Monday, January 11, 2021

विवेकानन्द:एक सन्यासी योद्धा

माँ भुनेश्वरी ने शिव का बहुत ध्यान करके शिव को ही पुत्र रूप पाया। जिस दिन भगवान भास्कर दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर गमन कर रहे थे, प्रकृति बहुत ही सुंदर और मनमोहक हो रही थी उस दिन उस स्वयं शिव का जन्म मां भुनेश्वरी के गर्भ से हुआ। जिसने इस आधुनिक भारत को अपने वचनों और कर्मों से इतना प्रभावित किया है कि जिसको कोई दूसरा विवेकानंद आकर ही बता सकता है और समझ सकता है ।
भारत सदियों से विदेशी आक्रांताओं से संघर्ष करता करता हीनता गुलामी और कुंठा की नींद में सो गया था जो कुछ भी भारतीय है उसके प्रति हीन भावना रखना हमारे देश के उस समय के बुद्धिजीवियों और बड़े-बड़े मनस्वी लोगों का मुख्य चरित्र बन गया। या फिर रूढी कुरीति छुआछूत जातीय भेद आदि काल्पनिक बातों को ही धर्म मान कर उसमें ही आत्म मुग्ध  रहने वाला दीन हीन भारत बन गया।
 ऐसे समय में तीव्र रजोगुण की आवश्यकता थी पर वह सत गुण जो वास्तव मे तामसिक था उसकी  आड़ में तम गुण  का महिमामंडन हो रहा था। अज्ञानता अंधकार  और कायरता को धर्म मानने की जो परिपाटी भारत में चल पड़ी और जिस कुसंस्कार के कारण करोड़ों करोड़ों लोग  गरीबी शोषण में पिसते जा रहे थे और बुद्धिमान और समर्थ कहे जाने वाले भारतीयों को उनके दुख दर्द और उनकी भौतिक आवश्यकताओं की कोई परवाह ना थी ऐसे समय में स्वामी जी ने हम को झकझोर दिया उन्होंने कहा कि तुम्हारा हिंदुत्व पर गर्व करना तब ही सार्थक होगा जब तुम प्रत्येक हिंदू को अपना भाई मानो उसके सुख दुख में भागीदार बनो।
तभी और केवल तब ही तुम हिन्दू कहलाने के अधिकारी हो, जब इस नाम को धारण करने वाला प्रत्येक व्यक्ति- वह चाहे जिस देश का हो, वह चाहे तुम्हारी भाषा बोलता हो अथवा कोई अन्य-प्रथम मिलन में ही तुम्हारा सगे से सगा तथा प्रिय से प्रिय बन जाय ! तभी और केबल तब ही तुम हिन्दू कहलाने के अधिकारी हो, जब इसको धारण करने वाले किसी भी व्यक्ति का दुःख-दर्द तुम्हारे हृदय को इस प्रकार व्याकुल कर दे मानो तुम्हारा अपना पुत्र संकट में हो ।तभी और केवल तब ही तुम हिन्दू कहलाने के अधिकारी हो, जब इस नाम को धारण करने वाला प्रत्येक व्यक्ति- वह चाहे जिस देश का हो, वह चाहे तुम्हारी भाषा बोलता हो अथवा कोई अन्य-प्रथम मिलन में ही तुम्हारा सगे से सगा तथा प्रिय से प्रिय बन जाय ! तभी और केबल तब ही तुम हिन्दू कहलाने के अधिकारी हो, जब इसको धारण करने वाले किसी भी व्यक्ति का दुःख-दर्द तुम्हारे हृदय को इस प्रकार व्याकुल कर दे मानो तुम्हारा अपना पुत्र संकट में हो । तभी और केवल तब ही तुम हिन्दू कहलाने के अधिकारी हो सकोगे, जब तुम उनके लिए सब कुछ सहने को तत्पर रहोगे । उन महान्‌ गुरु गोविन्द सिंह के समान, जिन्होंने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए अपना रक्त बहाया, रणक्षेत्र में अपने लाडले बेटों का बलिदान होते देखा, पर जिनके लिए, उन्होंने अपना तथा अपने सगे सम्बन्धियों का रक्त चढ़ाया, उनके ही द्वारा परित्यक्त होकर वह घायल सिंह कार्यक्षेत्र से चुपचाप हट गया और दक्षिण जाकर चिरनिद्रा में खो गया । किन्तु जिन्होंने कृत्घ्नतापूर्वक उनका साथ छोड़ दिया था, उनके लिए अभिशाप का एक शब्द भी उस वीर के मुंह न फूटा । यह है आदर्श उस महान्‌ गुरु का !स्मरण रहे।यदि तुम अपने देश का कल्याण करना चाहते हो तो तुम में प्रत्येक को गुरु गोविन्द बनना होगा । भले ही तुम्हें अपनें देशवासियों में सहस्रों दोष दिखाई दें पर ध्यान रखना कि उनमें हिन्दू रक्त है । वे तुम्हें हानि पहुंचाने के लिए सब कुछ करते हों तब भी वे प्रथम देवता हैं जिनका तुम्हें पूजन करना है । यदि उनमें से प्रत्येक तुम्हें गाली दें, तब भी तुम्हें उनके लिए स्नेह की भाषा बोलनी है और यदि वे तुम्हें धक्का देकर बाहर कर दें, तब भी तुम कहीं दूर जाकर उस शक्तिशाली सिंह-गोविन्द सिंह के समान मृत्यु की गोद में चुपचाप सो जाना । ऐसे ही व्यक्ति हिन्दू कहलाने का वास्तविक अधिकारी है, यही आदर्श हमारे सामने रहना चाहिए । आओ, हम अपने समस्त विवादों एवं आपसी कलह को समाप्त कर स्नेह की इस भव्य-धारा को सर्वत्र प्रवाहित कर दें ।
स्वामी विवेकानंद जी ने धर्म और अध्यात्म की व्याख्या युगा नो कॉल करते हुए सभी भारतीयों को और उससे भी बढ़कर सभी मांगों को यह संदेश दिया कि सभी प्राणियों में परमात्मा शिव का वास होने से उन सब की सेवा को नारायण सेवा समझकर ही करनी चाहिए स्वामी जी गुलामी में फंसे हुए इस भारत देश को पुनः वैभव संपन्न और अध्यात्म संपन्न बनाना चाहते थे उनका यह मानना था कि यह भारत अपने धर्म के मार्ग से चुप हो जाने के कारण ही गुलाम हुआ है बड़े-बड़े धार्मिक लोग सामान्य जन की परवाह न करते हुए आज मन किस हाथ से करना है ऐसे व्यर्थ की बातों में फंसे रहकर समय व्यर्थ करते गए आपसी कलह आपसी फूट और सबसे बड़ी ईशा भाव से ग्रस्त भारतीय लोग गुलाम हो गए लेकिन अभी भी भारत में धर्म जीवित है और स्वामी जी ने उस धर्म की चिंगारी को ही यज्ञ अग्नि मनाने का कार्य किया आचार्य शंकर की दिव्य मेधा और भगवान बुद्ध की करुणा का स्वामी जी में अद्भुत संगम हुआ था उन्होंने पश्चिम को कहा कि भारत को तुम्हारे मिशनरीज धर्म की आवश्यकता नहीं है भारत को आज किस बात की आवश्यकता है तुमसे वह भौतिक ज्ञान सीखने की है मैं भारत से अमेरिका तुमको आध्यात्मिक ज्ञान सिखाने आया हूं और बदले में मैं चाहता हूं कि तुम करोड़ों भारतीयों को भौतिक जीवन में उन्नत करने में सहायता करो तुम मिशनरीज लोगों ने भारतीयों को जितनी और सभ्यता और अज्ञानता में गालियां दी है वह हिंद महासागर में पड़े कीचड़ से भी ज्यादा है यह भारत सीताराम का देश है यहां भारत सावित्री का देश है यह भारत युद्ध भूमि में अर्जुन को गीता ज्ञान कराने वाले भगवान श्री कृष्ण का देश है


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