उसके लिये काम का अर्थ केवल नर-नारी मैथुन तक था पर काम केवल इतना ही नही है ये प्रत्येक इच्छा का नाम है।
अपनी प्रत्येक इच्छा की पुर्त्ती करना सनातन धर्म हैं।
आपको धन सम्पदा स्त्री भोग विलास स्वर्ण मुद्रा वाहन पशु आदी सब चाहिए और ये प्राप्त करना अधर्म नही बताया है शास्त्र में।उसकौ प्राप्त करने के लिये बहुत परिश्रम करना बताया।
वेदिक ऋचाओ में  ईश्वर से अपने शत्रुओ को नाश करने का,खूब धन सम्पदा प्राप्त करने का,पशु आदी प्राप्त करने की प्राथना है अनुष्ठान है सनातन धर्म इसको कभी त्याज्य नही मानता है काम शास्त्र के रचीयता वात्सयायन हुवे है जिन्को अनेक लोग या तो बृहस्पति कहते है या चाणक्य।
दोनो ही धर्म और अर्थ के आचार्य है।आज हिन्दू जाती जिस दुर्भाग्य का शिकार हुई है वो बौद्धो और इस्लाम के बाद इसाईयो को लादी गई फर्जी नैतिकता है जिसमे नैतिक जैसा कुछ नही है केवल मिथ्याचार है कुण्ठा है।
जबकी पूर्वज तो इसके ठीक उलट थे।
वो काम को भी सहज ही लेते है कोई टेबू की तरह नहीं।
होली आदी के प्रसंग पर जिसे हम अश्लील कहते है वैसे गायन का भी विधान बताया।वास्तव मे अश्लील कुछ है ही नही।बस स्थान और प्रसंग है।विज्ञान की क्लास में खी खी करते हंसते बच्चे आज भी मेरे को स्मरण है जबकी पढ़ाने वाले अध्यापक बहुत ही सहज थे विज्ञान द्वितीय प्रथम अध्याय ही था जनन।और नर मादा दोनो के पुरे शारिरीक विन्यास का ज्ञान था सचित्र।
काम एक अग्नि है जो सृजन करती है जो सृष्टि को रचने मे प्रजापति की सहायक है।उस ब्रह्म के मन में संकल्प उठा कि मै एक हुँ अनेक हो जाउ।एको बहुस्याम।
वो संकल्प मात्र से अनेक हो गया।
उसका यह संकल्प ही काम है।जिसे हमारे पूर्वजो ने नमस्कार किया है भगवान ने तो स्वयं कहां है
शास्त्र विधि के अनुसार ही काम की पुर्त्ति करना और जो इसकी अवेह्ल्ना करता वो दुख भोगता है ।बहुत लोग ये मानते है कि वेद मनुष्य की उत्पत्ति परमात्मा के शरीर के अंगो से बताता है उनका ये मानना उनके अज्ञान को दर्शाता है ऋग्वेद में तो बहुत ही स्पष्ट आज्ञा है।
विष्णु॒र्योनिं॑ कल्पयतु॒ त्वष्टा॑ रू॒पाणि॑ पिंशतु । आ सि॑ञ्चतु प्र॒जाप॑तिर्धा॒ता गर्भं॑ दधातु ते ॥१॥
गर्भं॑ धेहि सिनीवालि॒ गर्भं॑ धेहि सरस्वति । गर्भं॑ ते अ॒श्विनौ॑ दे॒वावा ध॑त्तां॒ पुष्क॑रस्रजा ॥२॥
हि॒र॒ण्ययी॑ अ॒रणी॒ यं नि॒र्मन्थ॑तो अ॒श्विना॑ । तं त॒त गर्भं॑ हवामहे दश॒मे मा॒सि सूत॑वे ॥३॥10/184
ये सूक्त है भगवान विष्णू से जिसमे कामना गर्भ से उत्तम सन्तान होने की कामना की जा रही है।इसके पहले के सूक्त में तो ओर भी मजेदार बात है
अपश्यं त्वा मनसा चेकितानं तपसो जातं तपसो विभूतम्.
इह प्रजामिह रयिं रराणः प्र जायस्व प्रजया पुत्रकाम.. (१)
हे कर्मों के ज्ञानी, तप से उत्पन्न एवं तपस्या से उन्नत यजमान! मैंने अपने मन की आंखों
से तुम्हें देखा है. तुम यहां संतान एवं धन पाकर प्रसन्न बनो एवं पुत्र की कामना से संतान के
रूप में जन्म लो. (१)
अपश्यं त्वा मनसा दीध्यानां स्वायां तनू ऋत्व्ये नाधमानाम्.
उप मामुच्चा युवतिर्बभूयाः प्र जायस्व प्रजया पुत्रकामे.. (२)
हे पत्नी! मैंने मन की आंखों से तुम्हें दीप्तिशालिनी व ऋतु के अनुसार अपने शरीर में
गर्भाधान की कामना करती हुई देखा है. हे पुत्र की कामना करने वाली! मेरे समीप तुम उत्तम
तरुणी बनो एवं पुत्र उत्पन्न करो. (२)
अहं गर्भमदधामोषधीष्वहं विश्वेषु भुवनेष्वन्तः.
अहं प्रजा अजनयं पृथिव्यामहं जनिभ्यो अपरीषु पुत्रान्.. (३)
मैं होता हूं, ओषधियों में गर्भ धारण करता हूं एवं सभी प्राणियों में गर्भ धारण का
कारण बनता हूं. मैंने धरती पर प्रजा को जन्म दिया है. मैं यज्ञ करके सब नारियों में पुत्र
उत्पन्न कर सकता हूं. (३)

याने वेद भगवान की तो आज्ञा है आप पना यह लोक भी सुख पुर्वक जीओ और अग्निहोत्र आदी करके पर लोक मे भी उत्तम लोक प्राप्त करो।यहां हिन्दू काल्पनिक नैतिकता मे अपनी स्त्री खोते जाते है।उन्का समझ नही आता क्या हुआ?क्यों एसा हो रहा है?
अरे! काम तो बहुत ताकतवर है जब तक ये प्रबल हो के सर मे हावी हो जाये उससे पहले ही उसकौ पहचान करके उसकौ उर्द्धगामि बना दो।
तभी न 
वो वीर्य/रज
से बढते बढते प्रज्ञा होगा न।
स्त्री स्वयं शक्ति है उसकौ खो देने पर सनातन स्वयं डूब जाता है अत: लव जिहाद का जवाब ही केवल शक्ति का संचय करना है शक्ति  के स्वरुप को जानकर तद अनुसार परिश्रम करना है बौद्धो की तरह बिना योग्यता के सन्यास लेना नही।एसा करने से ही मठ विहार पतन में फंस गये और ये यहां से नष्ट हो गया।
ये केवल पढ्ने से नही होना है मेरा एक मित्र है वो हमको वात्सायन की काम सूत्र का ज्ञान देता था एक बार हम लोग फुटबॉल खेलने गये वहाँ उसने इसकी क्लास लगा दी।अध्ययन शिल प्रवर्त्ति है तो काम से धर्म धर्म से अर्थ अर्थ से मोक्ष तक वो आया।
फिर उसका विवाह हो गया।
तब सब समाप्त।
जबकी होना क्या चाहिए?
गृहस्थ जीवन में ही काम अर्थ धर्म मोक्ष का परिक्षण है ये ही साधना है ये बेलेंस है।तब जीवन में रस आयेगा आनन्द आयेगा।तब काममे भी आनन्द होगा और धर्म में भी।
कार्य क्षेत्र मे अर्थ मे भी आनन्द आयेगा और निष्ठा से मोक्ष में भी।
तभी शक्ति के स्वरुप को पहचाने मे हम भूल नही कर पायेंगे।लव जिहाद का हल मेरे तो केवल ये ही समझ आया।
हिन्दू युवक पौरुष को जाग्रत करे।बल की साध्ना करें तब ही शक्ति आप्का वरण करेगी।और ये वेद भी कह रहा है।
बडे होते किशोर वय युवक युवती इस बात को जाने कि आदिम अवस्था मे रहने वाले जनजाती भी प्रेम करते है स्वतंत्र रह्ते है उनकी इच्छा हो सर्व परि है पर वो कबीला का नुकसान नही करते।
आपके प्रेम से समाज को हानी हो रही है तो वो अधर्म है आपको नष्ट करेगा।
कृष्ण की तरह सुभद्रा के प्रेम को पार्थ की तरफ मोडना है उसके पहले कि कोइ दुर्योधन ले जाये।
संयोगिता का वरण पृथ्वी राज ही करेंगे।
राज सिन्ह ही औरंगजेब के जबड़े मे जाने से क्षत्रिय कुमारी को ब्चाएन्गे।
अत: स्त्री को टेबू नही है वो भी वैसी ही मानव है जैसे आप हो।वो भी उतनी ही हिन्दू जितने आप।बस आप को ही मन में झिझक है संकोच है वर्ना उसने तो हजारो सालो से हिन्दुत्व धारण कर रखा है।
आनन्द से जिये।
लव जिहाद से शिकार होने से सबकौ बचायेंगे।
भगवान श्री राम ने कुल धर्म की मर्यादा और प्रेम के लिये अपना और शत्रुओ का रक्त बहाया और रावण का नाश करके भगवती जानकी को मुक्त कराया उसके बाद जानकी को कहा कि अब तुम्हारी इच्छा है वहाँ जाऔ।चाहे जिससे विवाह करो।जानकी को दुख हुवा।क्रोध नही।याने राम जी की दृष्टी मे भी जानकी की इच्छा ही सर्वोपरि है।
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इसको देख्के आपके मन मे क्या जागता है?विचार करें कितना आपका काम धर्म सिद्ध हुवा है उसका मापन है ये।
ओशो से एक ने पूछा था मै यहां ज्ञान ध्यान के लिये आया तो देखता हुँ सब तरफ सुन्दर स्त्रियाँ सुन्दर जोड़े घूम रहे है मेरा मन नही लगता है ज्ञान ध्यान में।तो ओशा हँसा बोला तुन्हारे मन में काम बहुय वर्षो से दबा पडा है और तुमको उसकौ दबा के योगी हो जाना चाहते हो?या एसा ही कुछ कहा था।
याने गृहस्थ मे रह के सब सुख को प्राप्त करना।
उसके बाद सब त्याग देना।
ये ही सनातन धर्म है।
एषो धर्म सनातन
अर्जुन हो जाना 
जय श्री राम

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